मुजफ्फरपुर। बिहार के मुजफ्फरपुर जिला अन्तर्गत मीनापुर में पिछले डेढ़ दशक में बूढ़ी गंडक के कटाव की चपेट में आने से दर्जनभर गांवों के सैकड़ों परिवार बेघर हो गये। प्रखंड के लिए बूढ़ी गंडक लाभकारी कम, अभिशाप ज्यादा बनी है। सरकारी आंकड़े के अनुसार डेढ़ दशक में एक हजार से अधिक घर कटाव में बह गए। जो कल तक किसान थे, वे आज मजदूरी करने को विवश हैं।
मीनापुर के रघई, घोसौत, हरशेर, पानापुर चक्की, गंगवार, बजरमुरिया, डुमरिया, बाड़ाभारती व जामिन मठियां आदि गांवों के करीब एक हजार परिवार अपने ही गांव में विस्थापित होकर जीवन जीने को अभिशप्त हो चुके हैं।
वर्ष 2004 से 2018 तक अकेले रघई गांव के करीब तीन सौ परिवार कटाव की चपेट में आकर उजड़ चुके हैं। वहीं पुनर्वास के नाम पर अबतक विस्थापितों में से मात्र 50 परिवार को ही सरकारी आवास मुहैया कराया गया है। जबकि, बाकी परिवार अभी तक पुनर्वास की आस लिए सरकारी कार्यालयों का चक्कर काट रहे हैं। रघई के मुखिया चंदेश्वर साह बताते हैं कि कटाव के कारण गांव की खेती योग्य 50 बीघा से अधिक जमीन नदी में समा चुकी है। लिहाजा, दर्जनों परिवार भूमिहीन हो कर मजदूरी करने लगे हैं।
कटाव के कहर का ऐसा हुआ असर
बूढ़ी गंडक में कटाव के कहर का असर ये हुआ कि कुछ साल पहले तक जो छोटे किसान कहलाते थे, आज मजदूरी करने को विवश हैं। रघई गांव में पहुंचते ही सबसे पहले मुलाकात हुई 55 वर्षीय मुसमात सीता देवी से, सीता का घर और खेती की जमीन कटाव की भेंट चढ़ चुकी है। आज वह मजदूरी करके जीवन बसर करती है। आगे बढ़ने पर मिले 65 वर्षीय रामलक्षण साह। श्री साह का दर्द भी कुछ इसी तरह छलका। वे किसान से मजदूर बन गये है। एक लड़का है, वह भी दिव्यांग है। लिहाजा, पूरे परिवार का भरण पोषण अब बूढ़े कंधों पर आ चुका है। 50 वर्षीय फुदेना साह व 63 वर्षीय राजदेव सहनी खरार मठ पर चाय की दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहें है। 65 वर्षीय गुदर भगत माली का काम करते हैं। ऐसे और भी है, जो विभिन्न गांवों में सड़क के किनारे व मठ की जमीन पर झोपड़ी बनाकर रहने को अभिशप्त हो चुकें हैं।
लोगों की आंखों में दिखता है दहशत
बूढ़ी गंडक के मुहाने पर बसे मुन्नी लाल सहनी, भाग्य नारायण सहनी, राजेश साह व हरिनारायण साह दहशत में हैं। इन लोगों का कहना है कि यदि इस वर्ष फिर से बाढ़ आई और कटाव हुआ तो उनका आशियाना नदी में समा जाएगा। बाढ़ की आशंका से गांव के और भी कई लोगों की आंखों में दहशत साफ झलकता है। लोगों ने बताया कि वर्ष 2017 में नदी के किनारे कटाव से सहदेव साह का पक्का मकान गिर गया था और आज सहदेव भटकने को मजबूर हो चुके हैं।
बाढ़ से विस्थापित हुए सभी परिवार के पुनर्वास का काम अंतिम चरण में है। जिस परिवार के पास अब बसने के लिए जमीन नहीं है, वैसे परिवार को चिह्नित किया जा रहा है। ऐसे परिवार को बसाने के लिए सरकारी राशि से जमीन खरीदने की योजना है। ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव, सीओ, मीनापुर
मीनापुर में बाढ़ की समस्या का स्थाई निदान होना चाहिए। बाढ़ के समय हाय-तौबा करने से कुछ नहीं होगा। जनता सब कुछ समझती है। अब और लम्बे समय तक इंतजार करने की क्षमता नहीं है। संजय दीपक, हरका
This post was published on जून 30, 2018 08:34
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