कौशलेन्द्र झा। बिहार का एक प्रमुख शहर है मुजफ्फरपुर। इसको उत्तर बिहार की अघोषित राजधानी भी कहा जाता है। हालांकि, देश- दुनिया में मुजफ्फरपुर की पहचान लीची जोन के रूप में बन चुका है। मुजफ्फरपुर और इसके निकटवर्ती क्षेत्र की भूमि और जलवायु लीची के लिए बेहद ही उपयुक्त माना गया है। यही कारण है कि आज समूचे भारत में लीची उत्पादन का 90 प्रतिशत पैदावार पर उत्तर बिहार का एकाधार है और इसमें 80 प्रतिशत लीची का उत्पादन अकेले मुजफ्फरपुर में होता है। बिहार में मुजफ्फरपुर के अतिरिक्त चंपारण, सीतामढ़ी, समस्तीतपुर, वैशाली और भागलपुर में भी लीची की खेती की जाती है।
लीची एक ऐसा फसल है, जिसका उत्पादन कमोवेश पूरी दुनिया में की जाती है। बिहार के अतिरिक्त भारत के पश्चिम बंगाल के मालदा, उत्तराखंड के देहरादून और सहारनपुर तथा पंजाब के कुछ हिस्सों में भी लीची का थोड़ा-बहुत उत्पादन होता है। अध्ययन से पता चला है कि पहली शताब्दी में सर्व प्रथम दक्षिण चीन में लीची की खेती की गई थी। कालांतर में इसका क्षेत्र विस्तार हुआ और आज उत्तर भारत के अतिरिक्त थाइलैंड, बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका, और फ्लोरिडा तक इसके खेती का फैलाव हो चुका है। पिछले दो दशक में पाकिस्तान, दक्षिण ताइवान, उत्तरी वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका में भी लीची की खेती शुरू हो चुकी है।
कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक 70 के दशक में मुजफ्फरपुर के करीब 1,330 हैक्टेयर जमीन पर लीची का बगान था। जो, आज बढ़ कर 12,667 हैक्टेयर तक पहुंच चुका है। जानकार बतातें हैं कि 70 के दशक में जहां तकरीबन 5,320 मिट्रिक टन सालाना लीची का उत्पादन होता था। वही, चालू दशक में यह बढ़ कर एक लाख 50 हजार मिट्रिक टन तक पहुंच चुका है। बावजूद इसके लीची उत्पादक किसान लगातार घाटे में है। बतातें है कि 90 के दशक में मुजफ्फरपुर से लीची का विदेशो में निर्यात शुरू हुआ था। इस क्रम में यहां की लीची इंगलैंड, नीदरलैंड, फ्रांस, स्पेन, दुबई व अन्य कई गल्फ कंट्री सहित पड़ोसी देश नेपाल को भेजी जाती थी। किंतु, हालिया वर्षो में कतिपय कारणो से इसमें कमी आई है और अब विदेश के नाम पर नेपाल और बंगनादेश तक ही मुजफ्फरपुर की लीची सीमट कर रह चुकी है।
बात उत्तर बिहार की करें तो विगत तीन दशक में यहां लीची के उत्पादन में करीब डेढ़ गुणा की वृद्धि हुई है। लीची की अनेक किस्मे हैं। अकेले मुजफ्फरपुर में रोज सेंटेड, शाही, चाइना और बेदाना किस्म की लीची मिलता हैं। व्यांपारिक दृष्टि से लीची की बागवानी बहुत ही लाभप्रद है। जानकार बतातें हैं कि लीची के बगिचो से किसान को प्रति हेक्टेयर बीस हजार रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ प्राप्त हो जाता है। किंतु, प्रकृतिक आपदा की वजह से ऐसा हो नहीं पाता है। दूसरा ये कि लीची पर आधारित कोई उद्योग नहीं होने से यहां के लीची उत्पादक किसान आर्थिक बदहाली का सामना कर रहें है। लीची के उत्पादन पर करीब 90 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाला मुजफ्फरपुर में लीची के स्टोरेज और ट्रांसपोटेशन की अभी तक कोई कारगर व्यवस्था बहाल नहीं हो सकी है। सरकार की बेरूखी से लीची उत्पादक किसान हतोत्साह होने लगें हैं। मुजफ्फरपुर के एक लीची किसान नीरज कुमार बतातें हैं कि सरकार लीची से जूस बनाने का उद्दोग लगा दे, तो किसानो को इसका लाभ मिलने लगेगा। इसी प्रकार लीची के लिए कोल्डस्टोर और लीची के ट्रांसपोटेशन के लिए एसी कोच की व्यवस्था कर दे, तो आमदनी दोगुणी हो सकती है।
लीची की खेती सिर्फ कमाई का जरिया नहीं है। बल्कि, इसे सेहत का वरदान भी कहा जाता है। लीची में पौष्टिक तत्वों का भंडार माना जाता है। इसमें भरपूर विटामिन सी, पोटेशियम और प्राकृतिक शक्कर पाया जाता है। साथ ही इसमें पानी की मात्रा भी पर्याप्त होती है। गरमी में खाने से यह शरीर में पानी के अनुपात को संतुलित रखने में मददगार साबित होता है। कहा जाता है कि मात्र दस लीची खाने से करीब 6.5 कैलोरी उर्जा मिल जाती हैं। इसके अतिरिक्त लीची में कैल्शियम, फोस्फोरस व मैग्नीशियम जैसे मिनरल्स पाये जातें हैं। यह हमारे शरीर की हड्डियों के विकास के लिए आवश्यक माना गया हैं। लीची में प्रमुख पोषक तत्व कार्बोहाइट्रेट है। लीची के पके फलो का विश्लेषण करने पर पाया गया है कि इसमें औसतन 15.3 प्रतिशत शक्कर, 1.15 प्रतिशत प्रोटीन और 16 प्रतिशत अम्ल पाया जाता है। लीची का फल फास्फोरस, कैल्शियम, लोहा, खनिज-लवण और विटामिन ‘सी’ का अच्छा स्त्रोत होता है। लीची में जल की मात्रा अत्यशधिक होती है। इसके एक फल में 77.30 प्रतिशत गुद्दा और गूद्दे में 30. 94 प्रतिशत जल पाया जाता है। लीची में विटामिन C अधिक पाया जाता है, जो हमारे त्वचा और हमारे शरीर की प्रतिरक्षा तन्त्र को मजबूत करता है। इतना ही नही बल्कि लीची खाने से शरीर का रक्त बिकार कम होने लगता है। रीसर्च से पता चला है कि लीची में ब्रेस्ट कैंसर को रोकने की विशेषता पाई जाती है। लीची में डाएट्री फाइबर पाया जाता हैं, जो हमारे पाचनतंत्र को मजबूत करता है। लीची एक प्रकार का एंटी ऑक्सीडेट भी हैं, जो हमारे शरीर को बिमार होने से रोकता है। लीची खाने से शरीर का ब्लड प्रेशर स्थिर रहता है। लीची ह्रदय की धड़कन को मजबूती देता है।
वनस्पती शास्त्र में लीची को सैपिडेंसी परिवार का एक महत्वपूर्ण सदस्य बताया गया है। इसका वैज्ञानिक नाम चाइ नेन्सिस है। इसकी उत्पत्ति चीन से हुई माना जाता है। जानकार बतातें है कि लीची की खेती सर्वप्रथम दक्षिण चीन में, पहली शताब्दी के आसपास शुरू हुई थी। सर्व प्रथम चीन के लूचू द्वीप पर इसका उत्पादन शुरू हुआ था। लूचू से ही इस फल का नाम लीची पड़ा होगा, ऐसी मान्यता है। इसके पेड़ की ऊंचाई 4 से 12 मीटर तक होती है। फरवरी में पेड़ पर मंजर निकलने लगता है और मार्च में दाना बनना शुरू हो जाता है। वैसे यह रस भरी लीची 15 मई तक पकना शुरू हो जाता हैं। इसका पेंड़ उष्ण कटिबन्धों में पाया जाता हैं। चीन में लीची का शर्बत, फ्रूट सलाद और आइसक्रीम के साथ खाने का रिवाज़ रहा है। चीन में इसे मांसाहारी व्यंजनों के साथ भी सम्मिलित किया जाता है। चीनी संस्कृति में लीची का महत्वपूर्ण स्थान है। चीन में यह घनिष्ठ पारिवारिक संबंधों की प्रतीक के रूप में माना जाता है।
This post was published on अप्रैल 21, 2020 13:50
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