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बिहार चुनाव की दिशा: चिराग पासवान और प्रशांत किशोर के बीच का राजनीतिक मुकाबला

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जैसे-जैसे बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राज्य का राजनीतिक माहौल गर्माता जा रहा है। इस बीच, चिराग पासवान और प्रशांत किशोर जैसे प्रमुख नेता अपनी बयानों और रणनीतिक कदमों के जरिए चर्चा का विषय बने हुए हैं। जहां प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बिहार में बड़े पैमाने पर ध्यान आकर्षित कर रही है और राज्य भर में विशाल रैलियों का आयोजन कर रही है, वहीं चिराग पासवान, जो केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के नेता हैं, बिहार चुनाव में तीसरे मोर्चे के उभरने को लेकर संकोचित हैं। हाल ही में एक इंटरव्यू में, पासवान ने किशोर के चुनावी प्रभाव को नकारते हुए उनके योगदान को स्वीकार किया।

चिराग पासवान का प्रशांत किशोर की भूमिका पर आकलन

जब चिराग पासवान से पूछा गया कि क्या प्रशांत किशोर आगामी चुनावों में “X-फैक्टर” साबित हो सकते हैं, तो उन्होंने इस विचार को नकारते हुए कहा, “यह निश्चित रूप से एक फैक्टर है, लेकिन मुझे नहीं पता कि X, Y, या Z फैक्टर क्या है। मैं 2020 में खुद एक X-फैक्टर था, इसलिए मुझे यकीन है कि प्रशांत को यह सुनकर अच्छा नहीं लगेगा, क्योंकि उस वक्त मैंने जो प्रदर्शन किया, उससे वह बेहतर प्रदर्शन करना चाहेंगे।”

पासवान का यह बयान 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी LJP के प्रदर्शन का संदर्भ देता है, जहां उनकी पार्टी ने सीमित संख्या में सीटें जीती थीं। वह यह संकेत देने की कोशिश कर रहे हैं कि किशोर की ज्यादा सीटें जीतने की आकांक्षा शायद सफलता में तब्दील नहीं हो सकेगी, क्योंकि बिहार की राजनीति पारंपरिक रूप से दो-धारी मुकाबले का मैदान रही है।

बिहार का राजनीतिक परिदृश्य: एक दो-तरफा मुकाबला

हालांकि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी अपने व्यापक पदयात्रा और राजनीतिक रैलियों के माध्यम से सुर्खियों में रही है, चिराग पासवान को यकीन है कि बिहार का चुनाव एक बार फिर दो प्रमुख राजनीतिक गठबंधनों — एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) और महागठबंधन — के बीच ही सीमित रहेगा।

पासवान ने यह स्पष्ट किया कि बिहार का चुनावी मतदाता काफी जागरूक है, जिससे किसी तीसरी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण जीत हासिल करना कठिन है। उन्होंने कहा, “बिहार के चुनाव आमतौर पर दो-तरफा मुकाबले होते हैं। इसलिए अंततः यह एनडीए या महागठबंधन में से कोई एक ही जीतेगा। मुझे नहीं लगता कि कोई तीसरी पार्टी जीत सकती है, शायद वे किसी एक गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकती हैं, लेकिन यह समय ही बताएगा। लेकिन जीत के लिहाज से, मुझे तीसरी पार्टी के लिए ज्यादा स्थान नहीं दिखाई देता।”

यह टिप्पणी बिहार में प्रमुख राजनीतिक गठबंधनों की प्रभावी भूमिका को दर्शाती है। एनडीए, जो वर्तमान में केंद्र और बिहार में सत्ता में है, और महागठबंधन, जो विपक्षी दलों का एक गठबंधन है, बिहार चुनावों में परंपरागत रूप से मुख्य प्रतिस्पर्धी रहे हैं। पासवान तीसरे मोर्चे के उभार को अवास्तविक मानते हैं, हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया कि ऐसी पार्टी बड़े दलों के वोट शेयर को प्रभावित कर सकती है।

प्रशांत किशोर की यात्रा: चुनावी रणनीतिकार से जन सुराज पार्टी के नेता तक

प्रशांत किशोर, एक अनुभवी राजनीतिक रणनीतिकार, भारत में कई सफल चुनाव अभियानों के प्रमुख सदस्य रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस को चुनावी सफलता दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही है, और उन्होंने अपनी पहचान भारत के शीर्ष चुनावी रणनीतिकारों में बनाई है। हालांकि, 2024 में, किशोर ने अपने राजनीतिक करियर को नई दिशा देने का निर्णय लिया और अपनी खुद की पार्टी, जन सुराज पार्टी, की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य 2025 में बिहार विधानसभा की सभी सीटों पर चुनाव लड़ा जाना है।

किशोर का पार्टी बनाने का कदम राज्य भर में पदयात्रा (पांव यात्रा) के साथ शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य सीधे मतदाताओं से जुड़ना और एक जमीनी नेटवर्क बनाना था। उनका मुख्य संदेश अच्छे शासन और बिहार के आम लोगों के मुद्दों को प्राथमिकता देना है। “जन सुराज” (लोगों का शासन) के सिद्धांत के तहत, किशोर ने खुद को स्थापित राजनीतिक दलों के विकल्प के रूप में पेश किया है, और वह अपनी नई पार्टी को एक राजनीतिक पहल के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।

बहस: चिराग पासवान बनाम प्रशांत किशोर

चिराग पासवान और प्रशांत किशोर के बीच की राजनीतिक प्रतिद्वंदिता तब और बढ़ गई जब किशोर ने यह सुझाव दिया कि चिराग पासवान को केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए और बिहार चुनाव पर पूरा ध्यान केंद्रित करना चाहिए। किशोर ने कहा, “जिस दिन चिराग केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा देंगे और यह स्पष्ट करेंगे कि वह बिहार के लिए काम करेंगे, तो लोग उन्हें बिहार में गंभीरता से लेंगे।”

ANI से बातचीत में, किशोर ने यह भी कहा कि बिहार में लोग उन्हें गंभीरता से तभी लेने लगे थे जब उन्होंने यह स्पष्ट किया कि वह पहले जैसे काम नहीं करेंगे और तीन साल से बिहार में ही रहकर काम कर रहे हैं।

किशोर का यह बयान इस बात को इंगीत करता है कि पासवान का केंद्रीय मंत्री पद, जो उन्हें दिल्ली में रखने वाला एक कार्यभार है, बिहार की जनता के मुद्दों से दूर करता है। किशोर का मानना है कि एक नेता को अपने क्षेत्र में रहकर जनता से सीधे संवाद करना चाहिए ताकि विश्वास और विश्वसनीयता बनी रहे।

चिराग पासवान का किशोर के सुझाव पर जवाब

चिराग पासवान ने हालांकि किशोर के सुझाव को नकारते हुए कहा कि वह केंद्रीय मंत्री पद पर रहते हुए भी बिहार के मामलों में सक्रिय रूप से शामिल हैं। पासवान ने यह बताया कि उनका केंद्रीय सरकार में पद होना बिहार के लिए और भी प्रभावी काम करने का अवसर प्रदान करता है क्योंकि वह राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों में बदलाव ला सकते हैं और बिहार की जरूरतों को सर्वोच्च स्तर पर प्रतिनिधित्व दिला सकते हैं।

पासवान ने किशोर के बयान का जवाब देते हुए कहा, “मैं अभी भी बिहार के मुद्दों से गहरे तौर पर जुड़ा हुआ हूं और राज्य में विकास के लिए काम करता हूं, चाहे वह राष्ट्रीय स्तर पर हो या राज्य में।”

जैसे-जैसे बिहार में चुनाव करीब आते जा रहे हैं, राज्य का राजनीतिक परिदृश्य इन प्रमुख नेताओं और उनकी पार्टियों के बीच विभाजित होता जा रहा है। चिराग पासवान बिहार के विकास के लिए अपनी रणनीति को साकार करने के लिए काम कर रहे हैं, जबकि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी उन मतदाताओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है जो पारंपरिक राजनीतिक स्थापित दलों से संतुष्ट नहीं हैं।

बिहार चुनाव 2025 में एक रोमांचक मुकाबला बनने के आसार हैं, जिसमें एनडीए, महागठबंधन और किशोर की पार्टी जैसे नए खिलाड़ी एक साथ मुकाबला करेंगे। हालांकि पासवान का मानना है कि अंत में यह चुनाव या तो एनडीए या महागठबंधन के पक्ष में होगा, लेकिन तीसरी पार्टियों का प्रभाव पूरी तरह से नकारा नहीं किया जा सकता है।

चिराग पासवान और प्रशांत किशोर के बीच चल रही यह प्रतिद्वंदिता बिहार की राजनीति में एक नई दिशा का संकेत देती है। दोनों नेता बिहार के भविष्य को आकार देने की कोशिश कर रहे हैं, और इस राज्य का राजनीतिक परिदृश्य आने वाले वर्षों में एक नया मोड़ ले सकता है।

बिहार के मतदाता यह तय करेंगे कि उनका भविष्य किसके नेतृत्व में होगा, और यह चुनावी प्रक्रिया इस राज्य की राजनीति की दिशा तय करेगी।


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