क्वरंटाइन सेंटर
KKN न्यूज ब्यूरो। हेलो सर… तुर्की हाईस्कूल में प्रखंड क्वारंटाइन सेंटर है। पर, यहां पेयजल की सुविधा नहीं है। जिस कमरे में मजदूरो को रखा गया है, उसमें दरबाजा नहीं है। अधिकारी फोन नहीं उठा रहें है और संक्रमण फैलने की आशंका से लोग दहशत में है। तुर्की के रमानन्द राय एक ही सांस में पूरी बात कह गये। अब एक मिशाल और देखिए। टेंगरारी क्वारंटाइन सेंटर पर गुरुवार को 10 प्रवासी मजदूर आये। करीब 24 घंटे बितने के बाद भी शुक्रवार को उनके लिए प्रशासन की ओर से भोजन की व्यवस्था नहीं हो सकी। भूखे मजदूरो को स्थानीय मुखिया नीलम कुमारी ने अपने घर से खाना बना कर खिलाया। यही हाल गोरीगामा क्वारंटाइन सेंटर की है। शुक्रवार को मुखिया अनामिका बताती है कि पिछले दो रोज से 10 मजदूरो को वह अपने घर से खाना दे रही है। हरका के मुखिया रेणु सिंह का दावा है कि उन्होंने पंचायत के क्वारंटाइन सेंटर पर रहने वाले 22 मजदूरो को अपने घर से खाना खिलाया है।
ये सभी मुजफ्फरपुर जिला के मीनापुर प्रखंड से ताल्लुक रखते हैं और इनका दावा है कि सरकार ने पंचम वित्त आयोग की राशि से पंचायत के क्वारंटीन सेंटर पर मजदूरो के रहने और सैनिटाइजेशन की व्यवस्था करने का आदेश दिया हुआ है। यहां रहने वाले मजदूरो को भोजन और वर्तन आदि की व्यवस्था अंचल प्रशासन को करनी है। अब सवाल ये कि जब भोजन अंचल प्रशासन को देनी है, तो क्वारंटाइन सेंटर पर मजदूरो को भेजने के बाद अधिकारी भोजन की व्यवस्था तत्काल ही क्यों नहीं करतें है? मीनापुर के अंचलाधिकारी से जब हमारे रिपोर्टर ने यही सवाल पूछा तो उनका रटा-रटाया जवाब आया। अंचलाधिकारी ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव का कहना था कि पंचायतो में बने सभी क्वारंटीन सेंटर पर रहने वाले प्रवासी मजदूरो को भोजन सहित सरकार के द्वारा निर्धारित सभी सुविधएं दी जा रही है। अधिकारी ने दावा किया है कि जो लोग खुद से लौट कर घर आ रहे है, उनको भी ढूंढ़ कर क्वारंटीन किया जा रहा है। बड़ा सवाल ये कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ?
छात्र राजद के मुजफ्फरपुर जिला अध्यक्ष अमरेन्द्र कुमार से जब इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने अधिकारी पर कई गंभीर आरोप लगाने शुरू कर दिये। छात्र नेता का कहना था कि अक्सर मीनापुर के अंचलाधिकारी फोन नहीं उठाते है। छात्र नेता ने बताया कि पिछले रविवार को अलीनेउरा के क्वारंटाइन सेंटर से इलाज कराने सदर अस्पताल गया एक मजदूर लौट कर सीधे अपने गांव मदारीपुर चला आया। बार-बार रिंग होने के बाद भी अंचलाधिकारी ने फोन नहीं उठाया और वह तीन रोज तक अपने घर पर ही रहा। गांव के लोग दहशत में थे और अधिकारी फोन नहीं उठा रहे थे। इधर, गोरीगामा के क्वारंटाइन सेंटर पर तैनात शिक्षक विवेक कुमार भी मानते है कि अधिकारी से फोन पर बात करना आसान नहीं है। कहतें है कि मीनापुर के बीडीओ तो कभी-कभी फोन उठा भी लेंते है। पर, सीओ साहेब अक्सर फोन नहीं उठाते है। मुखिया संघ की अध्यक्ष नीलम कुमारी की माने तो स्थिति बेहद ही खतरनाक है। कोई किसी का सुनने को तैयार नहीं है। गौरकरने वाली बात ये है कि अभी तो मात्र दो हजार प्रवासी मजदूर लौटे है और सिस्टम हाफ रहा है। अधिकारी की माने तो अकेले मीनापुर में करीब छह हजार प्रवासी मजदूर लौटने की प्रत्याशा में है। जबकि, गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 15 हजार प्रवासी मजदूर है और ये सभी लौट गये, तो क्या होगा?
This post was published on मई 15, 2020 17:43
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