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आधुनिकता के दौर मे खो गया मुखिया जी और बटूक भाई का चौपाल

​सोशल मीडिया के दौर मे ग्रामीण इलाको से गुम हो रहा रेडियो

अब खेती गृहस्थी व चौपाल कार्यक्रम को चाव से नही सुनते है लोग

लोकगीत व बिरहा दंगल कभी रेडियो का था आकर्षक

शाम होते ही घर घर बजने लगती थी रेडियो

संतोष कुमार गुप्ता

मुजफ्फरपुर । गोर लागा तानी मुखियाजी।खुश रहऽ बटूक भाई।प्रणाम मुखिया जी।खुश रहूं गीता बहिन।शाम के साढे छह बजते ही लोग रेडियो के पास जुटने लगते थे।आकाशवाणी पटना से प्रसारित होने वाले खेती गृहस्थी व चौपाल कार्यक्रम को चाव से सुनते थे।किंतु आकाशवाणी रेडियो से प्रसारित होनेवाले लोकप्रिय कार्यक्रम खेती गृहस्थी व ग्रामिण

चौपाल कार्यक्रम ख्याति खो रहा है।भागमभाग की इस दौर मे इंटरनेट व सोशल मीडिया के जमाने मे रेडियो का स्वर्णिम दौर समाप्ती की ओर है।खेती के सम सामयिक सुझाव कारगर होते थे। शारदा सिन्हा के लोकगीत हो या बलेशर

का बिरहा का धुन लोगो मे लोक उमंग भर देता था।भरत शर्मा व मदन राय का निरगुन जब रेडियो पर बजता था तो लोग घर से बाहर निकल पड़ते थे।लाल किला के प्राचीर से पीएम ने क्या बोला लोग रेडियो से चिपक कर सुनते थे।बलदेवा नंद सागर का संस्कृत समाचार हो या दोपहर का धीमी गति का समाचार को सुनने को कभी भीड़ लगती थी।दोपहर के डेढ बजे मे पीपही के धुन पर लोक स्वरी के धुन आज भी लोगो को याद है।शाम मे बृजाभार का पाठ लोग गौर से सुनते थे।किंतु डीजे,सोशल मीडिया व आधुनिकता की इस दौर मे रेडियो कहीं ना सुनायी देती है।ना ही दिखायी देती है।

मेमोरी कार्ड से मनचाहा संगीत

अब नये रेडियो मे मेमोरी कार्ड लगाने की व्यवस्था है।कार्ड रिडर मे मेमोरी कार्ड लगाकर रेडियो के माध्यम से पलंग करे चोये चोयें….,किल्ली मे किल्ली लगाके, टींकू जी आ,मुन्नी बदनाम हुई… आदि गीतो का आनन्द लिया जा रहा है। अब ना वीसीडी ना ही डेक और ना ही कैसेट का झंझट । मेमोरी मे हजारो गाने लोड कराइऐ,तथा निर्बाध गाने सुनिऐ।

लोकप्रिय हो रहा एफएम चैनल

नेपाल से प्रसारित हो रहे एफएम चैनल उत्तर बिहार मे लोकप्रिय हो रहा है। राजदेवी एफएम,जानकी एफएम,जलेश्वरनाथ एफएम,रेडियो टूडे का मैथिली कार्यक्रम का लोग मुरीद बनते जा रहे है। विदेशिया नाच प्रोग्राम से लेकर भोजपुरी कार्यक्रम लोगो के लिऐ आकर्षण का केन्द्र है। नतिजतन ग्रामिण क्षेत्रो मे रेडियो के प्रति लोगो का आकर्षक बढ़ा है।अब कुछ जगहो पर रेडियो बच भी गया है जहां पर लोग एफएम को ही पसंद करते है।महादलित बस्ती के कुछ लोग दूसरे प्रदेशो से कमाकर लौटते है तो एक रेडियो जरूर खरीद कर लाते है।किंतु कुछ ही दिनो मे औने पौने दामो पर उसको नीलाम कर दिया जाता है।

दहेज मे साइकिल घड़ी के साथ रेडियो मांगने का भी था चलन
पहले रेडियो को दहेज मे भी मांगा जाता था।साइकिल घड़ी के साथ रेडियो नही मिलता तो इसका खामियाजा वधू पक्ष को भुगतना पड़ता।उस वक्त रेडियो दिन के अलग-अलग समय में घर के अलग-अलग लोगों की जिंदगी से जुड़ा होता था। दोपहर को  माँ, चाची, दीदी वगैरह लोग छत पर धान-गेहूं सुखाती हुई ‘नारी-जगत’ और लोकगीत सुनती थीं तो सुबह के साढ़े आठ  बजे घर का नया मैट्रिक पास लड़का विविध भारती पर ‘चित्रलोक’ में नये गानों पर थिरक रहा होता था। शाम का समय घर के बड़ों के समाचार सुनने का उसके बाद रेडियो फिर घर के लड़के-लड़कियों के कब्जे में। रात में रेडियो पर बज रहे रफ़ी और किशोर के गीत एक छत से दूसरी छत तक न जाने क्या-क्या सन्देश पहुंचा रहे होते थे।  उस समय गाने से पहले गायक, गीतकार, संगीतकार सबका नाम आता था। अगला गीत है फिल्म ‘आन मिलो सजना’ से, गीतकार हैं आनंद बख्शी, संगीत दिया है लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने और गाया है किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने। मतलब पूरा जेनरल नॉलेज। भारतीय संगीत के बारे में आज जो भी समझ है वह रेडियो के ही कारण है। ग़ज़ल सुनना आकाशवाणी पटना के उर्दू कार्यक्रम ने सिखाया। पन्द्रह साल की उम्र में अगर मेंहदी हसन, अहमद हुसैन-मुहम्मद हुसैन और गुलाम अली अच्छे लगने लगे थे और उर्दू के मुशायरे समझ में न आते हुए भी आकर्षित करते थे तो इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ रेडियो ही था।
ताड़ी दुकान पर ही बिक गया सरकारी रेडियो
सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं व देश विदेश की खबरों की जानकारी लेने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री महादलित रेडियो योजना के तहत वितरित की गई रेडियो की आवाज अब सुनाई नहीं देती है। वित्तीय वर्ष 2012-13 व 2013-14 के तहत महादलित बस्तियों में रेडियो का वितरण किया गया था। लेकिन तीन साल में ही किसी भी महादलित परिवार में सरकार द्वारा दी गई रेडियो अब देखने को नहीं मिलती है। इन बस्तियों में आकाशवाणी की आवाज गुम हो गई है। सरकार महादलितों को बसाने के लिए बांस गीत का पर्चा वितरण कर रही है। रोजगार सृजन कर रही है। संचार क्रांति के इस युग में महादलित परिवारों को दी गई रेडियो पेट की आग बुझाने के आगे फीका पड़ गई। ऐसे परिवार रेडियो की बैटरी खर्च वहन करने में सक्षम नहीं है। इन्हें केवल पेट की आग की चिंता सताती रहती है। इस योजना के तहत मीनापुर प्रखंड क्षेत्र के सभी 28  पंचायतो के विभिन्न महादलित बस्तियों में महादलित परिवारों को रेडियो उपलब्ध कराया गया था। लेकिन तीन-चार साल में ही रेडियो की आवाज बस्तियों में नहीं सुनाई देती है।
चार सौ की दर से खरीदा गया था रेडियो
सरकार ने महादलित परिवार के बीच रेडियो का वितरण करने के लिए प्रति रेडियो 400 रुपये की दर से खरीदी थी। उत्तम क्वालिटी नहीं होने के कारण कम ही समय में खराब हो गया। रेडियो की खरीदारी के समय गुणवत्ता का ख्याल नहीं रखा गया। विकासमित्रों द्वारा चयनित महादलित परिवारों को रेडियो दी गई थी। पैसे के अभाव में रेडियो बेकार पड़े है। जानकारी के अनुसार घर में बेकार पड़े रेडियो को लोगों ने कबाड़ में बेच डाला।
प्रखंड क्षेत्र के मीनापुर सेंटर,महदेईया व मीनापुर के महादलित बस्ती के लोगो का कहना है कि तीन वर्ष पहले रेडियो मिला था। एक ही महीना में खराब हो गया। एतवरिया देवी का कहना है कि बड़ा खराब रेडियो मिलल रहे। बैट्री ना रहे। पेट देखू की रेडियो। लंगड मांझी का कहना है कि रेडियो जो मिलल रहे फोकटिया रहे। बड़ा मुश्किल से बाजे। एके महीना में खराब हो गईल। बनवाने के पईसा ना रहे। फेक देहली कबाड़ मे।

This post was published on जून 7, 2017 16:36

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संतोष कुमार गुप्‍ता

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