बिहार। भाजपा भगाओ, देश बचाओ रैली में भीड़ जुटाने में राजद नेता मुकम्मल तौर पर कामयाब हो गयें हैं। रैली में माई समीकरण का जबरदस्त दबदबा से भी किसी को इनकार नही रहा। सबसे अहम बात ये कि भीड़ के द्वारा की जा रही जबरदस्त नारेबाजी ने तेजस्वी को राजद का नया अवतार स्वीकार कर लिया है।
पार्टी ने भी तेजस्वी को स्थापित करने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। मंच पर तेजस्वी के अब तक के सभी प्रमुख भाषणों का आडियो- वीडियो का प्रसारण हो रहा था। लिहाजा, यह तय माना जा रहा है कि आने वाले समय में राजद की कमान तेजस्वी के हाथों में होगी और राजद का नया संस्करण बिहार की राजनीति में लोगो के सामने आएगा।
लालू प्रसाद को रैली का महारत हासिल है। हालांकि, लालू प्रसाद का पूरा कुनबा इस वक्त भ्रष्टाचार से अकूत धन अर्जित करने के आरोपों से घिरा है। सीबीआई, ईडी, आयकर और अन्य एजेंसियां आरोपों की जांच कर रही है। अब देखना है कि इस रैली का इन जांचों पर क्या असर पड़ता है? मंच पर कॉग्रेस की ओर से गुलाम नबी आजाद और सीपी जोशी की मौजदगी के भी मायने निकाले जा रहें हैं। इनके अलावा मंच पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, झारखंड के दो पूर्व मुख्यमंत्री क्रमश: हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी की मौजूदगी खास मायने रखती हैं। कांग्रेस व सीपीआई के अलावा देश के 17 क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों का जुटान रैली को बड़ा आयाम दे गया है। जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव पार्टी अनुशासन की परवाह किए बगैर रैली में शामिल हो कर राजनीति में बड़े बदलाव के संकेत दे गयें हैं।
बहरहाल, यह भीड़ लालू की चुनौती को कितना कम करेगा? खुद उन्हें चारा घोटाले में रांची स्थित सीबीआई कोर्ट में हर दूसरे- तीसरे दिन हाजिरी लगानी पड़ रही है। रैली की कामयाबी के लिए राज्यभर का दौरा उनके लिए संभव नहीं था। ऐसे में उन्होंने योजना बनाकर काम किया। दूरदराज के इलाकों में तेजस्वी और तेजप्रताप के दौरे कराए। खुद पटना के आसपास के जिलों का दौरा किया। समर्थकों में गुस्सा पैदा करने के लिए आक्रामक भाषण का सहारा लिया। रांची और पटना में हर-दूसरे तीसरे दिन प्रेस कान्फ्रेंस करते रहे। उनकी बातों के दो पहलू रहे- पहला आरोपों की जांच को वह प्रतिशोध की कार्रवाई करार देते रहे तो आक्रामक पलटवार भी करते रहे। जदयू की नैतिकता के आधार पर महागठबंधन से अलग होने और फिर एनडीए के साथ सरकार बनाने के फैसले को वह धोखा करार देते रहे और इस चुनौती को पार करने में शरद यादव ने उनका साथ दिया। वैसे रैली में भीड़ इकट्ठा करने में राजद के 80 विधायकों की भी बड़ी भूमिका रही।
सामाजिक समीकरण के जोड़-घटाव का गणित किस करवट बैठेगा और समीकरण कैसे और क्या आकार लेंगा? फिलहाल, इतना तो तय है कि रैली ने राजद को नई ऊर्जा प्रदान की है। अब राजद की चुनौती इससे बड़ी है कि अपने समर्थकों के जोश- जज्बे को वह लंबे समय तक कायम रखे। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने इशारों में इस आशय की अपनी विनम्र चिंता भी जाहिर कर दी। उन्होंने कहा हाथ जोड़कर विनम्र प्रार्थना करती हूं, शांतिपूर्ण जाइएगा, आराम से जाइएगा ताकि किसी को कोई मौका नहीं मिले। दरअसल, यही वह चिंता है, जिससे उबरने की कोशिश में यदि राजद को सफलता मिल गया तो, बिहार की राजनीति में बड़ा छलांग लगाने से राजद को रोक पाना बिरोधियों की सबसे बड़ी चुनौती बन सकता है।
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