राजकिशोर प्रसाद
शिक्षा के गिरते मूल्यों, बच्चों में संस्कृति व नैतिकता ही हो रहे क्षय पर आज एक मत होकर सोचने की जरूरत है। समाज में सहिष्णुता भी इससे कम प्रभावित नही है। आये दिन सरकार जनप्रतिनिधि सामाजिक कार्यकर्ता व हमारे विद्वान जन इन गिरती शिक्षा मूल्यों और शिक्षा के बाजारू पन पर लम्बी चौड़ी अपनी मत और नियम के सुझाव देते है। समय समय पर सरकार भी इस पर कई ठोस पहल करती है।
सरकारी और गैर सरकारी स्कूलो पर कड़ी नियम बनाते है। किन्तु, पहल सिर्फ फाइलों में सिमटकर रह जाती है। सरकार शिक्षा पर करोड़ो रूपये खर्च करने के बाबजूद इसमें गुणात्मक फायदा दिखाई नही पड़ता। आज भी पिछड़ा व मध्य वर्ग और दलित गरीब के बच्चों में कोई खास सुधार नही है। सरकारी स्कुलो में ज्यादा स्थिति खराब दिख रही है। शिक्षक अपनी पूर्ण जिम्मेवारी नही निभाते। सामाजिक परिवेश की अनुकूलता मे असंजस्यता की स्थिति का लाभ भी उन्हें मिल जाता है। वही सरकारी तन्त्र और सिस्टम इसमें बड़ी खामी है। आज ऐसी स्थिति बन गई है कि एक समझदार अविभावक अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ाना नही चाहता। यहाँ तक की जो शिक्षक सरकारी स्कुल में पढ़ाते है वह भी अपने बच्चे को सरकारी स्कुल में नही पढ़ाते है। इतना ही नही बड़े बड़े अधिकारी जन प्रतिनिधि व्यापारी और पैसे वाले अपने अपने बच्चों को गैर सरकारी स्कुलो में पढ़ाते है।
आखिर सवाल ये उठता है कि जो नियम कानून बनाने वाले है जो पुरे सिस्टम को चलाते है जो स्कुल में पढ़ाते है वो अपने बच्चों को क्यों नही उसी सरकारी स्कुल में पढ़ाते है? क्यों न गैर सरकारी स्कुल बन्द करते है? क्यों न शिक्षा के असमानता को खत्म करते है? क्यों न सिस्टम को बदलते है? आखिर अंतिम व्यक्ति अब क्या करेगे? अपने बच्चों को कहा पढ़ाये? मुद्दा बड़ा बता कर लोग अपनी बयानबाजी कर मात्र रह जाते है। सरकार शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल तो कर ली है। किन्तु, इसके लिये कठोर नियम लाने होंगे। गैर सरकारी स्कुलो को बन्द करना होगा। भेदभाव को पाटना होगा। सभी के बच्चों को सरकारी स्कुल में पढ़ाना होगा। पुरे सिस्टम को बदलना होगा। तभी हम समाज में समरसता और समान शिक्षा पा सकते है। तभी शिक्षा के गिरते मूल्यों को बचा सकते है। बाजारू पन को खत्म हो सकता है। इतना ही नही योग्य शिक्षको की चयन प्रक्रिया अपनानी होगी। इसके लिये सबो को एक मत होकर इस सिस्टम से लड़ना होगा। तभी शिक्षा में समानता आयेगी। साथ ही हम अपनी मूल्यों, संस्कृति को अक्षुण रखने में कामयाब हो सकते है।
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