मीनापुर। देश की खातिर अपने प्राण की आहूति देने वाले अमर शहीद जुब्बा सहनी का पैतृक गांव चैनपुर आज भी मुलभूत सुविधाओं से वंचित है। शहीद के परिजन आजाद भारत के नेताओं के कोरे आश्वासन व घड़ियाली आंसू के भंवर में उलझ कर रह गये हैं।
आजाद भारत का सपना पाले 11 मार्च 1944 को सेंट्रल जेल भागलपुर में जुब्बा सहनी हंसते-हंसते फांसी पर झुल गए। आजादी के बाद से आज तक राजनेता जुब्बा सहनी के नाम पर राजनीति की रोटी सेकते रहें। लेकिन उनके पैतृक गांव चैनपुर को सात दशक बाद भी एक राजस्व गांव का दर्जा तक नहीं मिल सका। कोइली पंचायत के मुखिया चैनपुर निवासी अजय सहनी बताते हैं कि मुखिया बनते ही उन्होंने चैनपुर को राजस्व गांव बनाने के लिए अंचलाधिकारी से लेकर जिलाधिकारी और सांसद से लेकर मंत्री तक सभी को पत्र लिखा। बावजूद कोई सुनने वाला नहीं मिला।
चैनपुर में बुनियादी सुविधाओं का अभाव
कहने को गांव में पक्की सड़क है। लेकिन टूटी सड़क व बड़े-बड़े गड्ढे विकास कार्यों की कहानी कह रही है। गांव में पहुंचते ही लोगों का दर्द फूट पड़ता है। वार्ड सदस्य जामुन सहनी बतातें हैं कि चुनाव के वक्त नेता आते है और विकास का सपना दिखा जाते हैं। फिर कोई नहीं आता। मुश्ताक का कहना है कि नेता को छोड़िए गांव में अफसरों ने भी कई सपने दिखाये थे। महेश सहनी ने बताया कि गांव में प्राथमिक विद्यालय तक नहीं है। बच्चों को शिक्षा के लिए दूसरे गांव में जाना पड़ता है। गांव में शहीद स्मारक के लिए जमीन दान देने वाली रामपरी देवी उपेक्षा से काफी नाराज दिखीं।
अभी करने होंगे कई प्रयास
तात्कालीन सांसद डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने 18 लाख रुपये की लागत से चैनपुर में एक शहीद स्मारक भवन का निर्माण कराया। लेकिन भवन तक आवागमन की समुचित सुविधा नहीं है। दूसरी ओर निषाद विकास संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश सहनी ने चैनपुर से सटे महदेइयां में अपने निजी कोष से छह कट्ठा जमीन पर शहीद स्मारक भवन और गौशाला बनवाया, जिसका उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने उद्घाटन किया था।
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