देश के वरिष्ठ राजनेता और पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का आज दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार थे और अस्पताल में इलाजरत थे, लेकिन चिकित्सकों की तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।
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सत्यपाल मलिक ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र राजनीति से की थी और बाद में वे एक सांसद से लेकर राज्यपाल तक की भूमिका में रहे। वह जम्मू-कश्मीर, गोवा, मेघालय, बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों में गवर्नर के पद पर रह चुके हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई बार विवादित मुद्दों पर स्पष्ट और साहसिक बयान दिए, जिसके कारण वे हमेशा सुर्खियों में बने रहे।
छात्र राजनीति से लेकर राज्यपाल बनने तक का सफर
सत्यपाल मलिक का राजनीतिक सफर 1970 के दशक में शुरू हुआ। उन्होंने 1974 में बागपत से विधानसभा चुनाव लड़ा और चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। वे हमेशा खुद को चरण सिंह का शिष्य बताते रहे और किसानों के मुद्दों पर मुखर रहने वाले नेताओं में शुमार किए जाते थे।
उन्होंने संसद के सदस्य के तौर पर भी देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई। उनके करियर का अहम मोड़ तब आया जब उन्हें राज्यपाल पद की जिम्मेदारियां सौंपी गईं। उन्होंने 2017 से 2022 के बीच पांच अलग-अलग राज्यों में गवर्नर के रूप में सेवाएं दीं।
जम्मू-कश्मीर में ऐतिहासिक बदलावों के गवाह रहे
सत्यपाल मलिक को विशेष रूप से उनके जम्मू-कश्मीर के कार्यकाल के लिए याद किया जाएगा। उनके ही कार्यकाल के दौरान अनुच्छेद 370 को हटाया गया और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख – में विभाजित किया गया। यह भारत के राजनीतिक इतिहास में एक बड़ा कदम था, जिसने उन्हें राष्ट्रीय पटल पर चर्चा का केंद्र बना दिया।
हालांकि, इस कार्यकाल को लेकर विवाद भी गहराए, जब उन्होंने कुछ मामलों में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और कुछ निर्णयों पर सवाल उठाए, जिनमें हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट भी शामिल था।
सरकार की आलोचना और किसान आंदोलन में समर्थन
अपने कार्यकाल के अंतिम वर्षों में सत्यपाल मलिक ने सरकार के कई फैसलों की कड़ी आलोचना की। खास तौर पर उन्होंने किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया और कई राज्यों में जाकर किसानों के पक्ष में जनसभाएं कीं। उन्होंने केंद्र सरकार से तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की थी।
सत्यपाल मलिक का यह बदला हुआ रूप उन्हें एक बार फिर राष्ट्रीय बहस के केंद्र में ले आया। उन्होंने यहां तक कहा था कि सरकार की नीतियां किसान विरोधी हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी उन्होंने कई बार सीधी टिप्पणी की थी।
निधन की पुष्टि उनके X अकाउंट से हुई
उनके निधन की जानकारी उनके आधिकारिक X (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट से दी गई। आखिरी बार उनके निजी सहायक ने 9 जुलाई 2025 को उनकी गंभीर हालत के बारे में अपडेट दिया था। इसके बाद से वे लगातार अस्पताल में भर्ती थे और आज उन्होंने अंतिम सांस ली।
राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में उनकी मौत को एक साहसी आवाज के खामोश होने के रूप में देखा जा रहा है। समर्थकों और विरोधियों दोनों ने उनके राजनीतिक योगदान को याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की है।
CBI चार्जशीट पर भी दी थी प्रतिक्रिया
सत्यपाल मलिक का नाम हाल ही में उस वक्त चर्चा में आया जब CBI ने उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। यह चार्जशीट हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार की जांच से जुड़ी थी। इस पर उन्होंने अस्पताल से ही नाराजगी जताते हुए कहा था कि, “जिसने भ्रष्टाचार का खुलासा किया, उसी के खिलाफ कार्रवाई हो रही है।”
उन्होंने कहा था कि उन्हें दोषी ठहराना राजनीति से प्रेरित कदम है और यह लोकतंत्र के खिलाफ है। यह बयान उनके समर्थकों के बीच एक बार फिर उन्हें एक ईमानदार और सच्ची बात कहने वाले नेता के रूप में प्रस्तुत करता है।
अंतिम समय तक थे मुखर और स्पष्ट
अपने अंतिम दिनों में भी सत्यपाल मलिक सरकार के खिलाफ मुखर बने रहे। उन्होंने लोकसभा चुनाव 2024 में भी केंद्र सरकार की आलोचना की थी और विपक्ष को समर्थन देने की अपील की थी।
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “मैं रहूं या न रहूं, सच जरूर सामने आना चाहिए।” यह बयान अब उनके समर्थकों के लिए एक प्रेरणात्मक उद्धरण बन गया है, जो उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को बखूबी दर्शाता है।
पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन भारतीय राजनीति में एक साहसी, स्वतंत्र विचारधारा वाले युग का अंत माना जा रहा है। उन्होंने किसान आंदोलन, भ्रष्टाचार विरोध और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए जो आवाज उठाई, वह आज के दौर में दुर्लभ है।
चाहे वह सत्ता में रहे हों या विपक्ष में, उन्होंने अपने विचारों को कभी दबने नहीं दिया। उनके जीवन से यह सीख मिलती है कि एक राजनीतिज्ञ सत्ता के साथ रहते हुए भी सच्चाई के पक्ष में खड़ा रह सकता है।
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