KKN गुरुग्राम डेस्क | बिहार की सियासत एक बार फिर गर्म हो गई है। केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना को मंजूरी दिए जाने के बाद प्रदेश में नेताओं की बयानबाज़ी तेज़ हो गई है। इसी क्रम में जन सुराज आंदोलन के सूत्रधार और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बड़ा बयान देकर नीतीश सरकार और भाजपा दोनों को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
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जातीय जनगणना को लेकर क्या बोले प्रशांत किशोर?
नवगछिया में जनसंवाद के दौरान प्रशांत किशोर ने कहा:
“जातीय जनगणना तो बिहार में दो-तीन साल पहले ही हो चुकी है। सवाल यह नहीं है कि गिनती हुई या नहीं, सवाल यह है कि जो गिनती हुई, उस पर सरकार ने क्या किया?”
उनका सीधा निशाना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्र की भाजपा सरकार पर था। उन्होंने कहा कि सिर्फ आंकड़े जुटाने से समाज में बदलाव नहीं आता, असली परिवर्तन तब आता है जब उन आंकड़ों पर योजना बनाकर ईमानदारी से काम किया जाए।
जातीय आंकड़ों का खुलासा और सरकार की चुप्पी
प्रशांत किशोर ने बिहार सरकार द्वारा कराई गई जातीय जनगणना के कुछ आंकड़ों का उल्लेख करते हुए कहा:
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केवल 3% दलित बच्चों ने 12वीं की परीक्षा पास की।
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5% से भी कम अतिपिछड़ा वर्ग के छात्र 12वीं उत्तीर्ण कर सके।
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सरकार ने कहा था कि 94 लाख गरीब परिवारों को ₹2 लाख की सहायता दी जाएगी, लेकिन किसी को एक रुपया तक नहीं मिला।
उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा:
“किताब खरीदने से कोई विद्वान नहीं बनता, पढ़ने से बनता है। वैसे ही जातीय जनगणना करने से सुधार नहीं आएगा, जब तक उन आंकड़ों पर काम न हो।”
नीतीश सरकार और बीजेपी पर तीखा हमला
प्रशांत किशोर ने कहा कि नीतीश कुमार और बीजेपी ने जातीय जनगणना को सिर्फ राजनीतिक रोटी सेंकने का औज़ार बना लिया है। उन्होंने कहा:
“जातीय आंकड़ों का इस्तेमाल समाज को बांटने और उन्माद फैलाने के लिए हो रहा है, न कि विकास के लिए। ये लोग सिर्फ वोट के लिए जातियों की बात करते हैं, काम के लिए नहीं।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जो सरकारें खुद को समाज के हितैषी बताती हैं, उन्होंने अब तक जातीय असमानता दूर करने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई।
“दलित और मुस्लिमों की गिनती सालों से हो रही है, पर हालात जस के तस”
प्रशांत किशोर ने कहा कि:
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दलितों की गिनती 78 वर्षों से हो रही है।
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मुसलमानों की गिनती पिछले 18 वर्षों से की जा रही है।
लेकिन फिर भी इन समुदायों की शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक हालत में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ। उन्होंने सवाल किया कि जब इतने वर्षों से इनकी स्थिति नहीं सुधरी, तो अब नए आंकड़े लाने से क्या बदलेगा?
“गिनती मात्र से सुधार नहीं होता, नीयत और नीति से होता है।”
राष्ट्रीय मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास?
प्रशांत किशोर ने यह भी कहा कि देश की विदेश नीति और सुरक्षा केंद्र सरकार का विषय है और उसमें बिहार को घसीटने की कोशिश बंद होनी चाहिए।
“चीन और पाकिस्तान के मुद्दे पर लोगों की भावना भड़काकर बिहार के असल मुद्दों – रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य – से ध्यान हटाने का प्रयास हो रहा है।”
उन्होंने यह साफ किया कि बिहार के लोग अब जागरूक हो चुके हैं और वे विकास आधारित राजनीति को प्राथमिकता देंगे।
बिहार की जातीय राजनीति: पृष्ठभूमि और वर्तमान परिप्रेक्ष्य
बिहार में जातीय समीकरण हमेशा से चुनावी राजनीति का प्रमुख हिस्सा रहे हैं। चाहे वो लालू प्रसाद यादव की RJD हो या नीतीश कुमार की JDU, सभी दलों ने अपनी-अपनी राजनीतिक रणनीति जाति आधार पर बनाई है।
2023 में बिहार सरकार ने जातीय सर्वे कराया, लेकिन उसके आधार पर कोई बड़ी योजना या बजट घोषणा सामने नहीं आई। इस कारण विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाए हैं।
प्रशांत किशोर ने इसी स्थिति का फायदा उठाकर खुद को एक जवाबदेही और विकास के पक्षधर नेता के रूप में प्रस्तुत किया है।
प्रशांत किशोर की बातें सिर्फ आलोचना तक सीमित नहीं हैं। वे डेटा, नीतियों और कार्यान्वयन के बीच के अंतर को सामने ला रहे हैं। उनके बयानों से यह संकेत मिलता है कि वे विकास आधारित राजनीति को बढ़ावा देना चाहते हैं, न कि सिर्फ जातीय समीकरणों पर आधारित सत्ता की राजनीति।
अब देखना यह है कि बिहार की जनता कितनी जल्दी इन मुद्दों को समझती है और भविष्य में वोटिंग व्यवहार में कितना बदलाव आता है।
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