पांच दशक के युग का अंत
KKN न्यूज ब्यूरो। वह वर्ष 1997 का साल था। सुशील कुमार मोदी, मीनापुर आये थे। पहली बार उनसे मिल कर बातचीत करने का अवसर मिला। इसके बाद समीप के राघोपुर गांव में उनके साथ बैठ कर खाना खाने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उनदिनों सुशील कुमार मोदी बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर बहुत मुखर हुआ करते थे। इसके बाद वो कई बार मीनापुर आये। उनमें अपने लोगों से कनेक्ट होने की क्षमता था और जब भी मीनापुर आये, पार्टी को कुछ न कुछ लाभ देकर ही गए।
मीनापुर से था गहरा लगाव
वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए के लिए उन्होंने मीनापुर में रोडशो किया था। इससे पहले के करीब- करीब सभी चुनाव में वो मीनापुर आते रहे। यहां के लोगों से उनका गहरा लगाव था और लोगों को भी उनसे लगाव था। सुशील कुमार मोदी के चुनावी सभा के बाद तुर्की सहित मीनापुर के कई इलाको में लोगों का मिजाज बदलते हुए, मैंने स्वयं भी कई बार महसूस किया था।
आर्थिक मामलो की थी समझ
बिहार की राजनीति में इनको छोटे मोदी के नाम से जाना जाता था। राजनीति के बहुत अच्छे जानकार, कुशल प्रशासक और आर्थिक मामलों पर जबरदस्त पकड़ रखने की वजह से राजनीति में इनके धाख की तपीस को महसूस किया जाता था। जीएसटी पारित होने में उनकी सक्रिय भूमिका सदैव याद की जायेगी। बिहार में भाजपा के उत्थान और उसकी सफलताओं के पीछे उनका अमूल्य योगदान रहा है। आपातकाल का पुरज़ोर विरोध करते हुए, उन्होंने छात्र राजनीति से अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। क़रीब पांच दशक से अलग-अलग भूमिका निभाने वाले सुशील कुमार मोदी की कमी, वास्तव में अपूर्ण्रीय क्षति है।
कैंसर ने ले ली जान
दरअसल, वो कैंसर से जूझ रहे थे और दिल्ली के एम्स अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। लोकसभा चुनाव के एलान के बाद स्वयं सुशील मोदी ने अपनी बीमारी की जानकारी सार्वजनिक की थी। इसके बाद लोग सन्न रह गए थे। हालांकि, तब किसी ने ये नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी वो दुनिया को अलविदा कह देंगे।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री शोक में
सुशील कुमार मोदी के निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव समेत कई नेताओं ने गहरा शोक जताया है। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा है, ”पार्टी में अपने मूल्यवान सहयोगी और दशकों से मेरे मित्र रहे सुशील मोदी जी के असामयिक निधन से अत्यंत दुख हुआ है।
छात्र राजनीति की उपज
सुशील मोदी को जेपी आंदोलन की उपज कह सकते है। उन्होंने वर्ष 1971 में छात्र राजनीति की शुरुआत में कदम रखा था1 उनदिनो विश्वविद्यालय छात्र संघ की 5 सदस्यीय कैबिनेट के सदस्य निर्वाचित हुए थे। इसके बाद वर्ष 1973 में वो छात्र संघ के महामंत्री निर्वाचित हुए। उन दिनों लालू प्रसाद पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष हुआ करते थे। जबकि, रविशंकर प्रसाद संयुक्त सचिव हुआ करते थे। बाद के दिनों में केएन गोविंदाचार्य के प्रभाव में आकर सुशील कुमार मोदी ने बीजेपी ज्वाइन कर ली।
1990 में बने विधायक
जेपी आंदोलन में आने के बाद उन्होंने पोस्ट ग्रैजुएशन की पढ़ाई बीच में छोर दी। आपातकाल के दौरान उनको करीब 19 महीना जेल में रहना पड़ा था। इसके बाद वर्ष 1977 से 1986 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में कई पदों पर रहे1 पहली बार वर्ष 1990 में पटना केन्द्रीय विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर सुशील कुमार मोदी विधानसभा पहुंचे। वर्ष 2004 में उन्होंने भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीता था। दिसंबर 2020 में पार्टी ने उनको राज्यसभा भेज दिया1 इसी साल फ़रवरी में सुशील मोदी का कार्यकाल ख़त्म हुआ था। अपने विदाई भाषण में उन्होंने मौक़ा देने के लिए पार्टी की तारीफ़ की थी।