भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपना त्यागपत्र 21 जुलाई 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपा। इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य समस्याएं बताया गया है। उनके इस फैसले ने देश की राजनीति और मीडिया में हलचल मचा दी है।
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प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धनखड़ के इस्तीफे पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) के माध्यम से प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि श्री जगदीप धनखड़ जी को देश की सेवा के कई अवसर मिले, जिनमें Vice President of India के रूप में उनका कार्यकाल भी शामिल है। प्रधानमंत्री ने उनके स्वास्थ्य की कामना की और उनके लंबे सेवाकाल की सराहना की।
अनुच्छेद 67(क) के तहत दिया इस्तीफा
धनखड़ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(क) का उल्लेख करते हुए अपना त्यागपत्र सौंपा, जिसके तहत उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को लिखित सूचना देकर किसी भी समय इस्तीफा दे सकते हैं। अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि वे डॉक्टरों की सलाह के अनुसार स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे रहे हैं और इसीलिए Vice President resignation का निर्णय लिया है।
कार्यकाल का असामयिक अंत
धनखड़ का कार्यकाल अगस्त 2022 में शुरू हुआ था और उन्हें अगस्त 2027 तक उपराष्ट्रपति पद पर रहना था। लेकिन अब उन्होंने अपने कार्यकाल के मध्य में ही इस्तीफा देकर एक चौंकाने वाला कदम उठाया है। उनका इस्तीफा संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन आया, जिससे संसद और राजनीतिक हलकों में चर्चाएं तेज हो गई हैं।
राज्यसभा में संयमित और दृढ़ भूमिका
Rajya Sabha Chairman के रूप में धनखड़ ने लगभग तीन वर्षों तक काम किया। इस दौरान उन्होंने एक ऐसे सदन की अध्यक्षता की जो कई बार वैचारिक और राजनीतिक मतभेदों का गवाह रहा। उन्होंने बार-बार संसद की सर्वोच्चता और संवैधानिक प्रक्रियाओं के पालन की बात की।
राज्यसभा की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने की कोशिश की, हालांकि यह कार्य काफी चुनौतीपूर्ण रहा। उनके कार्यकाल को एक संतुलित और संवैधानिक दृष्टिकोण से देखा गया।
राजनीति और प्रशासन में लंबा अनुभव
उपराष्ट्रपति बनने से पहले जगदीप धनखड़ ने 2019 से 2022 तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में सेवा दी। उनका कार्यकाल कई बार राज्य सरकार के साथ टकराव के कारण सुर्खियों में रहा।
2022 में उपराष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी और यह उनके राजनीतिक कद का प्रमाण माना गया। इस जीत के बाद वे भारत के 14वें उपराष्ट्रपति बने।
तीसरे उपराष्ट्रपति जिन्होंने मध्य कार्यकाल में छोड़ा पद
धनखड़ भारत के तीसरे ऐसे उपराष्ट्रपति बने हैं जिन्होंने कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही पद छोड़ा है। इससे पहले वीवी गिरि और आर. वेंकटरमन ने ऐसा किया था, लेकिन उनके इस्तीफे का उद्देश्य राष्ट्रपति चुनाव लड़ना था।
वीवी गिरि ने 1969 में राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन के निधन के बाद कार्यकारी राष्ट्रपति बनने के लिए उपराष्ट्रपति पद छोड़ा था।
आर. वेंकटरमन ने 1987 में कांग्रेस के राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में चुने जाने के बाद इस्तीफा दिया था।
इन दोनों नेताओं ने बाद में President of India का पद संभाला, जबकि धनखड़ का इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से जुड़ा है, और उन्होंने भविष्य की किसी राजनीतिक योजना का संकेत नहीं दिया है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और अटकलें
धनखड़ के इस्तीफे के बाद राजनीतिक गलियारों में कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। कुछ लोग इसे केवल स्वास्थ्य से जुड़ा निर्णय मान रहे हैं, तो कुछ इसे राजनीतिक समीकरणों से भी जोड़कर देख रहे हैं।
फिलहाल, उनके द्वारा किसी अन्य पद के लिए चुनाव लड़ने या सक्रिय राजनीति में वापसी की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। लेकिन उनकी प्रशासनिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि को देखते हुए Bihar politics और केंद्र की रणनीतियों से उनका नाम जुड़ना स्वाभाविक है।
अगला उपराष्ट्रपति कौन?
धनखड़ के इस्तीफे के बाद अब देश को नया Vice President of India चुनना होगा। यह चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों द्वारा किया जाएगा और इसकी प्रक्रिया की निगरानी भारत निर्वाचन आयोग करेगा।
सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों ही अपने-अपने उम्मीदवारों को लेकर मंथन शुरू कर सकते हैं। चुनाव की तारीखें जल्द घोषित की जाएंगी और संसद की कार्यवाही फिलहाल कार्यवाहक अध्यक्ष के अंतर्गत जारी रहेगी।
उपराष्ट्रपति का संवैधानिक महत्व
भारत का उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है। उपराष्ट्रपति का प्रमुख कार्य राज्यसभा का अध्यक्ष बनकर संसद की प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित करना होता है।
राष्ट्रपति की अनुपस्थिति या आकस्मिक स्थिति में उपराष्ट्रपति कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में भी कार्य करते हैं। इसलिए यह पद न केवल प्रतीकात्मक बल्कि व्यावहारिक दृष्टि से भी बेहद अहम है।
धनखड़ के इस्तीफे से इस पद पर अस्थायी खालीपन आ गया है, जिससे संसद के संचालन और राजनीतिक समीकरणों पर प्रभाव पड़ सकता है।
निजी जीवन और सार्वजनिक सेवा
जगदीप धनखड़ का जन्म 1951 में हुआ था और उन्होंने एक वकील के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। बाद में वे राजनीति में आए और कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। उनका कार्यकाल हमेशा विवादों और चर्चाओं के केंद्र में रहा, लेकिन उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को दृढ़ता से निभाया।
स्वास्थ्य कारणों से लिया गया उनका यह निर्णय एक ऐसा उदाहरण है जब एक वरिष्ठ नेता ने सार्वजनिक जीवन से पीछे हटकर स्वस्थ जीवन को प्राथमिकता दी।
धनखड़ का इस्तीफा भारतीय राजनीति में एक दुर्लभ और ऐतिहासिक घटना बन गया है। यह न केवल संवैधानिक प्रक्रिया का उदाहरण है, बल्कि इसने नेतृत्व और स्वास्थ्य जैसे विषयों पर भी नई चर्चा को जन्म दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी की ओर से उन्हें शुभकामनाएं देना इस बात को दर्शाता है कि उन्होंने अपनी भूमिका में गरिमा बनाए रखी। देश अब अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव की ओर देख रहा है, जो आने वाले समय में भारत की राजनीतिक दिशा को प्रभावित कर सकता है।
जब तक नया उपराष्ट्रपति पदभार नहीं संभालते, तब तक संसद के ऊपरी सदन का संचालन कार्यवाहक अध्यक्ष द्वारा किया जाएगा। इस बीच, जनता और राजनीतिक विश्लेषक दोनों धनखड़ के इस फैसले के पीछे के व्यापक अर्थों को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
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