KKN गुरुग्राम डेस्क | आज देशभर में बुद्ध पूर्णिमा 2025 का पावन पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। यह दिन भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण से जुड़ा हुआ है, जो इसे अत्यंत पवित्र और विशेष बनाता है। हिंदू और बौद्ध धर्म दोनों में इस पर्व का महत्वपूर्ण स्थान है। यह पर्व हर साल वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जिसे वैशाख पूर्णिमा भी कहा जाता है।
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बुद्ध पूर्णिमा 2025: तिथि और पूजा मुहूर्त
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पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 11 मई 2025, शाम 6:55 बजे
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पूर्णिमा तिथि समाप्त: 12 मई 2025, शाम 7:22 बजे
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पूजा का शुभ मुहूर्त: 12 मई, दोपहर 11:51 से 12:45 तक
पूजा का समय चंद्रमा की स्थिति और वैदिक पंचांग के अनुसार तय किया जाता है। इस वर्ष यह शुभ पर्व सोमवार को पड़ रहा है, जो अपने आप में अत्यंत फलदायी माना जाता है।
भगवान बुद्ध का जीवन: एक राजकुमार से बुद्ध बनने तक
राजकुमार सिद्धार्थ का जन्म लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में 2587 वर्ष पूर्व एक राजपरिवार में हुआ था। उन्होंने सांसारिक सुखों को त्यागकर सत्य की खोज में सात वर्षों तक तपस्या की। अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बोधि ज्ञान प्राप्त हुआ और वे गौतम बुद्ध बन गए।
इसी दिन उन्होंने खीर का सेवन कर व्रत का पारण किया था, इसलिए इस दिन खीर बनाने और प्रसाद के रूप में चढ़ाने की परंपरा है। आगे चलकर, इसी तिथि को उन्होंने कुशीनगर में महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया।
बुद्ध पूर्णिमा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
बुद्ध पूर्णिमा को तीन महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए याद किया जाता है:
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जन्म: सिद्धार्थ का जन्म लुंबिनी में
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ज्ञान प्राप्ति: बोधगया में
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महापरिनिर्वाण: कुशीनगर में
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान बुद्ध भगवान विष्णु के नवें अवतार हैं। इस दिन भगवान बुद्ध, विष्णु और चंद्रदेव की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है। पूजा के माध्यम से मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
भारत और विश्वभर में कैसे मनाई जाती है बुद्ध पूर्णिमा?
बुद्ध पूर्णिमा केवल भारत तक सीमित नहीं है। यह पर्व नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, जापान, चीन, लाओस और अन्य बौद्ध देशों में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
बोधगया में हजारों श्रद्धालु बोधि वृक्ष के नीचे एकत्र होते हैं। यहां:
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बौद्ध ग्रंथों का पाठ होता है
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भगवान बुद्ध की मूर्ति का अभिषेक किया जाता है
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भिक्षुओं द्वारा प्रवचन दिए जाते हैं
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दान, ध्यान और उपवास किए जाते हैं
संयुक्त राष्ट्र (UN) ने भी इस दिन को वेसाक दिवस (Vesak Day) के रूप में मान्यता दी है।
पूजा विधि (Puja Vidhi)
बुद्ध पूर्णिमा पर पूजा करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन किया जाता है:
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घर या मंदिर को साफ करके भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित करें
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दीपक, धूप, फूल और फल अर्पित करें
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भगवान को खीर का भोग लगाएं
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बुद्ध वाणी (उपदेश) का पाठ करें या सुनें
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“बुद्धं शरणं गच्छामि” मंत्र का जप करें
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ध्यान और मौन साधना करें
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गरीबों को वस्त्र, अन्न या जल दान करें
भगवान बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएं
भगवान बुद्ध का जीवन संदेशों से परिपूर्ण है, जो आज भी प्रासंगिक हैं:
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चार आर्य सत्य (Four Noble Truths): जीवन में दुख है, दुख का कारण तृष्णा है, तृष्णा का अंत संभव है और अष्टांगिक मार्ग से यह संभव है।
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अहिंसा और करुणा: सभी जीवों से प्रेम करें।
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मध्यम मार्ग: अत्यधिक भोग और कठोर तपस्या दोनों से बचें।
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कर्म और पुनर्जन्म: जैसा कर्म, वैसा फल।
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सत्य और ध्यान: जागरूकता से मुक्ति संभव है।
इस दिन दान करना क्यों है विशेष?
बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान करना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। खासतौर पर इन वस्तुओं का दान किया जाता है:
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जल से भरा हुआ कलश
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चप्पल, जूते और छाता
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सत्तू, गुड़ और वस्त्र
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धार्मिक पुस्तकें या ज्ञान सामग्री
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पंखा, तिल और खीर
ऐसा माना जाता है कि इस दिन दान से पापों का नाश होता है और मन की शुद्धि प्राप्त होती है।
आज के समय में बुद्ध पूर्णिमा का महत्व
आज जब संसार में तनाव, हिंसा और भौतिकवाद बढ़ रहा है, बुद्ध पूर्णिमा का संदेश शांति, सहिष्णुता और आत्मचिंतन का रास्ता दिखाता है।
माइंडफुलनेस, ध्यान, और करुणा आधारित जीवनशैली अब केवल धार्मिक अवधारणाएं नहीं रह गईं, बल्कि ये मनोविज्ञान और चिकित्सा में भी उपयोग की जाने लगी हैं।
बुद्ध पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता का प्रतीक है। यह दिन हमें सत्य, करुणा और शांति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। आइए, इस अवसर पर हम सभी मिलकर भगवान बुद्ध के सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारें और विश्व शांति और मानव कल्याण की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाएं।
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