बिहार का सोनपुर मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है | यह मेला हर साल कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि से शुरू हो जाता है, यहाँ हर साल भक्त गंगा स्नान के लिए आते हैं | यह मेला बिहार की राजधानी पटना के सोनपुर में गंगा और गंडक के तट पर लगती है | इस मेले ने देश में पशु मेलों को एक अलग पहचान दी है। यह मेला एक महीने तक चलता है, लाखों लोगों की भीड़ लगती है, इस मेले में तरह-तरह के नाटक और प्रोग्राम का भी आयोजन होता है |
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सोनपुर मेला का ऐतिहासिक महत्व
सोनपुर मेला ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण है, कहा जाता है की 4 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपनी सेना के लिए यहां से हाथी ओर घोड़े खरीदे थे | तब से हीं यह मेला एशिया का व्यापारिक केंद्र बन गया |
इस मेले का धार्मिक महत्व हरिहर नाथ मंदिर से जुड़ा हुआ है, जो भगवान विष्णु और भगवान शिव को समर्पित है। प्राचीन कथा के अनुसार, एक हाथी और मगरमच्छ के बीच लड़ाई हुई, और जब हाथी ने संकट में भगवान हरि से प्रार्थना की तो हरि ने उसकी प्राणों की रक्षा की | यह मंदिर वहीं पर स्थापित है, इस मंदिर को राजा राम नारायण ने 18वीं सदी में बनवाया था, जो मुग़ल काल के एक प्रसिद्ध शासक थे |
सोनपुर मेले में मिलने वाली वस्तुएं
इस मेले में हर तरह के पशु-पक्षियों की प्रजाति मिल जाती है- गाय, बैल, घोड़े, ऊंट, बकरी, कुत्ते, खरगोश आदि| मेलें में अनेकों प्रकार के सामान मिलते हैं, जैसे मधुबनी पेंटिंग्स, लकड़ी के खिलौने, मिट्टी के बर्तन, बांस से बनी वस्तुएं, हाथ से बने आभूषण आदि। यहाँ अनेकों तरह के हथियार की भी प्रदर्शनी लगी रहती है| इस मेले में हर छोटी से बड़ी वस्तुएँ देखने को मिल जाती है इसीलिए तो इस मेले को एशिया का सबसे बड़ा मेला भी कहा जाता है |
सांस्कृतिक कार्यक्रम और मनोरंजन
सोनपुर मेला एक सांस्कृतिक उत्सव भी है। बिहार की लोक परंपरा यहां दिखाई देती है l यहां सैकड़ों कलाकार आकर मंच पर अपने कला की प्रस्तुति देते हैं। लोकगीत, शास्त्रीय नृत्य, और नाटक से यहां का माहौल सजा रहता है I यहां के जादू का खेल, अखाड़े की कुश्ती और सर्कस देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। दर्शक देर रात तक रहते हैं और इस मेले का आनंद लेते हैं I टीवी जगत के अभिनेता-अभिनेत्री भी इस मेले में प्रोग्राम देने आते है I यहां ज्ञानी, महात्मा, साधुगण, कथा-वाचक भी आते हैं, जो अपने मीठे स्वर में लोगों को जिंदगी का ज्ञान देते हैं और भगवत आनंद का अनुभव कराते हैं I
स्वाद और भोजन
सोनपुर मेले के पकवान का स्वाद काफी अनोखा है, यहां का शाही पराठा सबसे मशहूर है। यहां जगह जगह पर लिट्टी-चोखा, समोसा चाट, कचौड़ी चाट, पकौड़े आदि का स्टॉल देखने को मिल जाता है। यहां के बांस की कोपलों का अचार और भी अनेकों तरह का अचार काफी फेमस है। यहां बहुत दूर-दूर से लोग इस स्वाद का आनंद लेने आते हैं |
धार्मिक अनुष्ठान और आस्था
कार्तिक पूर्णिमा के दिन हर साल यहां लाखों लोग गंगा की पवित्र धारा में डुबकी लगाते हैं I कहा जाता है कि कार्तिक के पावन महीने में यहां स्नान करने से जन्मों-जन्म के पाप धूल जाते हैं | यहां आकर लोग दीप दान भी करते हैं, कहते हैं कि कार्तिक माह में दीप दान का बहुत महत्व है | बहुत से लोग, साधु-महात्मा तो एक महीने तक मास करते हैं | आरती की गूंज दूर- दूर तक जाती है। यहां भजन और कीर्तन होते रहते हैं। बहुत से लोग दान भी करते हैं, यहां का दान सबसे उत्तम दान माना गया है I यहां आकर लोग बुरी शक्तियों से रक्षा के लिये प्रार्थना भी करते हैं। यह सब अध्यात्म का एक पहलू है |
मेला से रोज़गार
मेला स्थानीय लोगों को सहारा देता है। गरीब दुकानदारों को रोज़ बिक्री मिलती है। किसान लोगों को भी अपना समान बेचने का मौका मिलता है | छोटे-छोटे उद्यमियों को भी रोजगार मिल जाता है | यहाँ आम लोगों और किसानों को अपनी जरूरत के हिसाब से समान भी आसानी से मिल जाता है |
2025 का मेला
इस साल कार्तिक पूर्णिमा 5 नवंबर को है, यहां लोग गंगा स्नान के लिये 5 नवंबर को ही जाएंगे | बिहार चुनाव के कारण मेले की तिथि बढ़ा दी गई है | पहले मेला 3 नवंबर को ही लगने वाला था लेकिन अब मेले का आयोजन 9 नवंबर से 10 दिसम्बर तक कर दिया गया है | यहां विविध कार्यक्रम देखने को मिलेंगे, पारंपरिक पूजा पाठ और गंगा स्नान जारी रहेगा |
सोनपुर का मेला केवल पशु बाजार नहीं है; यहां मन की आस्था धड़कती है, व्यापार सांस लेती है और कला मुस्कुराती है। यही इस मेले की असल ताकत है। जो लोग इस मेले का सच्चा अनुभव करना चाहते हैं, वे यहां जरूर आएं। यहां आस्था के संगम में स्नान करें, मंदिर में दर्शन करें, लोकगीत सुनें, हस्तशिल्प वस्तु खरीदें। यहाँ आकर लोग अलग-अलग तरह के पकवान का स्वाद लें, रंग -बिरंगे झूलों पर मस्ती करें, मनोरंजन का भी आनंद लें, विभिन्न तरह के चीजों का अनुभव लें और जाने के साथ यहां से यादें साथ लेकर जाएं।



