KKN न्यूज ब्यूरो। भारत के लोग प्रत्येक साल 26 नवम्बर को, संविधान दिवस के रूप में याद करतें हैं। पहली बार वर्ष 2015 में संविधान दिवस को सरकारी तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया था। इसके बाद देश में प्रत्येक साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है। पूरा देश अपने संविधान के निर्माता बाबा साहेब डॉं.भीमराव अंबेडकर को याद करता है। यूजीसी ने देश के सभी विश्वविद्यालयों को आदेश दिया है कि वे 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाएं। संविधान दिवस मनाने का मकसद नागरिकों को संविधान के प्रति सचेत करना और समाज में संविधान के महत्व का प्रसार करना है। इस सब के बीच एक सच्चाई यह भी है कि आजादी के सात दशक बाद भी हमारे देश की तकरीबन तीन चौथाई आवादी संविधान की मूल भावनाओं को ठीक से समझ नहीं पा रही है।
दो साल 11 महीना और 17 दिन में बना संविधान
भारत का संविधान, दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसमें अब 465 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां शामिल हो चुकी हैं और ये 22 भागों में विभाजित है। यहां आपको बताना जरुरी है कि अपने निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद हुआ करता था, जो 22 भागों में विभाजित था। मूल संविधान में केवल 8 अनुसूचियां थीं। भारत का मूल संविधान हस्तलिखित है। जिसमें 48 आर्टिकल हैं। इसे तैयार करने में 2 साल 11 महीने और 17 दिन का समय लगा था। अब आपके मन में सवाल उठने लगा होगा कि भारत का संविधान तो 26 जनवरी को लागू हुआ था। ऐसे में 26 नवम्बर को संविधान दिवस मनाने का औचित्या क्या है? दरअसल, 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा की तरफ से इसे अपनाया गया और 26 नवंबर 1950 को इसे लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ एक गणराज्य के रूप में लागू कर दिया गया। इन्हीं कारणो से 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। यहां आपको बताना जरुरी है कि इससे पहले 29 अगस्त 1947 को भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति की स्थापना की गई थी। बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान निर्माता समिति के अध्यक्ष थे।
हिंदी और अंग्रेजी में हस्तलिखित कॉलीग्राफ्ड
भारत के संविधान के मसौदा को हिंदी और अंग्रेजी में हस्तलिखित कॉलीग्राफ्ड की गई है और यह मूल संविधान आज भी मौजूद है। इसमें किसी भी तरह की टाइपिंग या प्रिंट का इस्तेमाल नहीं हुआ है। संविधान सभा के सभी 308 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए और इसके दो दिन बाद यानी 26 जनवरी 1950 को इसे भारतीय गणतंत्र के स्वरुप में लागू कर दिया गया। हम में से बहुत कम लोग जानतें हैं कि हमारे संविधान के निर्माण में 15 महिलाओं की महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह सभी महिलाएं स्वतंत्रता सेनानी, अधिवक्ता, राजनेता और महिला संगठनों से जुड़ी प्रमुख हस्तियां थीं। इनमें से कुछ महिलाओं ने दांडी मार्च में भी हिस्सा लिया था और कई ऐसी थी, जिन्होंने साइमन कमिशन के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन करते हुए जेल की सजा काट चुकी थीं। संविधान सभा के सदस्यों ने संविधान की जिस मूल तीन प्रतियों पर हस्ताक्षर किए थे, वह तीनों प्रतियां आज भी संसद भवन की सेंट्रल लाइब्रेरी में बने स्ट्रांग रूम में सुरक्षित रखी हुई है। इसे हीलियम भरे केस में सुरक्षित रखा गया है। ताकि, यह कभी खराब नही हो। कहतें हैं कि संविधान के पारित होते ही, काफी देर तक वंदे मातरम और भारत माता की जयकारे से संसद का केंद्रीय कक्ष गूंजने लगा था। इसके बाद अरुणा आसफ अली की बहन पूर्णिमा बनर्जी ने राष्ट्रगान गाया था। बतातें चलें कि संविधान पर सबसे पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू ने हस्ताक्षर किए थे।
चित्रों से सजाया गया
हमारे संविधान के हर भाग को चित्रों से सजाया गया है। इस काम को आचार्य नंदलाल बोस ने अंजाम दिया था। आचार्य के शिष्यों ने ही संविधान का डिजाइन भी तैयार किया था। संविधान के 22 भाग है। इसमें 22 चित्र बनें हैं। सभी चित्र 8 से 13 इंच बड़ा है। इस काम में आचार्य और उनकी टीम को चार साल का वक्त लगा था और इसके लिए उन्हें 21 हजार रुपये मेहनताना दिया गया था। संविधान के सबसे अहम पेज यानी ‘प्रस्तावना’ को अपनी कला से सजाने का काम आचार्य के सबसे प्रीय शिष्य राममनोहर सिन्हा ने किया था। आपको शायद मालुम हो कि हमारे मूल संविधान की चौड़ाई 16 इंच और लम्बाई 22 इंच है। हमारे संविधान की पांडुलिपि 251 पेज की है। बतातें चलें कि उस दौर में संविधान सभा पर तकरीबन एक करोड़ रुपये का खर्च हुआ था। संविधान सभा के सभी सदस्य, भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि थे। इसमें जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे कई महत्वपूर्ण सख्यिशत शामिल थे। आपको बतादें कि 11 दिसंबर 1947 को संविधान सभा की पहली बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा की स्थायी अध्यक्ष चुना गया था। जो, अंत तक इस पद पर बने रहें।
संविधान की प्रस्तावना
हमारे संविधान के प्रस्तावना में पूरे संविधान की मूल भावना निहित है। ऐसे में संविधान के प्रस्तावना को एक बार यहां पढ़ना जरुरी हो गया है। इसमें लिखा है कि- ‘हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता को बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्म सर्पित करते हैं…।’
संविधान को किया कैलीग्राफ
संविधान से जुड़ी एक और दिलचस्प किस्सा सुनाता हॅू। दरअसल, भारतीय संविधान की पहली प्रति को कैलीग्राफी के जरिये तैयार किया गया था। इसे दिल्ली के रहने वाले प्रेम बिहारी रायजादा ने तैयार किया था। पंडित नेहरू ने प्रेम बिहारी रायजादा से संविधान की प्रति लिखने का अनुरोध किया। प्रेम बिहारी रायजादा का पारिवारिक कार्य कैलीग्राफी का ही था। उन्होंने पं. नेहरू के समक्ष अपनी एक शर्त रख दी। शर्त के मुताबिक संविधान के हर पृष्ठ पर उन्होने अपना नाम और अंतिम पृष्ठ पर अपने दादाजी का नाम लिखने की बात कही। जिसे तात्कालीन सरकार ने मान लिया और संविधान के मूल प्रति पर आज भी यह आपको देखने को मिल जायेगा। कहतें हैं कि रायजादा से इस काम के लिए मेहनताना के बारे में पूछा गया, तो उनका जवाब बड़ा ही गंभीर था। उन्होंने कहा कि मुझे इस कार्य के लिए एक भी पैसा नहीं चाहिए। इस काम को पूरा करने के लिए उन्हें संविधान सभा के भवन में ही एक हॉल दे दिया गया था। जहां, उन्होंने छह महीने में इस कार्य को पूरा कर दिया। आखिरकार इस तरह से हमारा संविधान बन कर तैयार हुआ था।
This post was published on नवम्बर 27, 2021 12:33
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