भारत का पाकिस्तान को करारा जवाब: सिंधु जल संधि स्थगित, राजनयिक संबंधों में कटौती

Indus Water Treaty deadlock: Pakistan calls for fresh talks

KKN गुरुग्राम डेस्क | जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में अप्रैल 2025 में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ एक के बाद एक सख्त कदम उठाए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण फैसला 1960 की सिंधु जल संधि को स्थगित करना और राजनयिक संबंधों में कटौती करना है।

इसके साथ ही अब भारत ने विश्व बैंक और न्यूट्रल एक्सपर्ट मिशेल लीनो की आगामी बैठकों में शामिल न होने का संकेत दिया है, जिससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक और झटका लग सकता है।

 क्या है सिंधु जल संधि?

सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई थी, जो दोनों देशों के बीच सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों के जल के बंटवारे को लेकर बनी थी। यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी और इसे दोनों देशों ने लंबे समय तक निभाया, यहां तक कि युद्धों के दौरान भी।

लेकिन अब, भारत ने पहली बार इसे स्थगित कर दिया है, जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी कूटनीतिक घोषणा मानी जा रही है।

 भारत के उठाए गए कड़े कदम

पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ निम्नलिखित कूटनीतिक निर्णय लिए हैं:

निर्णयविवरण
सिंधु जल संधि स्थगितपाकिस्तान को जल अधिकारों से जुड़े लाभ रोकने की शुरुआत
राजनयिक स्टाफ में कटौतीपाकिस्तानी उच्चायोग में भारतीय स्टाफ 55 से घटाकर 30 किया गया
अटारी सीमा चौकी बंदपंजाब में अटारी चेकपोस्ट से आवाजाही बंद कर दी गई
दक्षेस वीजा छूट योजना रद्दपाकिस्तानी नागरिक अब SVES के तहत भारत नहीं आ सकेंगे

 विश्व बैंक की बैठक और न्यूट्रल एक्सपर्ट से दूरी

भारत ने अब संकेत दिए हैं कि वह विश्व बैंक और न्यूट्रल एक्सपर्ट मिशेल लीनो द्वारा बुलाई जाने वाली आगामी बैठकों में भाग नहीं लेगा। यह बैठक परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (PCA) द्वारा विएना में नवंबर 2025 में आयोजित की जानी थी, जिसमें भारत के किशनगंगा और रतले हाइड्रो प्रोजेक्ट्स को लेकर पाकिस्तान की आपत्तियों पर चर्चा होनी थी।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया:

“संधि जब स्थगित हो चुकी है तो उसके तहत विवाद समाधान की प्रक्रिया में भाग लेने की बाध्यता नहीं बचती।”

 बांध विवाद की पृष्ठभूमि

पाकिस्तान ने भारत द्वारा बनाए जा रहे किशनगंगा (330 मेगावाट) और रतले (850 मेगावाट) जलविद्युत परियोजनाओं पर आपत्ति जताई है। ये दोनों परियोजनाएं क्रमशः झेलम और चिनाब नदियों पर स्थित हैं, जिन पर पाकिस्तान को विशेष अधिकार मिलते हैं।

परियोजनास्थानक्षमतापाकिस्तान की आपत्ति
किशनगंगागुरेज, जम्मू-कश्मीर330 MWनदी प्रवाह के डायवर्जन पर आपत्ति
रतलेचिनाब घाटी, जम्मू-कश्मीर850 MWबांध की ऊंचाई व डिजाइन को लेकर आपत्ति

पाकिस्तान ने इन प्रोजेक्ट्स को लेकर कुल 7 तकनीकी और कानूनी आपत्तियां जताई हैं।

 भारत की रणनीति में बदलाव

भारत ने वर्षों तक इन विवादों को शांतिपूर्वक सुलझाने की कोशिश की। लेकिन अब पहलगाम हमले के बाद यह स्पष्ट कर दिया गया है कि:

“आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते।”

भारत की रणनीति अब यह है कि जल संसाधनों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर पाकिस्तान को बिना जवाब के नहीं छोड़ा जाएगा, और इसी के तहत सिंधु जल संधि को रोका गया है।

 क्या कहती है अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया?

सिंधु जल संधि को दुनिया में सबसे सफल अंतरराष्ट्रीय जल समझौतों में गिना जाता है। इसके स्थगन से दक्षिण एशिया में तनाव बढ़ने की आशंका है। साथ ही, पर्यावरण और जल प्रबंधन से जुड़े क्षेत्र में भी इस फैसले के दूरगामी प्रभाव होंगे।

 विशेषज्ञों की राय

डॉ. स्नेहा मिश्रा, जल नीति विशेषज्ञ:

“भारत का यह निर्णय संकेत देता है कि अब पुराने नियमों के आधार पर संबंध नहीं चल सकते। पाकिस्तान को कूटनीतिक और आर्थिक दबाव झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए।”

ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) एके वर्मा, सामरिक विश्लेषक:

“पहलगाम हमला भारत के लिए एक रेड लाइन था। अब जल, जो कभी तटस्थ मुद्दा माना जाता था, एक रणनीतिक हथियार बन गया है।”

भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करना और न्यूट्रल एक्सपर्ट से दूरी बनाना केवल तकनीकी नहीं, बल्कि एक नीतिगत बदलाव का प्रतीक है। यह स्पष्ट करता है कि भारत अब एकतरफा समझौतों के बोझ तले नहीं रहेगा, खासकर जब सामने वाला देश आतंकवाद का समर्थन करता है

यह कदम आने वाले दिनों में न केवल पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाएगा, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को एक निर्णायक और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में मजबूत करेगा।

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