KKN गुरुग्राम डेस्क | बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में स्थित एक प्रतिष्ठित आई हॉस्पिटल को जिला उपभोक्ता आयोग ने 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। यह फैसला सारण जिले की नीला देवी की शिकायत पर आया, जिनकी मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद दाहिनी आंख की रोशनी चली गई थी।
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मामला कैसे शुरू हुआ?
नीला देवी, जो सारण जिले के खरिका गांव की निवासी हैं, ने 14 नवंबर 2017 को मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में अपने दाहिनी आंख का मोतियाबिंद ऑपरेशन कराया था। ऑपरेशन के लिए उन्होंने 700 रुपये का शुल्क अदा किया था। हालांकि, ऑपरेशन के बाद उनकी आंख की स्थिति में सुधार नहीं हुआ और धीरे-धीरे उनकी आँखों की रोशनी पूरी तरह से चली गई।
न्याय की तलाश
इलाज में लापरवाही और उचित देखभाल की कमी के कारण, नीला देवी ने मानवाधिकार मामलों के अधिवक्ता एस.के. झा की मदद ली। 31 मार्च 2022 को, उन्होंने जिला उपभोक्ता आयोग, मुजफ्फरपुर में एक शिकायत दर्ज कराई। शिकायत में हॉस्पिटल के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, संयुक्त सचिव, डॉ. प्रवीण कुमार और ऑपरेशन थिएटर असिस्टेंट को प्रतिवादी बनाया गया।
आयोग की जांच और निष्कर्ष
जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष पीयूष कमल दीक्षित और सदस्य सुनील कुमार तिवारी की पीठ ने मामले की सुनवाई की। आयोग ने सिविल सर्जन, मुजफ्फरपुर को एक चिकित्सकीय टीम गठित कर जांच करने का आदेश दिया। जांच में पाया गया कि नीला देवी की दाहिनी आंख की रोशनी स्थायी रूप से चली गई है और अब वापस नहीं आ सकती। यह भी स्पष्ट हुआ कि ऑपरेशन में लापरवाही बरती गई थी।
आयोग का आदेश
आयोग ने मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल को आदेश दिया कि वह नीला देवी को 5 लाख रुपये का मुआवजा 7% वार्षिक ब्याज के साथ 45 दिनों के भीतर अदा करे। इसके अतिरिक्त, 10,000 रुपये वाद खर्च के रूप में भी देने का निर्देश दिया गया। यदि हॉस्पिटल निर्धारित समय सीमा में भुगतान नहीं करता है, तो उसे कुल राशि पर 9% वार्षिक ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।
अधिवक्ता की प्रतिक्रिया
अधिवक्ता एस.के. झा ने आयोग के फैसले का स्वागत किया और इसे उपभोक्ता अधिकारों की जीत बताया। उन्होंने कहा कि यह फैसला उन सभी लोगों के लिए एक मिसाल है जो चिकित्सा लापरवाही के शिकार होते हैं और न्याय की तलाश में होते हैं।
यह मामला चिकित्सा संस्थानों की जवाबदेही और उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के महत्व को रेखांकित करता है। मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल पर लगाया गया जुर्माना न केवल पीड़िता को न्याय दिलाने का माध्यम बना, बल्कि अन्य चिकित्सा संस्थानों के लिए भी एक चेतावनी है कि लापरवाही के परिणाम गंभीर हो सकते हैं।
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