कौशलेन्द्र झा, KKN न्यूज। बिहार की राजनीति ने करबट बदल ली है। तेज़ी से बदले राजनीतिक घटनाक्रम के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 28 जनवरी की सुबह अपना इस्तीफ़ा दे दिया और शाम को पुनः मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली। इस नाटकीय घटनाक्रम के साथ नौवीं बार मुख्यमंत्री की शपथ लेने का रिकार्ड नीतीश कुमार के नाम बन गया। नया ये हुआ कि राजद समेत महागठबंधन के सभी घटक बिहार की सत्ता से दूर हो गए और बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए के घटक सत्ता में भागीदार बन गए। यह सभी कुछ महज इसलिए हुआ, क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अंतरात्मा अचानक जग गई। इससे पहले वर्ष 2013 वर्ष 2017 और वर्ष 2022 में भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अंतरात्मा जग चुकी है। कहतें हैं कि बिहार की राजनीति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अंतरात्मा एक नया विषय बन चुका है। सवाल ये नहीं हैं कि इस घटना के बाद किसको सत्ता मिली और कौन बाहर हो गया? बल्कि, बड़ा सवाल ये कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अंतरात्मा वर्ष 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव तक सोयी रहेगी या फिर से जग जायेगी?
वर्ष 2013 में भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2014 के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश को उनदिनों नरेन्द्र मोदी रास नहीं आ रहें थे। इससे नाराज होकर नीतीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया। बाद में नीतीश कुमार ने आरजेडी के सहयोग से सरकार बनाई और मुख्यमंत्री की अपनी कुर्सी सुरक्षित कर ली। वर्ष 2014 में अकेले लोकसभा का चुनाव लड़ा और बुरी तरीके से पराजित हुए। करारी हार के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और दलित नेता जीतन राम मांझी को राज्य की सत्ता सौंप दी।
इस बीच नीतीश कुमार का तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से अनबन की खबरे सुर्खिया बटोरने लगी थी। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद संकटमोचक बन कर आये और नीतीश कुमार एक फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो गये। बाद में नीतीश कुमार ने वर्ष 2015 में पुराने सहयोगी लालू प्रसाद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ा और शानदार जीत दर्ज की। इस चुनाव में आरजेडी ने जेडीयू से अधिक सीटें हासिल की थी। लेकिन उसके बाद भी नीतीश कुमार के सिर पर मुख्यमंत्री का ताज सुरक्षित रहा। इस सरकार में लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री और बड़े बेटे तेजप्रताप यादव को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया था।
महागठंधन की सरकार शुरुआत में तो ठीक चली। पर, 2017 आते- आते आरजेडी और जेडीयू के बीच मनमुटाव की खबरें आने लगी। 26 जुलाई को तनाव के उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद भाजपा ने मध्यावधि चुनाव से इंकार करते हुए जेडीयू को समर्थन देने का निर्णय किया। नतीजा, 27 जुलाई को नीतीश कुमार ने छिछालेदर की परवाह किये बिना फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। आरजेडी से जबरदस्त तल्खी के बीच दोनो ओर से बयानों के तीर चले। जो नहीं कहना चाहिए, वह सभी कुछ कहा गया। बावजूद इसके नीतीश कुमार ठाठ से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहे।
वर्ष 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को बीजेपी से कम सीटों पर जीत मिली। इसके बाद भी भाजपा ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन दो साल बाद ही नीतीश कुमार का बीजेपी से मोहभंग होने लगा। फिर से मनमुटाव की खबरें आने लगी। सरकार गठन के 21 महीने के बाद ही नीतीश कुमार के फिर से पाला बदलने के कयास लगने शुरू हो गये। शुरू में इन खबरो को मीडिया का अनर्गल अलाप बता कर खारिज कर दिया गया। हालांकि, कालांतर में यह सच साबित हुआ और नीतीश कुमार ने अपने पुराने साथी लालू प्रसाद की आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बना ली। गौर करने वाली बात ये हैं कि मुख्यमंत्री की कुर्सी एक बार से नीतीश कुमार के लिए सुरक्षित रही।
नीतीश कुमार के पाला बदलने की शुरुआत साल 1994 में हुई थी। उस समय उन्होंने पुराने सहयोगी लालू प्रसाद की जनता दल का साथ छोड़कर सभी को हैरान कर दिया था। इसके बाद उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया और 1995 के बिहार विधानसभा चुनावों में लालू यादव के खिलाफ चुनाव के मैदार में उतर गए। हालांकि, चुनाव में उन्हें करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। यही से वो नए सहारे की तलाश में जुट गए। नीतीश ने साल 1996 में बिहार में कमजोर मानी जाने वाली भाजपा से हाथ मिलाया था। उसके बाद भाजपा और समता पार्टी का यह गठबंधन अगले 17 सालों तक चला। इस बीच 30 अक्टूबर 2003 को समता पार्टी टूटकर जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) बन गई। जेडीयू ने भाजपा का दामन थामे रखा और साल 2005 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की। इसके बाद साल 2013 तक दोनों दल एक साथ मिलकर बिहार की सरकार चलाई।
पटना से सटे बख़्तियारपुर के एक स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में 1 मार्च 1951 को नीतीश कुमार का जन्म हुआ था। बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले नीतीश कुमार का झुकाव राजनीति की ओर हो गया। नीतीश ने लालू प्रसाद और जार्ज फ़र्नांडिस की छत्रछाया में राजनीति शुरूआत की। लेकिन, जल्दी ही उन्हें समझ में आ गया कि अपनी अलग जगह बनाने के लिए उन्हें अलग होना पड़ेगा। राजनीति में क़रीब पांच दशक बिता चुके नीतीश कुमार अपनी सहूलियत के हिसाब से दल और गठबंधन बदलते रहें हैं। नीतीश कुमार ने 1974 से 1977 के बीच जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने सत्येंद्र नारायण सिन्हा के नेतृत्व वाली जनता पार्टी से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी।
नीतीश कुमार पहली बार 1985 में हरनौत सीट से विधायक चुने गए। इस दौर में वो लालू प्रसाद के सहयोगी और बेहद करीबी माने जाते थे। कहतें हैं कि आपातकाल के विरोध में खड़ी हुई जनता दल में कई विघटन हुए। वर्ष 1994 में जॉर्ज फर्नांडिस ने समता पार्टी का गठन किया। नीतीश कुमार उनके साथ हो लिए। अगले साल बिहार विधानसभा चुनावों में समता पार्टी को सिर्फ़ 7 सीटें मिली। नीतीश कुमार को यह बात समझ में आ गया था कि बिहार में समता पार्टी अकेले अपने दम पर मज़बूती से नहीं लड़ सकती है। नतीजा, वर्ष 1996 में उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया।
पहली बार 1989 में सांसद निर्वाचित होने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नीतीश कुमार को केंद्रीय मंत्री बनाया गया। वर्ष 2001 से 2004 के बीच वाजयेपी की सरकार में रेल मंत्री रहे। इस बीच वर्ष 2000 में 3 मार्च से 10 मार्च के अल्प अवधि के लिए नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री भी बनें। मुख्यमंत्री का पद भले ही नीतीश कुमार को सिर्फ़ सात दिनों के लिए मिला हो, लेकिन उन्होंने बिहार की राजनीति में अपने आप को लालू प्रसाद के ख़िलाफ़ एक मज़बूत विकल्प के रूप में पेश कर दिया था।
2004 तक केंद्र में मंत्री रहने वाले नीतीश 2005 में फिर बिहार की राजनीति में लौटे और मुख्यमंत्री बने। पिछले लगभग 19 सालों में 2014-15 के दस महीनों के जीतनराम मांझी के कार्यकाल को छोड़ दिया जाए तो नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे हैं। हालांकि, इस दौरान नीतीश कुमार अपनी सहूलियत के हिसाब से अपने गठबंधन और सहयोगी बदलने का नया कीर्तिमान स्थापित कर चुकें हैं। जानकार मानते हैं कि राजनीति के नेपथ्य में जाने से पहले नीतीश कुमार एक बार फिर से पाला बदल लें, तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। कयास तो यह भी लगाया जा रहा है कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार फिर से महागठबंधन का हिस्सा बन सकतें हैं। हालांकि, अभी इस पर कुछ भी कहना जल्दीबाजी होगी।
बीजेपी के नेता और कोर समर्थक वोटर के दावों से इतर, नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ मिल कर सरकार में आना आम जन मानस को रास नहीं आ रहा है। लोग कहने लगे हैं कि नीतीश कुमार उनका वोट कभी भी आरजेडी की झोली में डाल सकतें हैं। ऐसे में जेडीयू के बदले सीधे आरजेडी को वोट क्यों नहीं दिया जाये? यानी, जो मतदाता बीजेपी को वोट देने का मन चुकें हैं, यदि उनके सामने जेडीयू का उम्मीदवार खड़ा कर दिया गया, तो एनडीए को नुकसान हो सकता है। एक बेहतर मुख्यमंत्री रहने के बाद भी नीतीश कुमार ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है। आलम ये हैं कि आज के दौर में उन पर यकीन करना आम जन मानस के लिए मुश्किल हो रहा है। सच तो ये हैं कि अब नीतीश कुमार के बातों पर उन्हीं के समर्थक कितना यकीन करते होंगे, अब यह कहना मुश्किल हो गया है।
This post was published on जनवरी 29, 2024 19:58
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