दुष्कर्म की शिकार होने वालों में 43 फीसदी नाबालिग
मजबूत संस्कृति और आदिम कालीन सभ्यता के लिए दुनिया में मसहूर भारत, एकलौता देश रहा है, जहां कन्याओं की पूजन और महिलाओं को देवी स्वरूप में पूजने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। किंतु, हालिया दिनो में पाश्यचात्य सभ्यता की ऐसी मार पड़ी कि आज महिलाओं के लिए भारत खतरनाक जोन बनने की ओर बढ़ चला है। कभी निर्भया, तो कभी कठुआ में बेटी से दरिंदगी की खबरे सुर्खिया बटोरती है। लोगो का गुस्सा उफान लेता है। सड़कों पर प्रदर्शकारियों की रेला उमर पड़ती है। कानून सख्त करने की कवायद भी होती है। बावजूद इसके, हर रोज देश के किसी न किसी हिस्से से दुष्कर्म की खबरें आ ही जाती हैं। दुष्कर्म के मामले साल दर साल डराने वाली रफ्तार से बढ़ने लगी हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रति एक घंटे में देश की चार से ज्यादा महिलाएं दुष्कर्म की शिकार हो रही है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो 2016 की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि 18 साल से कम उम्र की कम से कम दो बच्चियां हर घंटे बलात्कार का शिकार हो रही हैं।
अपने ही हो रहें है दरिंदे
चौंकाने वाली बात यह है कि दुष्कर्म के अधिकतर मामलों में महिलाएं अपनो के हवस का शिकार हो रही है। कभी भाई, कभी पिता, दादा या पड़ोसी के हवसी बनने के मामले में हालिया दिनो में बढ़तोरी चिंता का बड़ा कारण बन गया है। एनसीआरबी की रिपोर्ट बताता है कि 94.6 फीसदी मामलों में करीबी रिश्तेदारों ने ही महिला से दुष्कर्म किया है। लोगो के जेहन से सजा का डर समाप्त होने लगा है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि कानून की पेंचिदगियां। नतीजा, 25.5 फीसदी मामलों में ही सजा सुनाई जा सकी है।
बढ़ते दुष्कर्म के मामले
सभ्यता का दंभ भरने वाले भारतीय समाज में साल दर साल बढ़ते दुष्कर्म के मामले हमारे कामुक हो रही प्रवृति को इंगित करता है। दरअसल, एनसीआरबी ने जो आंकड़ा जारी किया है, इसे आप खुद ही पढ़ लें। वर्ष 2007 में रेप के 19,348 मामले, वर्ष 2008 में रेप के 20,737 मामले, वर्ष 2009 में 21,467 मामले, वर्ष 2010 में 21,397 मामले, वर्ष 2011 में 22,172 मामले, वर्ष 2012 में 24,923 मामले, वर्ष 2013 में 33,707 मामले, वर्ष 2014 में 36,735 मामले, वर्ष 2015 में 34,210 मामले और वर्ष 2016 में रेप के 38,947 मामले दर्ज होना सभ्य समाज के लिए चिंता का कारण बन चुका है।