KKN न्यूज ब्यूरो। पिछले कई सालों में लोगों के रहन-सहन और खाने के तरीको में बड़ा बदलाव आया है। इन दिनो डिब्बा बंद या पैकेट वाले प्रोसेस्ड खाना हमारे जीवन का प्रमुख हिस्सा बनता जा रहा है। बच्चो से लेकर युवा और प्रौढ़ वर्ग के लोगों में इस तरह के खाद्द सामग्री को लेकर जबरदस्त चस्का देखा जा रहा है। कई वार लोग इसको पौस्टिक भोजन समझ कर लेते हैं। बेशक इनमें से कई प्रोडक्ट खाने से आपको तुरंत ऊर्जा तो मिल जाता है। पर, इसमें पोषक तत्वों की बेहद कमी होती है। कई बार असंतुलित पोषक तत्व की वजह से बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है। अगर आप किसी चिप्स के पैकेट से चिप्स खा रहें हैं, तो क्या आपको अंदाज़ा है कि उसमें कितना फैट और कितना कार्बोहाइड्रेट है। प्रोसेसिंग की वजह से इसमें मीठा, नमक और एम्पटी कैलरी की मात्रा अधिक होती है। इसको आम इंसान समझ नहीं पाता है।
बाज़ार में प्रोसेस्ड और अल्ट्रा प्रोसेस्ड पैकेट वाले खाने की भरमार है। चर्चित मेडिकल जर्नल लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, देश के शहरी और ग्रामीण इलाक़ों में ली जा रही कुल कैलोरी का औसतन 10 फ़ीसदी अल्ट्रा प्रोसेस्ड फ़ूड के ज़रिए पहुंच रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में प्रोसेस्ड फ़ूड का खुदरा बाज़ार 2021 में 2,535 अरब रुपये तक पहुंच चुका था। वर्ष 2021 के आंकड़े बताते हैं कि नमकीन स्नैक्स की सबसे ज़्यादा बिक्री स्वतंत्र छोटे किराना विक्रेताओं द्वारा की गई है। उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में सामुदायिक और पारिवारिक चिकित्सा विभाग में एडिशनल प्रोफ़ेसर डॉ प्रदीप अग्रवाल ने मीडिया को बताया है कि पिछले दो दशक से भारत में नॉन कम्यूनिकेबल डिज़ीज, जैसे कि मोटापा, हाइपरटेंशन और मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा बढ़ी है। इसका सबसे बड़ा कारण पैक्ड प्रोसेस्ड फ़ूड है।
फ़ूड सेफ़्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (पैकेजिंग और लेबलिंग) रेगुलेशन, 2011 के मुताबिक़ भारत में बिकने वाले हर प्री-पैक्ड प्रोसेस्ड फ़ूड के पैकेट पर उसके पौष्टिक तत्वों की पूरी जानकारी लिखी होनी चाहिए। एफ़एसएसएआई का मानना है कि यह जानकारी उपभोक्ताओं के लिए जरूरी है। कोई भी खाने का पैकेट खरीदने से पहले इसको पढ़ लेना चाहिए। किंतु यह व्यवहार में नहीं है। अक्सर लोग अपने स्वाद के अनुसार प्रोडक्ट की खरीद करतें हैं और पैकेट पर लिखी सूचनाओं को नजरअंदाज कर देते है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि भारत की एक बड़ी आबादी को हिंदी या अंग्रेज़ी में लिखी चीज़ों को पढ़ने या समझने में कठिनाई महसूस होता है। कई बार वह इतना छोटे में लिखा होता है कि उसको आसानी से पढ़ पाना मुश्किल हो जाता है। कई बार कंपनी सही जानकारी नहीं देती है। वह ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करती है, जो आम लोगों की समझ से बाहर है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया में पीडिएट्रिक एंडोक्रोनोलॉजिस्ट और ‘शुगर द बिटर ट्रूथ’ के लेखक, जाने माने अमेरिकी डॉक्टर रॉबर्ट लस्टिग का मानना है कि खाद्य पदार्थ ऐसा हो जो गट यानी आंतों का ख़्याल रखे। लिवर की रक्षा करे और दिमाग़ को ताक़त दे। गट या आंतों को ठीक रखने के लिए खाद्य पदार्थ में रफ़ेज की मात्रा पर्याप्त होना चाहिए। चीनी और कैडमियम की अधिक मात्रा होने से लिवर को नुकसान होने का खतरा बढ़ जाता है। आप देखेंगे कि इन दिनों अधिकांश लोगो में फ़ैटी लिवर की समस्या उत्पन्न हो गई है। इसी प्रकार दिमाग़ के लिए ओमेगा 3 फ़ैटी एसिड की बहुत ज़रूरत है। जो प्रोसेस होने के दौरान अधिकांश नष्ट हो जाता है। इसके अतिरिक्त पैकेट वाले खाद्द सामग्री को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने के लिए कंपनी उसमें कई प्रकार का प्रिजेटिव मिला देती है। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत ही खतरनाक होता है।
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