मुजफ्फरपुर। अंग्रेज थानेदार लुईस वालर को मीनापुर थाना में चिता सजा कर देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलाने की खातिर फांसी को आलिंगन करने वाले अमर शहीद जुब्बा सहनी का पैतृक गांव चैनपुर…। आजदी के सात दशक बाद भी अपनी बदहाली पर आठ आठ आंसू बहाने को अभिशप्त है। झोपड़पट्टियों से अटा पड़ा इस गांव में कई पक्का मकान विकासवाद की गवाही दे देता है। कहतें हैं कि चुनाव का मौसम आते ही यह गांव नेताओं का तीर्थस्थल बनता रहा है। यहां की मिट्टी को नमन करके राजनीति करने की परंपरा रही हैं। बावजूद इसके आज तक चैनपुर को राजश्व गांव का दर्जा नही मिलना। अब यहां के लोगो को भी चुभने लगा है।
गांव में प्रवेश करतें ही कमर में मैला कुचला एक धोती लपटे हुए वयोबृद्ध चन्देश्वर सहनी से मुलाकात हो गयी। बदलाव की बाबत सवाल पूछते ही श्री सहनी भड़क गये। कहने लगे कि गांव में तीन चौथाई से अधिक लोग आज भी निरक्षर है। कहने को आजादी के बाद गांव में एक उर्दू विद्यालय की स्थापना हुई। किंतु, हिन्दी के छात्रों को पढ़ने के लिए गांव से करीब एक किलोमिटर दूर धारपुर जाना परता है।
गावं में आगे बढ़ते ही सोमारी देवी पर नजर पड़ी। उसके गोद में करीब एक साल का बच्चा है। बच्चा का आंख भीतर तक धसा है और कलेजा व बांह का हड्डी तक दीख रहा है। जबकि, उसका पेट फुला हुआ है। ऐसे और भी दर्जनो बच्चे दिखे, जो जबरदस्त कुपोषण के शिकार हैं। समीप में ही अर्द्धनग्न हालत में बैठे राजेन्द्र सहनी कहने लगे गांव में सरकारी डॉक्टर नही आतें। अलबत्ता, एएनएम चली आती है, वह भी यदा कदा ही…। स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर चैनपुर से करीब तीन किलोमिटर दूर गोरीगामा में स्वास्थ्य उपकेन्द्र है। किंतु, वहा गांव वालों को देखने के लिए न डॉक्टर है और नाही दवा। जगन्नाथ सहनी कहतें हैं कि गावं के लोग, दो पाईप वाले यानी 40 फीट गहरा चापाकल का पानी पीतें हैं। जबकि, लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग इस पानी को पीने के लायक नही मानता है। दुसरी ओर तीन सरकारी चापाकल खराब पड़ा है।
कहने के लिए इस गांव का विद्युत्तिकरण हो चुका है। गांव में चारो ओर झुका हुआ पोल और खतरनाक हालात में लटक रहा बिजली की तार देखने को मिल जाता है। लोगो के घर में मीटर भी लगा है। पर, वह चलता नही है। मामुली तुफान भी आ जाये तो सप्ताहों बिजली नही आती है। वैध कनेक्शन तो दर्जन भर लोगो के पास भी नही है। गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क है। किंतु, निर्माण के अल्प अवधि में ही इस सड़क का पींच उखड़ने लगा है। मुखिया अजय सहनी बतातें हैं कि सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी ने पिछले साल ही यहां गौशाला बनाया था। किंतु, रख रखाव की कमी से वह बंद पड़ा है।
लब्बोलुआब ये कि शहीद जुब्बा सहनी व बांगूर सहनी का पैतृक गांव चैनपुर आज भी फटेहाली, बेकारी और कुपोषण जैसी बुनियादी समस्याओं की मकड़जाल से निकल नही पाया है। यहां यह बताना जरुरी है कि 16 अगस्त को मीनापुर थाना पर तिरंगा लहराने के दौरान अंग्रेजो की गोली से शहीद होने वाले बांगूर सहनी व इसी आरोप में 11 मार्च 1944 को सेंट्रल जेल भागलपुर में फांसी का आलिंगन करने वाले जुब्बा सहनी का बचपन इसी गांव में बीता था। सवाल उठना लाजमी है कि हमारे हुक्मरान चैनपुर को भूल कैसे गये? बहरहाल, यहां के लोगो को आज भी अपने भाग्य विधाता के आने का इंतजार है।
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