KKN न्यूज ब्यूरो। कुछ साल पहले की बात है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. तपन मिश्र ने कहा था कि उन्हें जान से मारने की कोशिश की जा रही है। उनका कहना था कि पिछले 3 साल में करीब तीन बार उनके भोजन में जहर मिलाया गया। उन्होंने भारत सरकार को पूरी बातें बताई। सरकार ने अपने तरीके से काम भी किया। पर, एक वैज्ञानिक को मारने की कोशिश करने वाला कौन हो सकता है? यह बड़ा सवाल है।
जानकारी चौंकाने वाली है
तपन मिश्र के दावे की गंभीरता को देखें और फिर वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौत के इतिहास को देखेंगे तो जानकारी चौंकाने वाली है। हमारे टॉप के कई वैज्ञानिकों की संदेहास्पद तरीके से मृत्यु हो चुकी है। वर्षो बीत गए, आज भी वैज्ञानिकों की मौत का गुत्थी, उलझा हुआ है। डॉ. होमी जहांगीर भाभा और डॉ. विक्रम साराभाई से लेकर के.के जोशी और आशीष अश्नीन तक…। भारत के कई शीर्ष वैज्ञानिकों की अप्रत्याशित मौत की फेहरिस्त बहुत लंबी है।
वैज्ञानिक नंबी नारायण
भारत के एक मशहूर वैज्ञानिक नंबी नारायण एक एयरोस्पेस साइंटिस्ट है। वो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इशरो में स्पेस रीसर्च से जुड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। सरल शब्दों में कहे तो उनकी टीम भारत के लिए क्रायोजनिक इंजन बनाने के काम में जुटी थी। अमेरिका सहित दुनिया के तमाम बड़े देश भारत को क्रायोजनिक इंजन बनाने से रोकना चाह रही थी। नंबी नारायण रुकने को तैयार नहीं थे। कहा तो यह भी जा रहा था कि 90 के दशक में ही उनकी टीम क्रायोजनिक इंजन बनाने के बहुत करीब पहुंच चुका था।
महिला के कहने पर वैज्ञानिक गिरफ्तार
बात वर्ष 1994 की है। महीना अक्तूबर का था। तिरूवनंतपुरम से केरल की पुलिस एक महिला को गिरफ़्तार करती है। उसका नाम मरियम रशिदा है। वह खुद को मालदीव की रहने वाली बताती है। महिला पर आरोप लगा कि उसने भारत के स्वदेशी तकनीक से विकसित होने वाली क्रायोजनिक इंजन का कुछ सीक्रेट पाकिस्तान को उपलब्ध करा दिया है। केरल की पुलिस महिला से पूछता करती है और उसके बयान को आधार बना कर केरल पुलिस ने क्रायोजनिक इंजन प्रॉजेक्ट के डायरेक्टर नंबी नारायणन और उनके टीम के वैज्ञानिक डी. शशि कुमारन और डेप्युटी डायरेक्टर के. चंद्रशेखर को गिरफ़्तार कर लेती है। इसके बाद रूसी स्पेस एजेंसी के एक भारतीय प्रतिनिधि एस.के. शर्मा और फौजिया हसन को भी गिरफ्तार कर लिया जाता है। इन सभी लोगो पर इशरो के स्वदेशी क्रायोजनिक रॉकेट इंजन से जुड़ी खुफिया जानकारी पाकिस्तान को उपलब्ध कराने का आरोप था।
स्पेस रीसर्च को लगा झटका
गिरफ्तारी के समय स्पेस साइटिस्ट नंबी नारायणन रॉकेट में इस्तेमाल होने वाले स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन बनाने के बेहद करीब पहुंच चुके थे। जाहिर है अब इस प्रोजेक्ट पर काम रुक गया और भारत कई दशक पीछे चला गया। उनदिनो केरल में वामपंथ की सरकार थी। जबकि, खेल पूंजीवाद का चल रहा था।
फर्जी आरोप पर हुई करवाई
मामला इसरो से जुड़ा था। लिहाजा, केन्द्र की सरकार ने सीबीआई को इसकी जांच सौप दी। सीबीआई ने जब जांच शुरू किया तो अधिकारी हक्के- बक्के हो गए। पूरा का पूरा आरोप फर्जी और प्रायोजित था। केरल की पुलिस और वहां की इंटेलिजेंस ब्यूरो के इस हरकत से देश को बहुत नुकसान हो गया। इस बीच अप्रैल 1996 में सीबीआई ने अदालत में अपना रिपोर्ट पेश कर दिया। इसमें पूरा मामला फर्जी बताया गया। सीबीआई की जांच से पता चला कि भारत के स्पेस प्रोग्राम को डैमेज करने की नीयत से नंबी नारायणन को केस में फंसाया गया है। गौर करने वाली बात ये है कि सांइटिस्ट नंबी नारायण पर मनगढ़ंत आरोप लगाने वाली केरल एस.आई.टी के टीम लीडर सीबी मैथ्यूज को बाद के दिनों में केरल की सरकार ने राज्य का डीजीपी बना दिया। यानी भारत को स्पेस रीसर्च में पीछे ढकेलने वाले अधिकारी को सजा की जगह प्रमोशन दे दिया गया।
भाभा की रहस्यमय मौत
कहा जाता है कि होमी जहांगीर भाभा कुछ वर्ष और जिंदा रह जाते तो भारत का न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम बहुत पहले ही मुकाम पर होता। एक रहस्यमय विमान दुर्घटना में भाभा की मौत हो गई। कहा जाता है कि भाभा की मौत के पीछे साजिश थी। ताकि, भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम को रोका जा सके। सच क्या है? इसका आज तक खुलाशा नहीं हुआ। भाभा की दिलचस्पी फिजिक्स में थी। उन्होंने साल 1934 में कॉस्मिक-रे पर रीसर्च करके दुनिया को चौका दिया था। साल 1939 में वे अमेरिका से लौट कर भारत आए और यही रह गये। भाभा ने साल 1945 में इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रीसर्च की स्थापना की। भाभा जिस तरह से न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर आगे बढ़ रहे थे, उससे अमेरिका चिंतित हो गया था। कहा जाता है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने साजिश के तहत 1966 में भाभा का प्लेन क्रैश करवा दिया था। हालांकि, यह बात आज तक साबित नहीं हो सका है।
साराभाई का नहीं हुआ पोस्टमार्टम
भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान आज जहां भी है, उसकी कामयाबी के पीछे विक्रम साराभाई का बहुत बड़ा योगदान है। साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। लेकिन, मात्र 52 साल की उम्र में उनकी रहस्यमय तरीके से मौत हो गई। विक्रम साराभाई आणविक ऊर्जा से इलेक्ट्रॉनिक्स में काम कर रहे थे। केरल में एक कार्यक्रम को संबोधित करने गए और अपने कमरे में मृत पाए गए। जबकि, पहले से वो बिल्कुल सामान्य थे। साराभाई की बेटी मल्लिका ने दावा किया था कि उनके पिता की मेडिकल रिपोर्ट सामान्य थी और उन्हें किसी तरह की कोई बीमारी नहीं था। फिर मौत कैसे हो गई? ताज्जुब की बात ये हैं कि इतने बड़े वैज्ञानिक रहे विक्रम साराभाई का पोस्टमार्टम नहीं हुआ और आनन-फानन में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। इससे उनके मौत का रहस्य, आज भी रहस्य बना हुआ है।
घर से निकले और लापता
अब बारी थी प्रतिभावान वैज्ञानिक लोकनाथन महालिंगम की। बात तब कि है जब लोकनाथन कर्नाटक के कैगा एटॉमिक पावर स्टेशन में कार्यरत थे। लोकनाथन के पास देश की सबसे संवेदनशील परमाणु जानकारी और महत्वपूण डेटा था। जून 2008 की सुबह लोकनाथन मॉर्निंग वॉक के लिए घर से निकले। लापता हो गये और पांच रोज बाद उनका शव बरामद हुआ। उनका भी आनन-फानन में अंतिम संस्कार कर दिया गया। बाद में कहा गया कि टहलने के दौरान तेंदुए ने उनपर हमला कर दिया होगा। कुछ लोग कहने लगे कि उन्होंने खुद ही आत्महत्या कर ली होगी। अपहरण के बाद उनकी हत्या की बातें भी कही गई। पर, आज भी उनकी मौत की गुत्थी उलझी हुई है।
घर में मिला मृत शरीर
भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक एम. पद्नमनाभम अय्यर की 23 फरवरी 2010 को रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई। मुंबई के उनके अपने ही घर के बरामदा पर उनका मृत शरीर पड़ा हुआ था। जबकि, पहले से वो बिल्कुल स्वस्थ्य थे। उनका उम्र मात्र 48 साल था। फोरेंसिक जांच हुई। पर, मौत का कारण पता नहीं चला। पुलिस ने फिंगर प्रिंट्स और दूसरी तरह की जांच की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला और फाइल को क्लोज कर दिया गया।
रेल लाइन पर मिला वैज्ञानिक का शव
परमाणु वैज्ञानिक केके जोशी और अभीश अश्वीन का शव रेलवे लाइन पर पड़ा हुआ था। जोशी और अश्नीन देश की पहली परमाणु पनडुब्बी आई.एन.एस. अरिहंत के संवेदनशील प्रोजेक्ट्स से जुड़े थे। बात अक्टूबर 2013 की है। विशाखापत्तनम की एक रेलवे लाइन पर उनकी लाश मिली थी। आप सोच सकते है, तो सोचिए कि हमारे देश के वैज्ञानिकों के साथ एक के बाद एक क्या हो रहा है? कहतें है कि 34 साल के जोशी और 33 साल के अश्वीन की पोस्टमार्टम जांच में ये पता चला कि उनकी मौत जहर से हुई है। सवाल उठता है कि जहर खाने के बाद दो वैज्ञानिक का शव एक साथ रेलवे लाइन पर कैसे पहुंचा? भारत में इस सवाल को राजनीति के गलियारे में टाल देने की परंपरा रही है। यहां भी इसी परंपरा का निर्वाह कर दिया गया।
चार साल में 11 परमाणु वैज्ञानिक की मौत
हरियाणा के एक आरटीआई के जवाब में भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग ने चौंकाने वाला आंकड़ा जारी किया हैं। इन आंकड़ों पर गौर करे तो वर्ष 2009 से वर्ष 2013 के बीच यानी सिर्फ चार साल में भारत के कुल 11 परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय परिस्थिति में मौत हो गई। इनमें से आठ ऐसे वैज्ञानिक हैं जो या तो विस्फोट में मारे गए या फिर उनका शव फंदे से लटका हुआ मिला। कुछ की मौत समुद्र में डूबने की वजह से हो गई। वैज्ञानिकों की यह रहस्यमय मौत केवल एक घटना हैं या फिर कोई साजिश? सवाल बड़ा है और सोचना हम सभी को है।