पुलिस इंस्पेक्टर संजय कुमार…। राजू के परिवार के लिए किसी फ़रिश्ते से कम नहीं हैं। पुलिस के अन्य अधिकारी जिस राजू को मरा हुआ मान कर मुर्दाघर ले जाने की तैयारी कर रहे थे। उसी राजू के जिश्म में बची सांस की अंतिम डोर को इंसपेक्टर संजय ने दूर से ही पहचान लिया और मुर्दाघर की जगह उसे अस्पताल ले जाकर, राजू की जिन्दगी बचा ली।
हुआ ये कि शनिवार की शाम संजय रोज की तरह बाड़ा हिंदू राव पुलिस थाने में बैठे थे। शाम छह बजे के लगभग पीसीआर से एक फ़ोन आया। पता चला कि उनके इलाके में 21 साल का एक युवक ने आत्महत्या कर ली है। संजय ने फ़ौरन वहां कुछ पुलिसकर्मियों और एंबुलेंस को भेजा। थोड़ी देर बाद फिर फ़ोन आया कि युवक मर चुका है और उसे पोस्टमॉर्टम के लिए मुर्दाघर ले जाया जा रहा है।
आनन फानन में इंसपेक्टर संजय खुद घटनास्थल पर पहुंचे और उन्होंने देखा कि एक दुबला-पतला शख़्स बेडशीट को अपने गले से लपेटे पंखे से लटका हुआ है। संजय ने देखा कि लड़के का पांव ज़मीन को छू रहा था। ट्रेनिंग के दौरान मिली सीख के आधार पर संजय को लगा कि अभी वह मरा नहीं है। उसे पंखे से उतरवाया और उसके गले से फंदा खोला तो पता चला कि नब्ज़ चल रही थी…बहुत धीरे-धीरे।
इंसपेक्टर ने युवक को तुंरत पास के अस्पताल में भर्ती करा दिया। सात बजे तक राजू डॉक्टरों की देखरेख में था और आठ बजे के लगभग अस्पताल में फ़ोन करने पर चिकित्सको ने बताया कि राजू खतरे से बाहर है। डॉक्टरों का कहना था कि अगर उसे जल्दी अस्पताल न लाया जाता तो वो निश्चित तौर पर वह मर जाता। एक दिन तक अस्पताल में रहने के बाद राजू घर लौट आया है। राजू के परिवार वालो का कहना है कि अगर इसंपेक्टर संजय ने सही वक़्त पर सही फ़ैसला न किया होता तो, राजू को मुर्दाघर के कपड़े में लपेटकर रात भर फ़्रीजर में रखा जाता जहां उसका मरना तय था। इंसपेक्टर संजय इस बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं कि लोगों के मन में आमतौर पर पुलिस की नकारात्मक छवि होती है। उन्होंने कहा पुलिस की नौकरी में लोगों की मदद करने के कई मौके आते हैं। मुझे ख़ुशी है कि मुझे किसी की ज़िंदगी बचाने का मौका मिला।
This post was published on दिसम्बर 22, 2017 08:47
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