आज हम आपको बतायेंगे गुलाम भारत की एक ऐसी हकीकत, जिसके हम आज भी शिकार है। आपको याद ही होगा 1857 में सिपाही बिद्रोह हुआ था और इसके बाद भारत पर हुकूमत करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी की चूलें हिल गई थी। वैसे तो यह क्रांति मंगल पांडेय के नेतृत्व में मेरठ के सैनिको ने शुरू की थी। किंतु, कालांतर में यह आम आदमी का आन्दोलन बन गया था। सितम्बर तक पूरा देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद होने ही वाला था कि इस देश के कुछ गद्दार रजवाड़ों ने अंग्रेजों की मदद कर दी। राजाओं ने अंग्रेजो को धन और सैनिक ही नही, बल्कि खुफिया जानकारी भी उपलब्ध करा दिया। ताज्जुब की बात यह कि आजादी के बाद वही राजघराना भारत की राजनीति में सक्रिय होकर सत्ता का सुख भोगने लगा और जिसने देश की खातिर अपने प्राणो की आहूति दे दी, उसे आजाद भारत में भी गहरी साजिश का शिकार बना कर समाज की मुख्य धारा से उसे अलग- थलग कर दिया गया। आज इस रिपोर्ट में हम इसी साजिश का खुलाशा करेंगे।
बिठुर पर टूटा अंग्रेजो का कहर
साजिश को समझने से पहले भारत में ब्रिटिश हुकूमत की आरंभिक दिनो की कुछ बातें जान लेना आवश्यक है। दरअसल, क्रांतिकारियों को पूरी तरीके से कुचलने के बाद इस्ट इंडिया कंपनी की जगह भारत में ब्रिटेश शासन की स्थापना की गई थी। इसके बाद आपको याद ही होगा कि अंग्रेजो ने क्रांति के उद्गमस्थल कानपुर के समीप बिठुर गांव के करीब 24 हजार लोगों को अकारण ही मार दिया था। शायद आपको मालुम हो कि नाना जी पेशवा बिठुर के ही रहने वाले थे और अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति की सभी योजनाएं यहीं बनी थी। कहा जाता है कि अंग्रेजों ने बदले के तौर पर यहां जबरदस्त अत्याचार की इबादत लिख दी थी।
अर्थ व्यवस्था को किया घ्वस्त
बात यही खत्म नहीं होती। बल्कि, ब्रिटिश हुकूमत की स्थापना होते ही अंग्रेजों ने भारत पर शासन हेतु कई कानून बनाए। उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया। यहां आपको जानना जरुरी है कि 1840 तक का भारत का विश्व व्यापार में हिस्सा 33 फीसदी हुआ करता था और उन दिनो दुनिया के कुल उत्पादन का 43 फीसदी पैदावार भारत में होता था। आपको जान कर हैरानी होगी कि दुनिया के कुल कमाई में भारत का हिस्सा 27 फीसदी का था। अंग्रेजों को यही बात बहुत खटकती थी। इसलिए उन्होंने आधिकारिक तौर पर भारत को लुटने के लिए कुछ कानून बनाने शुरू कर दिए।
अंग्रेजो ने ऐसे लूटा भारत को
कानून की आर लेकर अंग्रेजो ने भारत में होने वाले उत्पादन पर टैक्स लगाना शुरू कर दिया। अंग्रेजों ने सबसे पहले भारत पर एक्साइज डिउटी लगा दिया और टैक्स तय किया गया 350 फीसदी। यानी, 100 रूपये का उत्पादन होगा तो 350 रुपया का टैक्स देना होगा। इतना ही बल्कि, भारत में उत्पादित समान बेचने पर 120 फीसदी का सेल्स टैक्स भी लगा दिया गया। इसी प्रकार 97 प्रतिशत का इनकम टैक्स लगा दिया गया। यानी, टैक्स की आर लेकर अंग्रेजो ने भारतीयो को लूटने की खुली छूट अपने अधिकारी को दे दी। बात यहीं खत्म नहीं होती है। इसके अतिरिक्त अंग्रेजो ने भारतीयों पर रोड टैक्स, टॉल टैक्स, मिनिस्पल कॉरपोरेशन टैक्स, हाउस टैक्स और प्रोपर्टी टैक्स सहित कुल 23 प्रकार के टैक्स लगा कर भारत में जबरदस्त लूट मचा दी। रिकार्ड बताते हैं कि इस टैकस के जरीए अंग्रेजो ने भारत से करीब 300 लाख करोड़ रुपया लुट लिया।
अंग्रेजी कानून बना अकाल का कारण
इसका दूसरा खामियाजा यह हुआ कि विश्व व्यापार में हमारी हिस्सेदारी 33 फीसदी से गिर कर 5 फीसदी हो गयी। हमारे कारखाने बंद हो गए, लोगों ने खेतों में काम करना छोड़ दिया और हमारे मजदूर बेरोजगार हो गए। भारत में गरीबी इस कदर बढ़ी कि लोग भुखमरी के शिकार होकर मौत की आगोश में समाने लगे। कुपोषण की वजह से महामारी ने बिकराल रूप धारण कर लिया। आपको याद ही होगा कि उस वक्त बहुत बड़ा अकाल भी पड़ा था। दरअसल यह अकाल प्राकृतिक नहीं था। बल्कि, अंग्रजो के शोषण की परिणति ही था।
लोगो में भरे नफरत के बीज
इधर, अंग्रेजो ने टैक्स से जमा पूंजी का एक छोटा हिस्सा अपने चहेते रजवाड़ो को देकर उनका मुंह बंद करा दिया। किंतु, पेशवाओं ने इसका विरोध जारी रखा। लिहाजा, पेशवाओं के प्रति पहले से खार खाए अंग्रेजो ने एक और शातिर चाल चल दी। अंग्रेजो ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को आधार बना कर जातिवाद को सुलगाना शुरू कर दिया। पेशवाओं के खिलाफ देश भर में नफरत का बीजारोपण कर दिया गया। अंग्रेजो ने बड़ी चालाकी से मनु स्मृति में आपत्ति जनक बातें जोर कर उसे प्रमाण के रूप में पेश कर दिया। इससे लोगो में पेशवाओं के प्रति घृणा पैदा होने लगा। इस बीच अंग्रेजो ने इतिहास के साथ छेड़ छाड़ कर भारत को बौद्धिक गुलाम बनाने की चालें चल दी। दूसरी ओर भारत के लिए ऐसी शिक्षा नीति बनाई गई कि भारत के अधिकांश लोगो में भारतीय परंपरा, संस्कृति और संस्कार से नफरत होने लगा। अंग्रेजो ने बड़ी ही चालाकी से इस सभी समस्याओं का जिम्मेदार पेशवाओं को ठहरा दिया और उन्हें आम लोगो से दूर कर दिया गया। लिहाजा, कालांतर में पेशवा अलग थलग हो गए और उनके कमजोर पड़ते ही अंग्रेजो ने निर्वाध होकर भारत को लूटने की अपनी मंसूबे को आसानी से अंजाम तक पहुंचाने में कामयाबी हासिल कर ली।
युवाओं को किया गुमराह
दुर्भाग्य से आजादी के सात दशक बाद भी भारत में यह परंपरा मजबूत होने दिया गया। ताकि, सत्ता की आर लेकर कमजोर की हकमारी हो सके और खुद के दामन को पाक रखा जा सके। इसके लिए जरुरी था कि जिसने देश की खातिर अपना सर्वश्व न्योछावर किया, उसी कॉम को देश की तबाही का सबसे बड़ा गुनाहगार साबित कर दिया जाए। ताकि, सच कभी भी उजागर नहीं हो सके। दुर्भाग्य से हमारा आज का युवा पीढ़ी बिना कुछ सोचे समझे इसी साजिश का शिकार हो गया। नतीजा, वह अपने लूटने वालों को ही मसीहा समझ बैठा है। हमेशा बुरे वक्त में साथ देने वालों से नफरत करने लगा है।
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