KKN गुरुग्राम डेस्क | आज भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती के अवसर पर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है। सामाजिक समानता, संविधान निर्माण, शिक्षा और अधिकारों की लड़ाई में उनके योगदान को आज भी स्मरण किया जाता है। इस मौके पर बाबासाहेब के प्रेरणादायक विचार और संदेश लोगों को साझा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
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डॉ. अंबेडकर सिर्फ भारत के संविधान निर्माता नहीं थे, बल्कि वे एक ऐसे चिंतक, समाज सुधारक और विचारक थे, जिन्होंने दलितों, महिलाओं और वंचितों को न्याय और अधिकार दिलाने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।
अंबेडकर जयंती क्यों मनाई जाती है?
14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू में जन्मे डॉ. अंबेडकर ने सामाजिक विषमता, जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने संविधान निर्माण में सक्रिय भागीदारी निभाते हुए भारत को एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और सामाजिक न्याय आधारित राष्ट्र बनाने की नींव रखी।
अंबेडकर जयंती आज सिर्फ एक स्मृति दिवस नहीं, बल्कि उनके विचारों को दोहराने और लागू करने का दिन बन गया है।
डॉ. अंबेडकर के 10 प्रेरणादायक उद्धरण जो आज भी प्रासंगिक हैं
1. “मैं एक समुदाय की प्रगति को महिलाओं की प्रगति के आधार पर मापता हूं।”
2. “मन का विकास मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य होना चाहिए।”
3. “अगर मुझे लगे कि संविधान का दुरुपयोग हो रहा है, तो मैं सबसे पहले उसे जलाऊंगा।”
4. “मन की स्वतंत्रता ही सच्ची स्वतंत्रता है।”
5. “कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है।”
6. “शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो।”
7. “एक न्यायपूर्ण समाज वह है जिसमें कोई ऊंच-नीच नहीं होता।”
8. “समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन इसे ही शासन का मूल सिद्धांत होना चाहिए।”
9. “लोकतंत्र केवल शासन प्रणाली नहीं, सामाजिक संगठन की शैली है।”
10. “जीवन महान होना चाहिए, लंबा नहीं।”
डिजिटल माध्यम से हो रही है अंबेडकर के विचारों की प्रसार
आज की तकनीकी दुनिया में सोशल मीडिया पर अंबेडकर जयंती से संबंधित #AmbedkarJayanti2025, #BabasahebAmbedkar, #AmbedkarQuotes जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। लाखों लोग उनके उद्धरणों की फोटो, वीडियो क्लिप्स और डिजिटल पोस्टर साझा कर रहे हैं।
शिक्षण संस्थानों, सरकारी दफ्तरों और सामाजिक संगठनों द्वारा ऑनलाइन वेबिनार, पोस्टर प्रतियोगिता, और भाषण कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं।
संविधान निर्माता के रूप में अंबेडकर की भूमिका
डॉ. अंबेडकर को भारत का संविधान निर्माता कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भारत को एक समानतावादी और लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाने की नींव रखी। उन्होंने संविधान में न केवल मौलिक अधिकारों, बल्कि आरक्षण, संविधानिक सुरक्षा, और न्यायिक प्रणाली की मजबूती जैसे विषयों को समाहित किया।
दलित और पिछड़े वर्ग के अधिकारों की लड़ाई
डॉ. अंबेडकर ने दलित समाज को शिक्षा, राजनीति और रोजगार में बराबरी दिलाने के लिए कई संघर्ष किए। उन्होंने कहा था:
“यदि आप अपने अधिकार मांगने से डरते हैं, तो आप उसे पाने के कभी योग्य नहीं बन सकते।”
उनकी यह सोच आज भी सामाजिक परिवर्तन की धुरी बनी हुई है।
धार्मिक चेतना और बौद्ध धर्म की ओर रुख
1956 में डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया और लाखों अनुयायियों के साथ दलित बौद्ध आंदोलन की शुरुआत की। उन्होंने “बुद्ध और उनका धम्म” नामक पुस्तक में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को सामाजिक न्याय के साथ जोड़ा।
आज अंबेडकर अनुयायी दीक्षाभूमि (नागपुर) और चैत्यभूमि (मुंबई) जैसे पवित्र स्थलों पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
राष्ट्रीय स्मृति और सम्मान
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संसद भवन में अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण
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सभी राज्यों में रैली और जागरूकता अभियान
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सरकारी अवकाश और स्मृति समारोह
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छात्रवृत्ति योजनाएं और शैक्षणिक प्रोत्साहन
डॉ. अंबेडकर की जयंती केवल एक दिन का उत्सव नहीं है, यह एक ऐसा अवसर है जब हमें उनके विचारों, उनके संघर्ष, और उनके द्वारा दिखाई गई राह पर चलने का संकल्प लेना चाहिए। उनकी शिक्षाएं आज भी जातिवाद, असमानता और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ सबसे सशक्त हथियार हैं।
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