भारत जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के गंभीर प्रभावों से अछूता नहीं है। हाल ही में Central Water Commission (CWC) की रिपोर्ट में हिमालयी क्षेत्र को लेकर चिंताजनक तथ्य सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 400 से अधिक Himalayan Glacier Lakes तेजी से पिघल रही हैं और फैलाव बढ़ा रही हैं।
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विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति भारत के लिए बेहद खतरनाक हो सकती है और भविष्य में बड़े पैमाने पर Glacial Lake Outburst Floods (GLOFs) का खतरा बढ़ सकता है।
किन राज्यों में खतरा ज्यादा
रिपोर्ट के अनुसार हिमालयी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 432 झीलें ऐसी हैं जिनका विस्तार हो रहा है। इनमें –
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अरुणाचल प्रदेश: 197 झीलें
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लद्दाख: 120 झीलें
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जम्मू और कश्मीर: 57 झीलें
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सिक्किम: 47 झीलें
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हिमाचल प्रदेश: 6 झीलें
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उत्तराखंड: 5 झीलें
ये सभी इलाके न केवल संवेदनशील हैं बल्कि इनसे निकलने वाली नदियों पर लाखों लोगों की आजीविका निर्भर करती है।
झीलों का क्षेत्रफल बढ़ा
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में Glacier Lakes का क्षेत्रफल पिछले दशक में तेजी से बढ़ा है।
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वर्ष 2011 में इनका कुल क्षेत्रफल 1,917 हेक्टेयर था।
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वर्ष 2025 में यह बढ़कर 2,508 हेक्टेयर हो गया है।
इसका सीधा संकेत है कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और झीलों का आकार बढ़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन और खतरे
हिमालय को पहले से ही Climate Change Hotspot माना जाता रहा है। यहां तापमान बढ़ने और असामान्य बारिश के कारण ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं।
झीलों का बढ़ना और अचानक टूटना इस बात का स्पष्ट सबूत है कि आने वाले समय में हिमालयी राज्यों और निचले इलाकों के लिए बाढ़ का बड़ा खतरा है।
डाउनस्ट्रीम इलाकों पर असर
हजारों गांव और कस्बे हिमालयी नदियों पर निर्भर हैं। अगर किसी झील में अचानक बाढ़ आती है तो पूरा इलाका तबाह हो सकता है।
गांव, कृषि भूमि, सड़कें और हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स जैसे संसाधन सबसे पहले प्रभावित होंगे। इससे न केवल जानमाल का नुकसान होगा बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा असर पड़ेगा।
CWC की सिफारिशें
रिपोर्ट में सरकार और स्थानीय प्रशासन को तुरंत कदम उठाने की सलाह दी गई है।
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Real-Time Monitoring System लगाया जाए।
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Satellite-Based Alert System विकसित किया जाए।
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निचले इलाकों के लोगों को Disaster Preparedness Training दी जाए।
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हाई रिस्क ज़ोन की पहचान कर पहले से योजना बनाई जाए।
अंतरराष्ट्रीय संदर्भ
हिमालय ही नहीं, नेपाल, भूटान और तिब्बत में भी ऐसी ही स्थिति देखी जा रही है। अध्ययन बताते हैं कि Hindu Kush-Himalayan Region दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है।
इसलिए भारत को पड़ोसी देशों के साथ मिलकर नदी और झील प्रबंधन की रणनीति तैयार करनी होगी।
टेक्नोलॉजी से समाधान
सैटेलाइट इमेजरी, ड्रोन सर्वे और सेंसर आधारित तकनीक के जरिए झीलों की निगरानी संभव है।
अगर सही समय पर अलर्ट मिले तो बड़े हादसे टाले जा सकते हैं। यही कारण है कि रिपोर्ट में तकनीक को केंद्र में रखकर चेतावनी सिस्टम बनाने की सिफारिश की गई है।
कृषि और हाइड्रोपावर पर असर
ग्लेशियर से निकलने वाली नदियां खेती के लिए अहम हैं। अचानक आई बाढ़ फसलों को बर्बाद कर सकती है।
इसी तरह, हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। इससे बिजली उत्पादन और आर्थिक विकास दोनों प्रभावित होंगे।
CWC की रिपोर्ट ने एक बार फिर चेतावनी दी है कि हिमालय में स्थिति गंभीर है। 400 से अधिक Glacier Lakes का तेजी से बढ़ना और पिघलना भविष्य के लिए बड़ा खतरा है।
भारत को अब तुरंत Monitoring, Preparedness और Policy Action पर जोर देना होगा। वरना यह खतरा आने वाले वर्षों में बड़े पैमाने पर तबाही ला सकता है।
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