KKN न्यूज ब्यूरो। आसमानी बिजली, या यूं कहें कि ठनका…। जो कुछ साल पहले तक कहानियों में हुआ करती थीं। आज आसमान से झपट्टा मारने लगी है। पठारी इलाका में गिरने वाला ठनका अब मैदानी इलाको में मौत बन कर कहर बरपाने लगा है। कैसे बनता है, मौत का बादल और इंसान कैसे इसके चपेट में आ जाता है? इससे बचने का कोई उपाए है? ऐसे और भी कई सवाल मन में उठना स्वभाविक है। आप याद करीये, बड़े-बूढ़े कहा करते थे, कि जब बारिश हो रही हो, तो बाहर मत निकलो। बारिश के दौरान पेड़ के नीचे या ऊंची इमारत से सट कर खडा होने से रोका जाता था। दरअसल, यह आसमानी बिजली के सीधे असर से बचने के लिए कहा जाता था। हालिया वर्षो में आसमानी बिजली खतरनाक रुप धारण करने लगा है। इसको वायुमंडल में बढ़ते प्रदूषण से जोड़ कर देखा जा रहा है। बहरहाल, अमेरिका में आसमानी बिजली के इंसानों पर असर की स्टडी जारी है। आसमानी बिजली की पहले से भविष्यवाणी करने में विज्ञान को अभी और वक्त लग सकता है।
प्रत्येक साल 27 हजार लोगो की होती है मौत
आसमानी बिजली या ठनका की चपेट में आ कर प्रत्येक साल तकरीबन 27 हजार लोग की मौत हो जाती है। बावजूद इसके आसमानी बिजली की भविष्यवाणी आजतक इंसान क्यों नहीं कर सका है? यह बड़ा सवाल है। सच तो ये है कि वैज्ञानिक भी स्वीकारते हैं कि आसमानी बिजली का फंडा उनकी समझ और विज्ञान के आम सिद्धांतों से परे है। अभी तक के शोघ से पता चला है कि आसमानी बिजली पांच तरीके से गिरती है और इंसान को मार देती है।
1- डायरेक्ट स्ट्राइक- यानी सीधे इंसान के सिर पर बिजली का गिरना। खुले इलाके में काम कर रहे लोग इसके ज्यादा शिकार बनते हैं। ऐसी घटनाएं कम होती हैं, लेकिन ये जानलेवा होती हैं। क्योंकि इंसान का शरीर करीब एक लाख वोल्ट वाली इस आसमानी बिजली को झेल नहीं पाता है। अमेरिका के रहने वाले माइकल अटली के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था। एक तूफानी दिन वो गोल्फ कोर्स में गोल्फ स्टिक हाथ में लेकर शॉट लगाने वाले थे। उसी वक्त अचानक एक धमाका हुआ और फिर उन्हें कुछ याद न रहा। कहतें है कि माइकल, डायरेक्ट स्ट्राइक के शिकार बन गये थे। भारत में मरने वालों में अधिकांश लोग डायरेक्ट स्ट्राइक के शिकार बनतें रहें हैं।
डायरेक्ट स्ट्राइक, दो तरह से हमारे शरीर पर असर दिखाता है। इंसान के रीढ़ की हड्डी के भीतर कुछ नर्व होता है। दरअसल, यह शरीर का एक पावर हाउस होता है। यहीं से सारी इलेक्ट्रिक तरंगें शरीर के अंगों को संचालित करती है। इसका हमारे दिल पर सीधा असर होता हैं। दिल को धड़कने के लिए हमारे शरीर में बेहद महीन इंपल्स लगे होते हैं। जो आसमानी बिजली के हाई वोल्टस को झेल नही पाता और चॉक कर जाता है। नतीजा हमारे दिल की धड़कने थम जाती है।
दूसरा ये कि बिजली जब इंसानी खून में प्रवेश करती है। तो, खून में मौजूद इलेक्ट्रोलाइट्स, हमारे शरीर में मौजूद एसिड और सॉल्ट से होते हुए मांसपेशियों को रौद देती है। इसके असर से हमारे खून में मौजूद आरबीसी, डब्लूबीसी और प्लाज्मा की कणो में टूटन होने लगता हैं। हमारा नर्वसिस्टम अचानक काम करना बंद कर देता है और शरीर को लकवा मार जाता है। आसमानी करंट के तेज चमक की चपेट में आने से हमारे आंख की रेटीना मांसपेशी से अलग हो जाता है और कुछ भी दिखाई नही देता है। इसके अतिरिक्त कान का चदरा फट जाने से सुनने की ताकत चली जाती है। कई बार इंसानों के सिर पर बिजली गिरने से ब्रेनहेम्ब्रेज हो जाता है। इतना ही नहीं, बल्कि त्वचा पर बिजली के आने जाने का निशान भी बन जाता है। जिसको बोलचाल की भाषा में झुलसना कहा जाता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे रिक्टर्न बर्ग स्कार्रस कहते है।
2- आइड फ्लैस- यह तब होता है जब आसमानी बिजली किसी ऊंची चीज पर गिरती है और उसका एक हिस्सा छिटक कर किसी इंसान पर आ जाता है। ऐसे हालात में वह इंसान उस बिजली के लिए शॉर्ट सर्किट का काम करता है। ऐसा तब होता है जब वह इंसान बिजली गिरने की जगह के एक या दो फुट के फासले पर होता है। ये वो लोग होते हैं जो बारिश में किसी पेड़ के नीचे शरण लिये होते हैं।
3- ग्राउंड करंट- जब किसी चीज पर बिजली गिरती है तो वो सीधे धरती का रुख करती है। यदि वहां पर आसपास कोई इंसान खड़ा है, तो वह भी बिजली को महसूस करता है। बतातें चलें कि आसमानी बिजली जब धरती से होते हुए इंसानों तक पहुंचती है, तो वह सबसे अधिक घातक बन जाती है। भारत में होने वाली सबसे अधिक मौत इसी वजह से हुई हैं। यह बिजली शरीर में दाखिल होती है और सीधे दिल और नर्वसिस्टम को नाकाम कर देती है।
4- कंडक्शन- आसमानी बिजली अगर किसी धातु के तार पर गिरती है, तो उस तार के सहारे वो काफी दूर तक जा सकती है। ऐसे हालात में जिस भी इंसान ने उस धातु की चीज को आगे कहीं भी छू, या पकड़ रखा होगा, उसे तगड़ा झटका लगेगा।
5- स्ट्रीमर- एक इंसान से दूसरे इंसान में बिजली का प्रवाहित होना अमूमन ये कम ही देखने को मिलता है। लेकिन अगर आसमानी बिजली गिरती है और फिर एक इंसान से दूसरे के संपर्क में आती है तो वह दोनों इंसानों के लिए घातक हो सकती है।
भारत में खतरा बढ़ने का है अनुमान
वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत का मौसम आसमानी बिजली के बनने और गिरने में मददगार बनता जा रहा है। अव्वल तो ये कि आसमानी बिजली जिन बादलों में बनती है, वह अमूमन 10 से 12 किलोमीटर कद के होते हैं। उनका करीबी हिस्सा सतह से 1 से 2 किलोमीटर के फासले पर रहता है। जबकि दूर का हिस्सा 10 से 12 किलोमीटर के फासले पर हो सकता है। रिसर्च से पता चला है कि ऊपरी हिस्से का तापमान गिरकर -35 से -45 डिग्री हो जाता है। नतीजा, वहां मौजूद पानी की बूंदें जमकर बर्फ में बदल जाती हैं और बर्फ का यही टुकड़ा नीचे गिरते हुए एक-दूसरे से टकराता हैं। इससे तेज घर्षण होता है और पॉजिटिव और निगेटिव कणो की उत्पत्ति हो जाती है। इसी कणो से ऊर्जा पैदा होती है और यही उर्जा आपस में मिल कर आसमानी बिजली का रूप ले लेता है।
दुनिया में आठ हजार लाख बार चमकती है बिजली
विश्व में प्रत्येक रोज 8 हजार, लाख बार बिजली कड़कती है। एक ऐसा इलाका भी है, जहां आसमानी बिजली कभी विराम ही नहीं लेती। इस इलाके को कभी खत्म न होने वाले तूफान का इलाका कहा जाता है। दरअसल, यह इलाका वेनेजुएला में है। जानकार बतातें हैं कि वेनेजुएला के लेकमरा काइबो को कुदरत का बिजली घर भी कहा जाता है। यहां साल के 365 दिनों में से 260 दिन तूफान आता हैं। यहां बादल का गरजना शायद ही कभी बंद होता है। कहतें हैं कि अक्टूबर के महीने में यहां हर मिनट 28 बार आसमानी बिजली चमकती है और गिरती भी है। वैज्ञानिक भाषा में इसे एवरलॉस्टिंग स्टोर्म या बीकन ऑफ मराकाइबो कहते हैं। गर्मी और नमी के अलावा दलदल वाली जमीन और तीन ओर से पहाड़ों से घिरा ये इलाका हर वक्त आसमानी आतिशबाजी से नहाया रहता है …।
This post was published on जुलाई 29, 2021 09:49
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