यूक्रेन पर रूसी हमला सिर्फ एक युद्ध नही। बल्कि, अन्तर्राष्ट्रीय समझौता की विश्वसनियता को सवालो के घेरे में ला दिया है। यूक्रेन ने समझौता का सम्मान किया और परमाणु हथियार रूस को लौटा दिया। आज वहीं रूस यूक्रेन पर हमला कर रहा है और अमेरिका समेत बाकी के देश तमाशबीन बने बैठे है। यूक्रेन ने दुनिया की बात नहीं मानी होती और परमाणु हथियार रूस को नहीं लौटाया होता तो आज हमला नहीं झेल रहा होता। इस युद्ध ने दुनिया को सबक दिया है कि अपनी सुरक्षा से समझौता करने वाले देश की रक्षा करने कोई नहीं आयेगा। यानी जो कमजोर रह जायेगा। उसको मिटा दिया जायेगा और अन्तर्राष्ट्रीय नियम काम नही आयेगा। यह एक संदेश है और भारत समेत पूरी दुनिया को इससे सबक लेना होगा। अन्तर्राष्ट्रीय विश्वसनियता सवालो के घेरे में है।
वह 5 दिसंबर 1994 का दिन था। हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में यूक्रेन, बेलारूस, कजाखस्तान, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका के नेताओ ने एक साथ् मिल कर कर एक समझौता किया था। इसको बुडापेस्ट मेमोरंडम ऑन सिक्योरिटी अश्योरेंस कहा गया था। छह पैराग्राफ के इस मेमोरंडम में स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि यूक्रेन, बेलारूस और कजाखस्तान की स्वतंत्रता, संप्रभुता और मौजूदा सीमाओं का सम्मान किया जाएगा। विदेशी शक्तियां इन देशों की क्षेत्रीय संप्रुभता या राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए कभी खतरा नहीं बनेंगी। मेमोरंडम के चौथे प्वाइंट में यह जिक्र है कि अगर परमाणु हथियारों वाला कोई देश यूक्रेन, बेलारूस और कजाखस्तान के लिए खतरा बनेगा तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इन देशों की मदद करेगी। बदले में यूक्रेन को अपने यहां मौजूद करीब पांच हजार परमाणु हथियार रूस को लौटाने थे। यूक्रेन ने समझौते के तहत परमाणु हथियार रूस को लौटा दिया और आज वहीं रूस आज यूक्रेन पर हमला कर रहा है। बारूद की आग में हर ऐ पल यूक्रेन का अस्तित्व नष्ट हो रहा है। आधुनिक यूक्रेन का इन्फ्रास्ट्क्चर मलबा के ढ़ेर में तब्दिल हो रहा है। इंसान, लाशो की ढ़ेर बन रहा है। इधर, अमेरिका समेत बाकी के देश यूक्रेन के बर्बादी का तमाशा देख रहा है। यह सभी कुछ सिर्फ इसलिए हो रहा है, क्योंकि, यूक्रेन ने समझौते के तहत अपना परमाणु हथियार रूस को लौटा दिए। बर्ना, आज तस्वीर दूसरी होती।
1993 तक अमेरिका और रूस के बाद सबसे ज्यादा परमाणु हथियार यूक्रेन के पास था। लेकिन बेहतर रिश्तों की चाह में यूक्रेन ने एटमी हथियार का सारा जखीरा रूस को दे दिया। यही यूक्रेन से बड़ी भूल हो गई। आज यहीं बात युक्रेन को सबसे अधिक परेसान कर रहा होगा। क्योंकि, यदि आज वह परमाणु शक्ति राष्ट्र होता तो उसको बर्बादी की इस मंजर को देखना नहीं पड़ता। हालांकि कई जानकारों ने उसी समय ये कह दिया था कि यूक्रेन जल्दबाजी कर रहा है। सोवियत दौर में न्यूक्लियर बेस के कमांडर रह चुके वोलोदिमीर तोबुल्को बाद में यूक्रेन के सांसद बने थे। उन्होंने 1992 में यूक्रेनी संसद में कहा था कि खुद को परमाणु हथियार मुक्त देश घोषित करना जल्दबाजी होगी। तोबुल्को का तर्क था कि लंबी दूरी की मारक क्षमता के साथ कुछ परमाणु हथियार यूक्रेन के पास होने चाहिए। भविष्य में यह विदेशी आक्रमण को रोकने के काम आयेगा। अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर रह चुके जॉन मेयर्सहाइमर ने 1993 में एक आर्टिकल लिखा था। जिसमें उन्होंने कहा कि परमाणु हथियारों के बिना यूक्रेन, भविष्य में रूस के आक्रामक रुख का शिकार बन सकता है। उस वक्त ऐसी बात कहने वालों को शांति विरोधी कहा जाता था। पर, आज उनकी कही बातें सच साबित हो रही है।
सोवियत संघ ने शीत युद्ध के दौरान यूक्रेन में एटम बम और उन्हें ढोने वाली मिसाइलें तैनात की थीं। उनदिनो यूक्रेन उसी सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था। सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक उस वक्त यूक्रेन में करीब पांच हजार परमाणु हथियार हुआ करता था। वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद पश्चिम और रूस के संबंध सुधरने लगे थे। सोवियत संघ के सदस्य रहे देश आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हो चुका था। उन्हें पश्चिम से आर्थिक मदद और कारोबारी सहयोग की दरकार थी। बदले में शांति व लोकतंत्र का रास्ता चुनना था। रूस समेत ज्यादातर देश इस राह पर निकल पड़े थे। उसी दौर में यूक्रेन ने परमाणु हथियारों को खत्म करने की तैयारी शुरू कर दी। कीव और मॉस्को दोनों को उम्मीद थी कि इस फैसले से आपसी रिश्ते अच्छे बने रहेंगे। इसी दौर में बुडापेस्ट समझौता हुआ और 1996 आते आते यूक्रेन ने सारे परमाणु हथियार रूस को दे दिए। वहीं परमाणु शक्ति संपन्न रूस आज यूक्रेन को तबाह कर रहा है और उसी परमाणु शक्ति की डर से अमेरिका समेत नाटो के अन्य देश खुल कर यूक्रेन के साथ खड़ा होने में हिचक रहा है।
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