उरई सड़क हादसा: झांसी-कानपुर हाईवे पर भीषण टक्कर में छह की मौत, तीन माह की बच्ची समेत पूरा परिवार खत्म

Tragic Road Accident on Jhansi-Kanpur Highway: 6 Dead Including Infant, Car Was Speeding at 140 km/h

KKN गुरुग्राम डेस्क | उत्तर प्रदेश के उरई ज़िले में झांसी-कानपुर हाईवे पर हुआ एक भीषण सड़क हादसा छह जिंदगियों को लील गया। मरने वालों में एक तीन माह की बच्ची, दो बहनें और एक डॉक्टर समेत पूरा परिवार शामिल है। हादसे के समय कार की रफ्तार करीब 140 किलोमीटर प्रति घंटा थी। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि एयरबैग खुलने के बावजूद किसी की जान नहीं बच पाई

 हादसा कैसे हुआ?

हादसा गिरथान गांव के पास हुआ, जो एट थाना क्षेत्र में आता है। कार को चला रहे थे डॉ. बृजेश वर्मा, जो अपने रिश्तेदारों के साथ बैंगलुरू जा रहे थे। उनका प्लान था कि रास्ते में उज्जैन के महाकाल मंदिर के दर्शन भी करेंगे। लेकिन सफर के दौरान देर रात बृजेश को झपकी लग गई और तेज़ रफ्तार में कार डिवाइडर से जा टकराई

 कौन थे डॉ. बृजेश वर्मा?

डॉ. बृजेश वर्मा, बहुप्रशिक्षित चिकित्सक थे और उरई के पास स्थित इकघरा गांव (खैरीघाट थाना क्षेत्र) के निवासी थे। वे हाल ही में होली पर अपने गांव आए थे और अब पत्नी और बच्चों को लेकर वापस बैंगलुरूलौट रहे थे। उनके स्वभाव के बारे में गांववालों का कहना है कि वे बहुत मिलनसार थे। मंगलवार को गांव से निकलते समय उन्होंने हर एक व्यक्ति से मिलकर विदा ली, मानो उन्हें आभास हो गया था कि वह लौटकर नहीं आएंगे।

 मृतक कौन-कौन थे?

इस हादसे में जिन छह लोगों की मौत हुई, उनमें शामिल हैं:

  • डॉ. बृजेश वर्मा (चालक)

  • संगीता (बृजेश के साढू अंकित की पत्नी)

  • सिद्धिका (अंकित की तीन माह की बेटी)

  • विनीता उर्फ मंदा (संगीता की अविवाहित बहन)

  • एक अन्य महिला रिश्तेदार

  • एक अन्य अज्ञात पीड़ित

 मां की गोद में दम तोड़ गई मासूम

सबसे मार्मिक दृश्य था तीन माह की सिद्धिका की मौत, जो अपनी मां संगीता की गोद में सो रही थी। टक्कर इतनी तेज़ थी कि दोनों की मौके पर ही मौत हो गई। पीछे की सीट पर बैठने वाले सभी लोग हादसे का सबसे बड़ा शिकार बने।

 जीवित बचे दो सदस्य: सामने की सीट ने बचा ली जान

हादसे में अंकित और एक बच्चा कान्हा जीवित बचे हैं, जिन्हें कानपुर के रीजेंसी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अंकित ने बताया कि दुर्घटना के बाद वे कार में फंसे हुए थे और लगातार मदद के लिए चिल्ला रहे थे। करीब एक घंटे बाद पुलिस पहुंची, जिन्होंने कटर की मदद से उन्हें बाहर निकाला।

 एयरबैग भी नहीं बचा पाए जान

पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, कार की रफ्तार 140 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक थी। टक्कर के समय एयरबैग खुल तो गए, लेकिन उनकी फटने की वजह से वे काम नहीं कर पाए। यदि एयरबैग सही से काम करते तो संभव है कि पीछे बैठे लोगों की जान बच जाती।

 दो घंटे तक जाम, क्रेन से हटाई गई कार

हादसे के बाद हाईवे पर दो घंटे तक जाम लग गया। राहत और बचाव कार्य के लिए पुलिस और स्थानीय प्रशासन मौके पर पहुंचा। क्रेन की मदद से क्षतिग्रस्त कार को सड़क से हटाया गया, तब जाकर यातायात बहाल हो सका।

 समाजसेवियों ने निभाई जिम्मेदारी

बृजेश के परिजनों को सुबह करीब 7 बजे हादसे की जानकारी मिली। बहराइच से उरई की दूरी करीब 400 किलोमीटर होने के कारण उन्हें आने में समय लगा। इस दौरान स्थानीय समाजसेवियों – अलीम, ममता स्वर्णकार और लक्ष्मण दास बबानी – ने मोर्चा संभाला और मेडिकल व कानूनी कार्रवाई में मदद की।

 महाकाल के दर्शन अधूरे रह गए

हादसे से ठीक पहले परिवार ने योजना बनाई थी कि वे उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन करेंगे और फिर बैंगलुरू जाएंगे। लेकिन नियति को कुछ और मंज़ूर था। अंकित के जीजा सतीश ने बताया कि यात्रा से पहले परिवार को सुबह निकलने की सलाह दी गई थी, लेकिन डॉ. बृजेश ने रात को ही निकलने का फैसला किया, जो अंततः घातक साबित हुआ।

 सबक: लापरवाही और रात की ड्राइविंग कितना खतरनाक हो सकती है

इस दुर्घटना से कुछ महत्वपूर्ण सबक सीखे जा सकते हैं:

 1. लंबी यात्रा में रात को ड्राइविंग न करें

रात के समय चालक की नींद और थकान दुर्घटना का बड़ा कारण बनती है।

 2. तेज़ रफ्तार से बचें

हाईवे पर भी 100 km/h से अधिक की रफ्तार जानलेवा हो सकती है

3. सीट बेल्ट सभी के लिए जरूरी

पीछे बैठने वालों को भी सीट बेल्ट पहनना चाहिए।

4. सफर में रुक-रुक कर आराम करें

लगातार लंबी दूरी तय करना ड्राइवर के लिए खतरनाक हो सकता है।

 दुर्घटना के पीछे का मनोवैज्ञानिक पहलू

भारत में अधिकांश सड़क दुर्घटनाएं नींद, थकान और तेज़ रफ्तार के कारण होती हैं। NHAI के आंकड़ों के अनुसार, हर साल लगभग 1.5 लाख लोग सड़क हादसों में जान गंवाते हैं, जिनमें से बड़ी संख्या हाईवे पर होती है।

उरई में हुआ यह हादसा केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि एक संबंधों, विश्वास और योजनाओं का अंत है। जो यात्रा एक धार्मिक और पारिवारिक उत्सव होनी थी, वह शोक और मातम में बदल गई। यह घटना हमें यह सिखाती है कि जान से बढ़कर कोई मंज़िल नहीं होती


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