Entertainment

मेरे हाथो में नौ नौ चूड़िया है….

​खनकने लगा चूड़ियों का बाजार, स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है चूड़ी पहनना, सुहाग की निशानी होती है चूड़ियां

संतोष कुमार गुप्ता

चूड़िया खनके खनकाने वाले आ गये…,मेरे हाथो मे नौ नौ चूड़िया है जरा ठहरो सजन मजबूरिया है…,चूड़ी मजा न देगी कंगन मजा ना देगा…,गीतो को सुनने के बाद महिला ही नही हर किसी का मन बाग बाग हो जाता है। यानी की शादी विवाह का धूमधड़ाका पराकाष्ठा पर है। इस्लामपुर चूड़ी मंडी से लेकर मुस्तफागंज बाजार के आकर्षक श्रंगार दुकान सहित पुरे बिहार मे चूड़ियो का बाजार सज चुका है। चूडियां पहनने का शौंक हर लड़की को होता है। हमारे देश में तो इनको सुहाग की निशानी माना जाता है। इसके अलावा बदलते दौर मे यह फैशन का भी एक हिस्सा है। आजकल तो बाजार में अलग-अलग तरह की चूडियों की वैरायटी आसानी से मिल जाती हैं। लोग इनको अपने आउटफिट्स के साथ मैच करके पहनते हैं। चूडियां औरतों के हाथों की खूबसूरती को तो बढ़ाती हैं लेकिन शायद कुछ लोग यह नहीं जानते होंगे कि  कलाई में चूडियां पहनने से सेहत भी अच्छी रहती है। यह औरतों को ऊर्जा प्रदान करने में भी मददगार है।
औरतों के शरीर में पुरूषों के मुकाबले हार्मोंस का उतार-चढाव ज्यादा होता है। चूड़ियां इन हार्मोंस को बैलेंस रखती हैं। चूडियां पहनने से बॉडी में खून का दौरा बेहतर हो जाता है और थकावट भी नहीं होती।

यह मानसिक संतुलन को काबू में रखने में भी मददगार है। इसी वजह से अकेली औरतें एक साथ कई कामों को संभाल लेती हैं। 

चूडियां पहनने से सेहत अच्छी रहता है,जिससे औरतों को जल्दी थकावट भी नहीं होती। 

चूड़ियां एक आभूषण
कुछ चीजों का दौर कभी खत्म नहीं होता। पुराने समय से आज के आधुनिक समय तक भी यह चीज़ें ठीक वैसे ही इस्तेमाल की जाती हैं जैसे कि पहले होती थीं। इन्हीं चीज़ों की लिस्ट में से एक है महिलाओं द्वारा आभूषण के तौर पर पहनी जाने वाली ‘चूड़ियां”।

चूड़ियां या कंगन
यह गोलाकार चूड़ियां या कंगन हमेशा से ही स्त्रियों की सुंदरता को बढ़ाते आ रहे हैं। चाहे वह हाल ही में जन्मी नन्ही सी गुड़िया हो या फिर सफेद बालों वाली बुजुर्ग महिला। सभी को चूड़ियां पहनाने का रिवाज़ है। कुछ धर्मों में तो बच्ची के जन्म के साथ ही उसे शगुन के नाम पर चांदी के कंगन पहनाए जाते हैं।
श्रृंगार को बढ़ाती है
यह चूड़ियां नव-विवाहित स्त्री के श्रृंगार को भी बढ़ाने के काम आती हैं। शादी के बाद तो जैसे इन्हें पहनना जरूरत-सा हो जाता है। चाहे वह प्राचीन समय की बात हो या आज का आधुनिक युग जहां भारत जैसे सांस्कृतिक देश में भी महिलाएं पश्चिमी सभ्यता को अपनाते हुए ‘मॉडर्न’ हो गई हैं।
आज की मॉडर्न महिला
लेकिन फिर भी इन मॉडर्न महिलाओं द्वारा भी पारम्परिक रूप से चूड़ियां पहनी जाती हैं। केवल परम्पराओं के लिए ही नहीं, इसे फैशन का नाम देते हुए भी अलग-अलग डिजाइन की चूड़ियां पहनी जाती हैं जो प्राचीन भारत की चूड़ियों की झलक कतई नहीं देतीं।
क्या हैं वैज्ञानिक कारण
खैर चूड़ियां चाहे कैसी भी हों… किसी भी आकार की हों, अंत में तो वह स्त्री के श्रृंगार को बढ़ाने का काम ही करती हैं। लेकिन इन चूड़ियों से जुड़े कितने ही तथ्यों से अनजान हैं हम। बेशक हम चूड़ियों का परम्परागत आधार जानते होंगे, लेकिन इसके अलावा इन्हें पहनने के कई सारे वैज्ञानिक कारण भी हैं।
प्लास्टिक या कांच की चूड़ियां
यह चूड़ियां किसी धातु से यानी कि प्लास्टिक, मेटल, ग्लास, इत्यादि जिससे भी बनाई जाती हैं इन सभी चूड़ियों का अपना सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक कारण है। लेकिन सबसे पहले एक नज़र डालते हैं प्रत्येक धर्म में चूड़ियां पहनने का क्या रिवाज़ है तथा इसके पीछे क्या कारण दिया जाता है।
विवाहित स्त्री के लिए महत्वपूर्ण
सबसे पहले चूड़ियों का महत्वपूर्ण संदर्भ यदि किसी से जोड़ा जाता है तो वह हैं शादीशुदा स्त्रियां। एक विवाहित स्त्री के लिए चूड़ियां केवल एकमात्र श्रृंगार की वस्तु या फिर आभूषण नहीं हैं, बल्कि इसके पीछे कई सारे कारण हैं। शादी के बाद स्त्रियों को सोने से बने कंगनों से अधिक ‘कांच की चूड़ियां’ पहनने को कहा जाता है।
कांच की चूड़ियां
मान्यता है कि कांच की चूड़ियां पहनने से स्त्री के पति तथा बेटे का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। यह मान्यता कुछ धर्मों में इतनी गहरी है कि चूड़ियां बदलते समय भी स्त्रियां इस तरीके से चूड़ियां उतारती हैं कि उनके हाथ खाली ना रहें। कम से कम उनमें एक चूड़ी अवश्य ही हो।
एक रिवाज़
भारत में चूड़ियां पहनने का रिवाज़ शायद इतना पुराना है, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। ऐसा माना जाता है कि यह परम्परा देवी-देवताओं के युग से चली आ रही है। इसीलिए तो हिन्दू धर्म की सभी देवियों की तस्वीरों तथा मूर्तियों में उन्हें चूड़ी पहने हुए दिखाया जाता है।
चूड़ा पहनने का रिवाज़
अब जब धार्मिक रूप से यह प्रचलन इतना गहरा है तो लोग तो इसे अपनाएंगे ही। हिन्दू धर्म के अलावा अन्य भी कई धर्मों तथा भारतीय क्षेत्रों में चूड़ियां पहनने का अपना ही रिवाज़ है। पंजाब में शादी के समय दुल्हन द्वारा लाल रंग की चूड़ियां, जिन्हें चूड़ा कहा जाता है, वह पहना जाता है।
40 दिनों तक नहीं उतारते
यह चूड़ा पहनना बेहद जरूरी माना जाता है क्योंकि यह उनके सुहाग की निशानी होती है। शादी में खास रूप से एक रस्म के दौरान यह चूड़ा पहनाया जाता है और एक बार पहनने के बाद इसे अगले 40 दिनों तक उतारा नहीं जाता। 40 दिन पूरे होने के बाद स्त्री चाहे तो इसे उतार सकती है या फिर कुछ दिन और भी पहन सकती है।
पश्चिम बंगाल मे शंख का रिवाज़
पंजाब से बिल्कुल ही विपरीत दिशा में पड़ने वाले क्षेत्र पश्चिम बंगाल में आपको चूड़ियों का एक अलग ही रूप दिखाई देगा। यहां दो खास प्रकार की चूड़ियां पहनी जाती हैं, जिसे शाखा और पौला कहते हैं। शाखा का रंग सफेद होता है तथा पौला का लाल। यह आमतौर से ‘लाख’ से बनी चूड़ियां होती हैं, जिन्हें किसी सोने के कंगन से भी अधिक महत्व प्रदान किया जाता है।
महिला पर कितना प्रभाव?
चूड़ियां किसी भी धातु से बनी हों, लेकिन अंत में वह हाथों की सुंदरता को बढ़ाने के लिए ही उपयोग में आती हैं। लेकिन क्या कारण केवल इतना ही है। शायद नहीं… क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टि से चूड़ियां जिस धातु से बनी होती हैं उसका उसे पहनने वाली महिला के आसपास के वातावरण तथा स्वयं उसके स्वास्थ्य पर भी बराबर का असर होता है।
प्लास्टिक की चूड़ियां
उदाहरण के लिए ऐसा माना जाता है कि प्लास्टिक का उपयोग करके बनाई गई चूड़ियां रज-तम प्रभाव वाली होती हैं। यह चूड़ियां वातावरण में से नकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर खींचती हैं। इसीलिए डॉक्टरों का मानना है कि प्लास्टिक से बनी हुई चूड़ियां पहनने से स्त्री के विभिन्न शारीरिक अंगों पर एक अलग सा दबाव बनता है।
कांच की चूड़ियों की आवाज़
वह कई बार बीमार भी महसूस करती हैं। लेकिन इसके बिल्कुल विपरीत है कांच से बनी हुई चूड़ियां। साइंस का मानना है कि कांच की चूड़ियों की आवाज़ से आसपास की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है। इतना ही नहीं, हिन्दू धर्म में कांच की चूड़ियों को सात्विक भी माना जाता है।
हरे रंग की चूड़ियां
कांच की चूड़ियों को कुछ खास रंगों से भी जोड़ा जाता है। नवविवाहित स्त्रियों को हरे रंग की कांच की चूड़ियां पहनने के लिए कहा जाता है। यह हरा रंग एक पेड़ की हरी पत्तियों की तरह ही अपनी छांव से खुशहाली प्रदान करता है। साथ ही यह रंग उस महिला को ‘देवी’ के रूप’ से भी जोड़ता है।
लाल रंग की चूड़ियां
हरे रंग के अलावा लांल रंग की कांच की चूड़िया पहनने का भी विधान भारत में शामिल है। यह रंग उस स्त्री को आदि शक्ति से जोड़ता है। चूड़ियों के लाल रंग में भी कई प्रकार के रंग होते हैं जैसे कि गहरा लाल, हल्का लाल, रक्त के समान लाल, आदि। इन सभी रंगों का अपना महत्व है।
कितनी चूड़ियां पहनें
रंगों के अलावा एक स्त्री द्वारा कितनी चूड़ियां पहनी जानी चाहिए इसके पीछे भी विभिन्न कारण दिए गए हैं। यदि तीन या इससे कम चूड़ियां पहनी जाएं तो यह उस स्त्री में शक्ति का प्रवाह लाती हैं। आमतौर पर इतनी कम चूड़ियां एक अविवाहित कन्या द्वारा ही धारण की जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि यह 2-3 चूड़ियां ही उस कन्या में शक्ति का संचार कर उसे मानसिक तथा शारीरिक रूप से ताकतवर बनाती हैं।
बहुत सारी चूड़ियां
लेकिन जब यह चूड़ियां ज्यादा संख्या में हों तो इसका महत्व कई गुणा ज्यादा बढ़ जाता है। साइंस का भी मानना है कि जब स्त्री के दोनों हाथों में काफी सारी चूड़ियां पहनी जाती हैं तो यह खास प्रकार की ऊर्जा पैदा करती हैं, जिन्हें धार्मिक संदर्भ से ‘मरक’ कहा जाता है। यह ऊर्जा उस स्त्री को हर प्रकार की बुरी नज़र से बचा कर रखती है।
चूड़ियों की ऊर्जा
बताए गए सभी तथ्य हमें चूड़ियों की सकारात्मक ऊर्जा की महत्ता समझाती हैं। इन्हें पहनने का कितना फायदा है यह तो आपने जाना लेकिन यही चूड़ियां समय आने पर विनाशकारी भी बन सकती हैं यह बहुत कम लोग जानते हैं। ऐसा तब होता है जब चूड़ियां टूटती हैं या फिर उनमें दरार आ जाती है। ऐसी मान्यता है कि चूड़ियों का टूटना उस स्त्री या उससे जुड़े लोगों के लिए एक अशुभ संकेत लेकर आता है।
चूड़ियों का टूटना
लेकिन साइंस का मानना है कि यह उस स्त्री के आसपास मौजूद साधारण से काफी अधिक मात्रा की नकारात्मक ऊर्जा का परिणाम होता है। जिसके चलते यह ऊर्जा स्त्री के आभूषणों में से सबसे पहले उसकी चूड़ियों पर प्रहार करती है। चूड़ियों के टूटने के साथ उनमें दरार आ जाना ही अशुभ माना जाता है।
चूड़ियों में दरार
ऐसा होने पर स्त्री को चूड़ियां उतार देने की सलाह दी जाती है। यहां भी वैज्ञानिक दृष्टि से चूड़ियों में दरार आना स्त्री को घेरने वाली नकारात्मक ऊर्जा का परिणाम है। यह ऊर्जा उसकी चूड़ियों के भीतर जगह बनाती है और उन्हें धीरे-धीरे नष्ट करती है। यदि दरार आने पर भी यह चूड़ियां उतारी ना जाएं तो यह स्त्री के स्वास्थ्य पर हावी हो जाती हैं।

This post was published on मई 9, 2017 19:16

KKN लाइव टेलीग्राम पर भी उपलब्ध है, खबरों की खबर के लिए यहां क्लिक करके आप हमारे चैनल को सब्सक्राइब कर सकते हैं।

Show comments
Published by
संतोष कुमार गुप्‍ता

Recent Posts

  • Bihar

राजगीर में बना पुलिस का शहीद स्मारक

KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के राजगीर पुलिस अकादमी में शहीद स्मारक का निर्माण कार्य पूरा… Read More

जनवरी 25, 2023
  • Videos

बाबा साहेब ने इन खतरों की ओर किया था इशारा

संविधान सभा में दिए अपने आखिरी भाषण में बाबा साहेब डॉ. बीआर आंबेडकर ने कई… Read More

जनवरी 22, 2023
  • World

ऐसे हुआ कैलेंडर का निर्माण

KKN न्यूज ब्यूरो। वर्ष 2023 का आगाज हो चुका है। वर्ष का पहला महीना जनवरी शुरू… Read More

जनवरी 2, 2023
  • Videos

गुलाम भारत की अनकही दास्तान

गुलाम भारत की महत्वपूर्ण कहानी संक्षेप में...। ईस्ट इंडिया कंपनी के आने से लेकर भारत… Read More

दिसम्बर 27, 2022
  • National

वैज्ञानिकों के खिलाफ किसने रची साजिश

KKN न्यूज ब्यूरो। कुछ साल पहले की बात है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो… Read More

दिसम्बर 23, 2022
  • Videos

कुढनी उपचुनाव जनादेश में छिपा है कई संकेत

कुढनी विधानसभा, मुजफ्फरपुर जिला में आता है। विधानसभा के उपचुनाव को लेकर यह इलाका बिहार… Read More

दिसम्बर 9, 2022