लॉक डाउन के चलते सारे कल कारखाने बंद है, रोज कमाने-खाने वाले मजदूरों के लिए दो वक्त की रोटी बमुश्किल हो गई है, काम बंद होने के कारण लोग जैसे-तैसे अपना गुजारा कर रहे हैं। मजदूरों के पास बस नाम के लिए जमा पूंजी बची है और और इसी बीच खबर आई कि सरकार दूसरे राज्य के मजदूरों को घर भेजने के लिए औरंगाबाद या भुसावल से कोई ट्रेन चलाने वाली है, खबर मिलते ही मध्य प्रदेश के 20 मजदूर रेलवे ट्रैक से सफर पर निकल पड़े। पास कुछ था तो बस, 150 रोटियां और एक टिफिन चटनी। मजदूरों ने सोचा, अब आसानी से घर पहुंच जाएंगे, गुरुवार शाम को ही सबने मिलकर लगभग 150 रोटियां बनाईं। एक टिफिन चटनी भी बनाया, ताकि सूखी रोटी खाना नहीं पड़े। कुछ देर बाद सब भुसावल के लिए निकल पड़े, सभी की उम्र 21 से 45 साल के बीच थी। कुछ शहडोल के थे तो कुछ कटनी के, औरंगाबाद जिले के करमाड तक पहुंचे तो रात गहरी हो चली थी…सोचा, खाना खाकर कुछ समय आराम कर लिया जाए। यह बातें मीडिया को बताई सज्जन सिंह ने सज्जन सिंह इसी जत्थे में शामिल थे। वो बच गए। सज्जन कहते हैं,
भूख लगी थी साहब। ट्रैक पर ही बैठकर खाना खाने लगे। हमें यह साफ और सुरक्षित लगा। खाना खत्म हुआ। कुछ चाहते थे कि सफर फिर शुरू किया जाए। कुछ का दिल कर रहा था कि थोड़ा सुस्ता लेते है। सहमति आराम करने पर बनी। भूखे पेट को रोटी मिली थी। इसलिए, पटरी का सिरहाना और गिट्टियां भी नहीं अखरीं। सो गए। नींद खुली तो भयानक मंजर था। मेरे करीब इंटरलाल सो रहा था। उसने मुझे खींच लिया। इसी कारण मैं जिंदा हूं।
आंख खुली तो होश आया। देखा मेरा बैग ट्रेन में उलझकर जा रहा है। हमने सोचा था कि ट्रेनें तो बंद हैं। इसलिए, ट्रैक पर कोई गाड़ी नहीं आएगी। आसपास झाड़ियां थीं। लिहाजा, ट्रैक पर ही झपकी का ख्याल आया। ट्रेन जब रुकी तब तक तो सब खत्म हो चुका था। 16 साथियों के क्षत-विक्षत शव ट्रैक पर पड़े थे। किसी को पहचान पाना मुश्किल था। सज्जन के मुुताबिक, “ पहले तो लगा कि कोई बुरा सपना देखा है। पल भर में हकीकत पर यकीन हो गया। 20 में से चार जिंदा बचे। डर को थोड़ा दूर किया। ट्रैक से कुछ दूर बने एक घर पहुंचे। मदद मांगी। उन्होंने पानी पिलाया। फिर पुलिस को जानकारी दी।” आधे घंटे बाद पुलिस पहुंची। उसने अपना काम शुरू किया। रुंधे गले को संभालकर और भीगी आंखों को पोंछकर वीरेंद्र शांत आसमान की तरफ देखते हैं। फिर कहते हैं, “जिन लोगों के साथ कुछ घंटे पहले बैठकर रोटी खाई थी। अब उनकी लाशें मेरे सामने हैं। कुछ तो मेरे बहुत करीबी दोस्त थे। अब, क्या कहूंगा उनके घरवालों से? कैसे सामना करूंगा उनका? मेरा फोन, बैग सब गायब हैं। पीठ में चोट है। ये जख्म भर जाएगा। लेकिन, दिल में जो नासूर पैदा हो गया है, वो तो लाईलाज रहेगा। ताउम्र।”
दुर्घटना पर दक्षिण मध्य रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी का कहना है कि यह हादसा औरंगाबाद के कर्माड के पास हुआ है। मालगाड़ी का एक खाली डिब्बा कुछ लोगों के ऊपर चढ़ गया। कोरोना वायरस की वजह से देशभर में जारी लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने घर जा रहे हैं।
पिछले दिनों केंद्र सरकार की तरफ से मजदूरों को उनके राज्य वापस भेजने की इजाजत दी गई है। जिसके बाद राज्य सरकारें विशेष ट्रेनों, बसों की व्यवस्था करके उन्हें उनके गृह राज्य वापस भेज रही हैं, लेकिन कुछ मजदूर पैदल ही अपने गांवों की ओर चल दे रहे हैं, इससे पहले भी रास्ते में हुए हादसे में प्रवासी मजदूर अपनी जान गंवा चुके हैं।
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