आसाराम व तथाकथित बाबा रामपाल के सलाखों मे जाने के बाद भी हम अंधविश्वास के जकड़न से बाहर नही निकल रहे है। ग्रामीण इलाका तो क्या शहर के वो लोग भी इसके चपेट मे है, जिन्हे हम शिक्षा व विज्ञान से जोड़कर देखते है। बिहार के कई जिलो से चौका देने वाली बाते सामने आयी है। रात मे ओझा व मौलवी झाड़फूक के नाम पर पहुंचते है। नशिला प्रसाद खिलाकर पुरा घर का समान लूट लेते है। आबरू से भी खेलने की कोशिश करते है।मुजफ्फरपुर जिले के मीनापुर का हजरतपुर व हरशेर गांव मे हाल मे इस तरह के हरकत देखे गये है। सवाल सिर्फ हरशेर या हजरतपुर का नही, सवाल मुजफ्फरपुर का नही, यह सवाल पुरे देश का है। हम इन पाखंडी ढोगिंयो के चंगुल से खुद को बाहर क्यो नही निकालते है। आज धर्म में भोग-विलास तेजी से पैठ बना रहा है। देश में ढोंगी बाबाओं के रोज नए नए खुलासे हो रहे हैं। जैसे संत रामपाल, आसाराम बापू, बाबा सारथी, राधे मां आदि के अहम खुलासे हुए हैं। इन संतो में से कोई संत सेक्स स्केंडल में फंसा है तो कोई यौन शोषण में और किसी पर घर उज़ाडने के आरोप लगे हैं। इनमें से संत रामपा
वहीं सारथी बाबा के बारे में भी एक न्यूज चैनल ने दावा किया है कि वे पांच सितारा होटल में 3 दिन किसी महिला के साथ रूके थे। ये सभी करो़डों की सम्पत्ति के मालिक हैं। ऎसे संत धर्म की आड में लोगों को बहला फुसला कर उनके साथ छलावा करते हैं। इनके मकडजाल में भोले भाले लोग ही नहीं, पढे लिखे भी फंस जाते हैं। इनके शोष्ण का शिकार महिलाएं अधिक होती हैं। धर्म शांति और मोक्ष का साधन माना जाता है। यही वजह है कि लोग धर्म की ओर आकृष्ट होते हैं और ये ढोंगी संत इसका गलत फायदा उठाते हैं और अपने को भगवान मानकर तरह तरह के आडम्बर रचते हैं। सवाल उठता है कि ऎसे क्या कारण है कि 21वीं सदी के भारत में भी लोग इनके मकडजाल में फंस जाते हैं।
वैसे तो धर्म मात्र बौद्धिक उपलब्धि ही नहीं है, वह इंसान की स्वाभाविक आत्मा है। धर्म का अर्थ है आत्मा से आत्मा को देखना। आत्मा से आत्मा को जानना। आत्मा से आत्मा में स्थित होना। धार्मिकता अंत करण की पवित्रता है। लेकिन आज धर्म में भोग-विलास तेजी से पैठ बना रहा है। जहां त्याग और भोग की दूरी खत्म होती जाती है, धर्म धन से संयुक्त होता है, वहां धर्म अधर्म से ज्यादा भयंकर बन जाता है और उसकी परिणति कथित संत आसाराम, रामपाल और राधे मां जैसे लोगों के रूप में होती है। धर्म शांति और मोक्ष का साधन माना जाता है। यही वजह है कि लोग धर्म की ओर आकृष्ट होते हैं, लेकिन कुछ ढोंगी बाबाओं की वजह से आज धर्म के प्रति
पर यहां सबसे ब़डा सवाल ये है कि आखिर वो कौन सी वजहें है जिससे लोग ऎसे बाबाओं के चंगुल में फंस जाते हैं। उनको भगवान मानने लगते हैं। उनके पीछे पागल हो जाते हैं। लोगों को समझना चाहिए कि ऎसे ढोंगी बाबाओं के चंगुल में न आएं जिससे उनका जीवन बर्बाद होने से बच जाए। ऎसे होती है आधुनिक बाबाओं की ढोंग कला इन्हीं ढोंग कलाओं से लोग इनके चंगुल में फंस जाते हैं और फिर ये कैसे जनता का शोषण करते हैं।
1- स्वांग रचने की कला
संत आसाराम से लेकर राधे मां तक कथित ढोंगी संतों की सबसे ब़डी कला स्वांग रचने की है। स्वांग यानी एक चरित्र खुद को दूसरे चरित्र में ढाल कर नाटक करता है। आसाराम और राधे मां की बॉडी लैंग्वेज पर बारीक नजर डालें, तो यह स्वांग साफ-साफ नजर आता है। ढोंगी संत खुद को भगवान के रूप में प्रदर्शित करते हैं। भगवान की काल्पनिक मुद्रा और भाव-भंगिमाएं बनाने की कोशिश करते हैं। बचपन से ही हम टीवी-सीरियल या पोस्टर में दिखने वाले भगवान को अपने दिमाग में सहज सहेज लेते हैं। ऎसे में जब ये ढोंगी बाबा उनकी तरह स्वांग रचाते हैं, तो हमें लगता है कि वे भगवान हैं। हम उनकी तरफ आकर्षित होते चले जाते हैं। उन्हें भगवान मानकर पूजा करने लगते हैं। इसी का फायदा उठाकर इच्छाधारी बाबा और आसाराम जैसे कथित संत लोगों का शोषण करते हैं। ज्यादातर महिलाएं इनकी शिकार बनती हैं।
2- बात बनाने और बरगलाने की क्षमता
कथित संत रामपाल और आसाराम जैसे लोगों की वाकपटुता की वजह से भोले-भाले लोग आसानी से उनकी बातों में आ जाते हैं। उनके अंदर बात बनाने की वो कला होती है, जो लोगों को सम्मोहित कर लेती है। इसके बाद उनकी हर बात सही लगने लगती है। अपनी बातों में फंसाकर ये ढोंगी बाबा लोगों को बरगलाने लगते हैं। तरह-तरह के बहाने बनाकर उनसे पैसे ऎंठते हैं। उनकी बातों में फंसी जनता को इसका आभास बहुत देर से होता है।
3- आकर्षक आवरण
ढोंगी बाबाओं के केस में अक्सर देखा गया है कि ये आकर्षक आवरण में होते हैं। उदाहरण के लिए इच्छाधारी बाबा भीमानंद, राधे मां, स्वामी नित्यानंद और निर्मल बाबा के कप़डों और रहन-सहन पर गौर कीजिए। ये सामान्य से हटकर परिधान पहनते हैं। इनके बैठने के आसन, कप़डों का स्टाइल, बैठने का तरीका, मंच की साज-सज्जा अनोखी होती है, जो लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती है।
4- कमजोरियों का फायदा उठाने की कला
ढोंगी बाबाओं को लोगों और धर्म की कमजोरियों को फायदा उठाने की कला बखूबी आती है। उन्हें पता होता है कि लोग की कमजोरियां क्या हैं। वे उसे धर्म से जो़ड देते हैं। लोगों को भनक भी नहीं लगती कि आस्था के नाम पर उनके साथ खेल हो रहा है। ऎसे फर्जी संतों के निशाने पर गरीब और अनपढ़ लोग होते हैं। कुछ अमीर अपने काले धन को सफेद करने के लिए ही उनकी शरण में जाते हैं।
5- ब्रैंडिंग और मार्केटिंग की कला
इस जमाने में ब्रैंडिंग और मार्केटिंग सबसे ब़डी कला मानी जाती है। ढोंगी बाबाओं का ये सबसे ब़डा औजार होता है। टीवी, अखबार और सोशल मीडिया के माध्यम से ये लोग खुद के पैसे से खुद का प्रचार कराते हैं। खुद को भगवान का अवतार बताते हुए, लोगों की सभी परेशानियां दूर करने का दावा करते हैं। अपने दुख में उलझी जनता इनके झांसे में आसानी से आ जाती है। कुछ ट्रिक की वजह से इनको भगवान मानने लगती है। कहते हैं झूठ कितना भी शक्तिशाली हो, उसका पर्दाफाश जरूर होता है। जी हां, इसके सबसे ब़डे उदाहरण कथित संत आसाराम, इच्छाधारी बाबा भीमानंद, निर्मल बाबा, रामपाल और राधे मां हैं। देर ही सही इनकी सच्चाई से पर्दा उठा चुका है। हां, इससे आहत हुई है, तो लोगों की आस्था। ऎसे में अब जनता इस असमंजस में रहती है कि उनके सामने जो संत बैठा है वह वास्तव में ही संत है या ढोंगी बाबा।
This post was published on अप्रैल 20, 2017 16:23
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