भारत की राजनैतिक नभमंडल के शुभ, शीतल, शशांक, बहुआयामी व्यक्तित्व के विलक्षण प्रतिभा के धनी कविहृदय महान नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अब हमारे बीच नहीं रहे। अटल बिहारी वाजपेयी जी का भारतीय चिंतन, विचार और राजनीति के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान को देश सदैव याद रखेगा। उनकी निष्ठा, निस्पृहता एवं निर्भिकता और निर्मल विचार हमे बहुत याद आयेंगे। अटल बिहारी वाजपेयी ने चारित्रिक उदात्तता के प्रखर प्रकाश में प्रगति और प्रतिष्ठा के जिस सर्वोच्च शिखर-पथ का संधान किया है, वह सचमुच अनुपमेय है। कहतें हैं कि भारतीय राजनीति के तपोवन में विनम्रता, सच्चाई तथा त्याग का मंत्रोच्चारण करनेवाले इस महामहिम राजनीतिक ऋषि और आधुनिक भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह को कोटी- कोटी नमन…। संज्ञा प्राप्त है।
अटलजी के सफर का प्रथम चरण
अटलजी के राजनीतिक जीवन को तीन चरणों में देखा जा सकता है। आरंभिक, मध्यकालीन एवं उत्तरकालीन। आरंभिक चरण वो समय था जब वाजपेयीजी का राजनीतिक जीवन अपने शैशवावस्था में था। जब हमारा देश परतंत्रता की काली छाया से तबाह था। उसी समय इन्होने महात्मा गांधी के नेतृत्व वाले भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की। उन्होंने वर्ष 1951 में भारतीय जनसंघ पार्टी के एक कार्यकुशल सदस्य के तौर पर अपनी राजनीतिक यात्रा का विधिवत श्रीगणेश किया। वर्ष 1957 में पहली बार अटलजी लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और सदन में इनके पथम भाषण से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरु अत्यधिक प्रभावित हुए थे।
अटलजी का द्वितीय चरण
अटल जी की राजनीतिक यात्रा का मध्यकाल तब शुरू होता है जब इस देश की राजनीति नयी अंगराईयां ले रही थीं। वह वर्ष 1977 का समय था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के तानाशाही रवैये से पूरा देश संतप्त था। फलस्वरूप शांति की शशि-किरणों के लिए अशांति के अंध तमस में आकुल-व्याकुल देश की जनता के हितों की रक्षा के तदर्थ प्रखर समाजवादी लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर इन्होंने अपनी अकूत ऊर्जा -श्रम से पालित-पोषित जनसंघ का विलय जनता पार्टी में कर दिया और जेपी के समतामूलक समाजवाद ने आगामी चुनाव में रंग दिखाया और केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार का गठन हुआ। वाजपेयीजी को विदेशी मामलों का मंत्रालय सौंपा गया और उस दरम्यान संयुक्त राष्ट्र की महासभा को अटल जी ने हिंदी में संबोधित कर हमारे चिरमहान देश भारत और समस्त भरतवंशियों का अखिल विश्व में मान बढ़ाया। वर्ष 1979 में जनता पार्टी के कई टुकड़े हुए और एक बार फिर देश में घोर अवसाद एवं निराशा का वातावरण का निर्माण होने लगा। ऐसे में लोकतंत्र के सजग प्रहरी अटलजी ने देश की राजनीति की बागडोर संभाली और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की और इस पार्टी के प्राणपुरुष सह मेरुदंड स्वयं बने।
अटलजी का तीसरा चरण
वर्ष 1996 में देश में परिवर्तन की बयार चली और बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं और अटलजी ने पहली बार इस देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया। हालांकि उनकी यह सरकार महज 13 दिन ही चली। लेकिन 1998 के चुनाव में देश की जनता ने फिर वाजपेयीजी की योग्यता पर अपना भरोसा जताया और अटलजी के कुशल मार्गदर्शन एवं नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी। अटलजी के इस कार्यकाल में भारतवर्ष परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बना। अटलजी ने पाकिस्तान के साथ कश्मीर विवाद सुलझाने, आपसी व्यापार एवं भाईचारा बढ़ाने आदि का अथक प्रयास किये। परन्तु 13 महीने के कार्यकाल के बाद इनकी सरकार घोर राजनीतिक षडयंत्र के तहत महज एक वोट से अल्पमत में आ गयी। इन्होने ये कहकर त्यागपत्र सौंप दिया कि जिस सरकार को बचाने के लिए असंवैधानिक कदम उठाने पड़ें उसे वो चिमटे से छूना पसंद नहीं करुंगा।
कारगिल में दिखाया नेतृत्व
वर्ष 1999 के आम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री रहते हुए कारगिल में पाकिस्तान को उसके नापाक कारगुजारियों का करारा जवाब दिया और भारत कारगिल युद्ध में विजयी हुआ। कालांतर में आमचुनाव हुए और जनता ने अटलजी की दूरदृष्टि, कड़ी मेहनत और पक्के इरादे को अपनाया और अटलजी ने तमाम दुरभिसंधियों से लड़ते हुए राजग की सरकार बनाई। प्रधानमंत्री के रूप में इन्होने अपनी क्षमता का बड़ा ही समर्थ परिचय दिया और अनिश्चितता एवं अस्थिरता के कुहासे को दूर कर नवनिर्माण तथा नव प्रगति से इस देश की प्रगति का अभिषेक तथा श्रृंगार किया। अपनी विलक्षण सेवा-भावना एवं कठोर कर्मठता से अटलजी ने इस देश की राजनीति को नवीन चेतना प्रदान की। अनेकानेक आर्थिक और संरचनात्मक सुधारों से देश की जनता को फीलगुड कराया। अटलजी की इस सरकार ने अपना कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा किया और इस माध्यम से उन्होंने देश में गठबंधन की राजनीति को नया आयाम भी दिया।
सत्तालोलुपता से खुद को रखा दूर
अटलजी की राजनीति का सबसे सबल पक्ष ये रहा उन्होने कभी सत्तालोलुप नहीं दिखाई। उन्होंने नैतिक सिद्धान्तों की राजनीति की और जब भी सरकार में शामिल हुए, पूरी तन्मयता और निष्ठा के साथ राजधर्म का पालन किया और जब विपक्ष में रहे एक सशक्त विपक्ष को परिभाषित किया। देश में जब-जब निराशा, कुंठा, वैमनस्यता इत्यादि का वर्चस्व बढ़ा तब-तब अटलजी ने अपनी ओजस्वी कविता-कृतियों के माध्यम से करोड़ों व्यक्तियों को अंधकार में नया आलोक प्रदान किया। तरुणों में नयी उमंग और नया उत्साह भरा। कालांतर में बढ़ती उम्र एवं शारीरिक अस्वस्थता के कारण इन्होने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था।
राजनीति में आदर्श का दीपक
अटलजी के समग्र राजनीतिक जीवन एवं योगदान का विश्लेषण किया जाये तो यह दृष्टिगोचर होता है कि वाजपेयीजी ने जीवन भर जिस आदर्श और गौरव के लिए संघर्ष किया, वह निस्संदेह ही ऐतिहासिक एवं अभूतपूर्व कहा जायेगा। अटलजी के व्यक्तित्व में एक यशस्वी धरती-पुत्र का आत्मविश्वास और दृढ़ता, एक प्रखर कवि की अनुभूति-प्रवणता, एक प्रकृष्ट दार्शनिक का तत्व चिंतन तथा एक सार्वभौम राजपुरुष का ओज और तेज समाविष्ट है। इतना ही नहीं अटलजी लोकनायक जयप्रकाश बाबू के बाद भारतीय राजनीति के सर्वाधिक प्रौढ़, प्राणवंत एवं जीवंत राजनीतिज्ञ के रूप में सर्वमान्य रहे। भारतीय राजनीति के मंदिर में अटलजी ने जिस उच्चादर्शों के दीपक जलाए, उसकी ज्योति अनन्तकाल तक अहरह अम्लान एवं जाज्वल्यमान होकर हम सभी प्रकाशित करती रहेगी।
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