KKN गुरुग्राम डेस्क | कांग्रेस पार्टी ने निजी शिक्षण संस्थानों में भी जातिगत आरक्षण लागू करने की मांग उठाई है। पार्टी का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 15(5) के तहत ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के छात्रों को निजी संस्थानों में भी आरक्षण मिलना चाहिए। कांग्रेस के संचार प्रमुख जयराम रमेश ने इस मांग को सोमवार को सार्वजनिक किया, जब उन्होंने संसदीय समिति की सिफारिश का समर्थन किया, जिसमें यह कहा गया था कि संविधान के इस अनुच्छेद के तहत निजी संस्थानों में भी आरक्षण दिया जाए।
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
यह मुद्दा नया नहीं है, बल्कि लगभग 20 साल पहले भी यह मामला सामने आया था। उस समय तत्कालीन यूपीए-1 सरकार, जो कांग्रेस के नेतृत्व में थी, ने संविधान में 93वां संशोधन किया था, जिसमें अनुच्छेद 15(5) जोड़ा गया था। इस संशोधन का उद्देश्य सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के लिए आरक्षण लागू करना था, लेकिन यह प्रावधान निजी संस्थानों पर लागू नहीं किया गया था।
2006 में यूपीए सरकार ने केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम पारित किया, जिसके तहत सरकारी उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू किया गया था। हालांकि, निजी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के लिए इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं था। यह मुद्दा 2008 में सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा, जहां अदालत ने इसे बरकरार रखा था, लेकिन निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में आरक्षण लागू करने के बारे में कोई निर्णायक निर्णय नहीं दिया गया था।
कांग्रेस का नया रुख
अब कांग्रेस ने फिर से निजी संस्थानों में आरक्षण की मांग को तूल दिया है। पार्टी ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों को निजी संस्थानों में आरक्षण मिल सकता है। इस मांग के पीछे कांग्रेस का तर्क है कि शिक्षा में समानता सुनिश्चित करने के लिए यह कदम आवश्यक है।
2024 के आम चुनाव में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में भी यह वादा किया था कि वे निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू करेंगे। अब, संसदीय समिति की सिफारिश के बाद कांग्रेस ने इसे फिर से प्रमुख मुद्दा बना दिया है। इस समिति का नेतृत्व कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह कर रहे हैं। फिलहाल देश के किसी भी निजी शिक्षण संस्थान में जातिगत आरक्षण लागू नहीं है, लेकिन कांग्रेस का मानना है कि यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
कानूनी और संवैधानिक मुद्दे
2002 में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया था, जिसमें कहा गया था कि शैक्षिक संस्थान स्थापित करना एक मूल अधिकार है। इसके अलावा, यह भी स्पष्ट किया गया था कि संस्थान को यह अधिकार है कि वह अपनी प्रवेश प्रक्रिया कैसे तय करेगा। इसके चलते निजी संस्थानों में आरक्षण लागू करने के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचे की आवश्यकता है, क्योंकि केवल अनुच्छेद 15(5) के तहत आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता।
कानूनी जानकार मानते हैं कि निजी संस्थानों में आरक्षण लागू करने के लिए एक नया कानून बनाना जरूरी होगा। ऐसा न होने पर आरक्षण की नीति को लागू करने में कठिनाइयाँ आ सकती हैं। इस समय, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जैसे-जैसे देश में निजी विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे वंचित वर्ग के छात्रों को भी इन संस्थानों में दाखिले में प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
निजी शिक्षण संस्थानों की भूमिका
भारत में निजी विश्वविद्यालयों का तेजी से विकास हुआ है। ये संस्थान उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इनकी उच्च फीस वंचित वर्ग के छात्रों के लिए एक बड़ी बाधा बन जाती है। इस संदर्भ में कांग्रेस का कहना है कि अगर आरक्षण निजी संस्थानों में लागू होता है, तो इससे वंचित वर्ग के छात्रों को शिक्षा के समान अवसर मिलेंगे, जो उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद कर सकते हैं।
निजी संस्थानों को उनकी स्वायत्तता के बावजूद यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके प्रवेश प्रक्रिया में सामाजिक न्याय का पालन हो। आलोचकों का कहना है कि यदि इन संस्थानों में आरक्षण लागू नहीं किया जाता है, तो यह उन छात्रों को अवसर देने में विफल रहेगा जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं।
सरकार का जवाब और भविष्य
कांग्रेस द्वारा उठाए गए इस मुद्दे पर अब तक केंद्रीय सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, इस मुद्दे पर देशभर में व्यापक चर्चा हो रही है। एक ओर जहां यह तर्क दिया जा रहा है कि आरक्षण से सामाजिक समानता सुनिश्चित होगी, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग यह मानते हैं कि निजी संस्थानों को अपनी प्रवेश नीति में हस्तक्षेप से बचना चाहिए।
वर्तमान में, यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार इस मुद्दे पर क्या कदम उठाएगी। हालांकि, राजनीतिक हलकों में इस पर व्यापक बहस चल रही है। यदि सरकार आरक्षण लागू करने का फैसला करती है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि यह कदम संस्थानों की स्वायत्तता को प्रभावित न करे।
निजी शिक्षण संस्थानों में जातिगत आरक्षण की मांग एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, जो समाज के वंचित वर्गों के लिए समान शिक्षा अवसरों को सुनिश्चित कर सकता है। हालांकि इसके कानूनी, संवैधानिक और संस्थागत प्रभावों पर चर्चा आवश्यक है, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या यह कदम शिक्षा प्रणाली को सशक्त और समावेशी बना सकता है।
कांग्रेस की यह मांग भारतीय समाज में समानता और न्याय की दिशा में एक और प्रयास है, जो वंचित समुदायों के लिए शिक्षा के अवसरों को समान रूप से सुनिश्चित करने का प्रयास करती है। अब यह देखना बाकी है कि सरकार इस मुद्दे पर कैसे प्रतिक्रिया देती है और क्या यह प्रस्ताव कानूनी रूप से लागू हो पाता है। इस मुद्दे पर आगामी निर्णय भारतीय शिक्षा प्रणाली के भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं।
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