KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के मुजफ्फरपुर में लीची के बगानो में सन्नाटा है। हरा-भरा पेंड, दाना से लदा होने के बाद भी किसान निराश है। लॉकडाउन की वजह से खरीददार नहीं है। जो, बगान पहले बिक चुका था, उसमें दवा की छिरकाव करने वाला नहीं है। पटवन करने वाला कोई नहीं है। जाहिर है आने वाले दिनो में रखबार मिल जाये, तो गनीमत। यानी, लीची उत्पादक किसानो को इस वर्ष जबरदस्त नुकसान की चिंता अभी से सताने लगी है। स्मरण रहें कि यह वहीं मुजफ्फरपुर है, जो देश-दुनिया में लीची जोन के रूप में जानी जाती है।
जिले के मीनापुर में लीची से लदे पेड़ों को देखकर किसानों को इस वर्ष अच्छी पैदावार और बेहतर आमदनी की उम्मीद था। पर, लॉकडाउन की वजह से उनके अरमानो पर पानी फिरता हुआ दिखने लगा है। क्योंकि, लॉकडाउन की वजह से व्यापारी नहीं आ रहे हैं। इससे हताश किसान अब बीमारी के शिकार होने लगे हैं। आलम ये है कि पहले से बिका हुआ बगान देखने वाला भी कोई नहीं है। किसानों के मन में सवाल उठने लगा है कि 17 मई के बाद भी लॉकडाउन जारी रहा और ट्रेन नहीं चली तो लीची बिहार से बाहर कैसे जायेगी और यदि लीची बाहर नहीं गई तो क्या होगा? यह सोच कर कई किसान बीमार पड़ चुके हैं। सहजपुर के लीची उत्पादक किसान भोला प्रसाद सिंह बताते हैं कि नुकसान की आशंका से कई रात नींद नहीं आई। नजीता, ब्लड प्रेसर की चपेट में आकर बीमार हो गए। चार रोज पहले डॉक्टर ने फेसियल डिसऑडर की पुष्टि कर दी और अब वे विस्तर पर हैं।
भोला सिंह के पुत्र नीरज कुमार बताते हैं कि तीन एकड़ में लीची का बगान है। व्यापारी तीन लाख रुपये में पहले ही खरीद चुका है। इस वर्ष के जनवरी में 25 हजार रुपये एडवांस भी कर गया है। किंतु, पिछले डेढ़ महीने से बगान को देखने नहीं आया। भोला सिंह के चिंता की असली वजह यहीं है। लॉकडाउन जारी रहा तो बिहार से बाहर लीची ले जाना मुश्किल होगा। ऐसे में व्यापारी को सिर्फ 25 हजार का नुकसान होगा। जबकि, किसान को 2.75 लाख रुपये का नुकसान हो जायेगा। दरअसल, 15 मई के बाद लीची पकने लगता है और लॉकडाउन 17 मई के बाद भी बढ़ा तो लीची पेड़ पर ही रह जाएगा। यहीं सोच कर किसान चिंता में पड़ गए हैं।
यहां भोला सिंह अकेला नहीं हैं गांव के लीची उत्पादक किसान उमाशंकर सिंह, अरुण कुमार, प्रदीप सिंह समेत कई अन्य किसानों ने बताया कि इस वर्ष लीची की अच्छी पैदावार होने के बाद भी किसानों की आमदनी लॉकडाउन की भेंट चढ़ने की आशंका से किसान चिंतित है। यदि सरकार ने इसके लिए कोई विकल्प की तलाश नहीं किया तो किसान बर्बाद हो जाएंगे। लीची उत्पादक किसानो की यह समस्या कमोवेश पूरे जिले की है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा जाने का खतरा मंडराने लगा है। यानी जिस लीची के बगान से किसानों को अच्छी आमदनी की उम्मीद थी, अब वहीं बगान देख कर किसान बीमार पड़ रहें हैं।
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