KKN Special

लता मंगेशकर का आनंदघन के साथ रहस्यमयी रिश्ता का हकीकत चौकाने वाला है

जब कोई आवाज सरगम बन कर रूह में उतरने लगे… अंतरमन की गहराई को झंकृत करने लगे… अरमान हिलोरे मारने लगे। तब, बरबस ही लता दीदी की सुरमई आवाज की यादें मन को शीतल कर जाता जाता है। बहुत मुश्किल है, यह कहना कि लता मंगेशकर अब हमलोगो के बीच नहीं है। वह 6 फरबरी 2022 की मनहूस शाम थीं। मुंबई के शिबाजी पार्क में चिता की तेज लपटो के साथ दीदी का पार्थिव शरीर ब्रम्हांड की अंनत कणो में विलिन हो रहा था …। तभी, खामोशी को चिरती हुई एक स्वर लोगो के जेहन में बरबस ही हिलोरे मारने लगा…। नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा। मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे…। लताजी की सुरिली आवाज अंतरमन की गहराई में उतरता चला गया। कहतें हैं कि वर्ष 1977 की फिल्म किनारा के लिए दीदी ने इस गीत को स्वर दिया था। तब किसी ने नहीं सोचा था कि एक रोज यही गीत उनके चाहने वालों को रूला जायेगा। दीदी को चाहने वाले करोड़ करोड़ लोगो की आंखे नम कर जायेगा।

हेमा के लता बनने की सफर

बचपन के हेमा की किशोरावस्था में कदम रखने से पहले ही लता बनने की कहानी बड़ा ही दिलचस्प है। दरअसल, बचपन में उनका नाम हेमा मंगेशकर था। हालांकि, किशोरावस्था की दहलिज पर कदम रखने से पहले ही नाम बदल कर लता मंगेशकर रख दिया गया। गयाकी का हूनर लता को विरासत में मिली थ। हालांकि, लता के गायकी की इस हुनर को सबसे पहले पहचाना उस्ताद गुलाम हैदर खान ने। मात्र ग्यारह साल की उमं में लता को सुरो में गुनगुनाते हुए सुन कर उस्ताद गुलाम हैदर साहेब इतने सम्मोहित हो गए कि उन्होंने एक रोज लता को अपने पास बुलाया और उसको अपने साथ लेकर फिल्म निर्माता एस. मुखर्जी के पास पहुंच गए। उनदिनो एस मुखर्जी एक फिल्म बना रहे थे। फिल्म का नाम था ‘शहीद’। हैदर साहेब ने इस फिल्म के लिए लता से गीत गबाने की गुजारिश की। पर, एस. मुखर्जी को लता की आवाज पसंद नहीं आई और उन्होंने लता को अपनी फिल्म में लेने से इंकार कर दिया। इस बात से गुलाम हैदर काफी गुस्सा हो गए। उन्होंने कहा यह लड़की आगे चल कर बड़ी गायिका बनेगी और निर्माता निर्देशक उसे अपनी फिल्मों में गाने के लिए कतार में खड़े दिखेंगे।

30 हजार से अधिक गीत गाने का बनाया रिकार्ड

गुलाम हैदर की भविष्यवाणी सच साबित हो गई। वर्ष 1974 आते-आते लताजी का नाम दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने के लिए ‘गिनीज़ बुक रिकॉर्ड’ में दर्ज हो चुका था। अपने करियर में लता मंगेशकर ने तीन दर्जन से अधिक भाषा में करीब 30 हजार से अधिक गीत गाये। ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’…। ‘तुझे देखा तो ये जाना सनम…’। ‘अजीब दास्तान है ये’…। ‘प्यार किया तो डरना क्या’…। ‘नीला आसमां सो गया’… ‘हमको हमी से चुरा लो…’और ‘रैना बीती जाए’ जैसे अनगिनत सुपरहीट गीत उनके नाम पर दर्ज हो चुका था। फिल्म मधुमती के गाने- ‘आजा रे परदेसी… के लिए वर्ष 1959 में लताजी को पहला मिक्सड वर्ग का अवॉर्ड मिला था। इसके बाद गायिकी के सफर में लता मंगेशकर को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। जिनमें चार फिल्म फेयर पुरस्कार, तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार शामिल हैं। वे राज्य सभा की सदस्य भी रह चुकी हैं। लता मंगेशकर को वर्ष 1969 में पदमभूषण, 1997 में राजीव गांधी सम्मान, 1999 पद्म विभूषण, 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार और 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 2009 में फ्रांस सरकार ने उन्हें ‘ऑफिसर ऑफ फ्रेंच लीजियो ऑफ ऑनर’ से सम्मानित किया था।

गायक और गायिका को पुरस्कार दिलाने का श्रेय

बात तब कि है, जब गायक और गायिका को फिल्मफेयर अवार्ड देने का प्रचलन नहीं था। उसी दौर में वर्ष 1957 में शंकर जयकिशन को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिलने वाला था। इस समारोह में लता मंगेशकर को गीत गाने के लिए बुलाया गया। नसरीन मुन्नी कबीर ने अपने किताब ‘इन हर ओन व्याइस’ में लिखती है कि लताजी ने समारोह में गाने से इनकार कर दिया। उन्होंने गायक और गायिका के लिए अवार्ड देने की घोषणा होने तक, ऐसे किसी भी समारोह में गायन करने से मना कर दिया। आगे चल कर लताजी की मांगो के सामने इंडस्ट्री को झुकना पड़ा और गायक-गायिका को भी पुरस्कार मिलने लगा। वैसे तो लता मंगेशकर के जीवन पर आधारित कई पुस्तक उपलब्ध है। पर, लता मंगेशकर को समझने के लिए आप दो पुस्तको का अध्ययन कर सकते है। नसरीन मुन्नी कबीर की लिखी- ‘इन हर ओन व्याइस…’ और दूसर पुस्तक यतिन्द्र मिश्र का लिखा है- ‘लता एक सुर गाथा’…। यह दोनो पुस्तक लताजी के बेहतरीन सफर और खूबसूरत नगमो की जीवित दस्ताबेज है।

रॉयल्टी को लेकर हुआ था विवाद

रॉयलटी के मुद्दे पर एक बार वह मो. रफ़ी से भिड़ गई। शोमैन राज कपूर और एच.एम.वी कंपनी से एक साथ पंगा ले लिया। दरअसल 60 के दशक तक गायक को अपने गीत पर रॉयल्टी नहीं मिलती थी। लता ने रिकॉर्डिंग कंपनी एच.एम.वी और प्रोड्यूसर्स से रॉयल्टी की मांग की। लेकिन उनकी मांगो को अनसुनी कर दी गई। इसके बाद लताजी ने एच.एम.वी के लिए गाना रिकॉर्ड करना बंद कर दिया। लता के इस स्टैंड का मो. रफी ने मुखर विरोध किया। विवाद इतना बढ़ गया कि लता ने मो. रफी के साथ गीत गाने से मना कर दिया और करीब तीन साल तक दोनो अलग रहे। इसी मुद्दे पर राजकपूर से भी लता भिड़ गईं और उनके साथ काम करने से मना दिया। हालांकि, 70 के दशक में राज कपूर से दूबारा समझौता हुआ और लता ने फिल्म बॉबी के लिए गाने गये। उन्होंने बॉलीवुड की तीन पीढ़ियो के लिए गीत गाये। इसमें नामचीन एक्ट्रेसेस रेखा, राखी, हेमा मालिनी, साधना, रीना रॉय, मीना कुमारी, माधुरी दीक्षित, करिश्मा कपूर, करीना कपूर, प्रिटी जिंटा, जया बच्चन और काजोल जैसे नाम भी शामिल है।

जहर देकर मारने की हुई कोशिश

नसरीन मुन्नी कबीर ने ‘इन हर ओन व्याइस…’ में लिखा है कि लताजी को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कई दुष्बारियों का भी सामना करना पड़ा। उनको जहर देकर मारने की कोशिश हुई। बात वर्ष 1962 की है। उनदिनो लताजी अचानक बीमार हो गई। जांच में पता चला कि उनको धीमा ज़हर दिया गया है। भोजन में जहर होने का खुलाशा होते ही घर में काम करने वाला नौकर बिना किसी को बताए, अचानक गायब हो गया। उनदिनो नौकर का रिकार्ड रखने का प्रचलन नहीं था। लिहाजा, यह राज हमेशा के लिए राज ही रह गया। एक वाकया और सुनाता हूं। बात वर्ष 1943 की है। कोल्हापुर में एक फ़िल्म की शूटिंग चल रही थी। उस समय की मशहूर गायिका नूर जहां एक गाने की रिकॉर्डिंग के लिए वहाँ आई थीं। उसी फ़िल्म में लता एक छोटी बच्ची की रोल कर रही थी। फ़िल्म के निर्माता ने नूर जहां से बच्ची का परिचय करवाते हुए बोला कि ये लता है और यह गाती भी है। छोटी बच्ची को देख कर नूर जहां उत्सुकता से भर गई और गाने की फरमाइस कर दी। नन्हीं लता ने शास्त्रीय संगीत का ऐसा तान छेड़ कि नूर जहां सुनती ही रह गई। तब नूरजहां ने कहा था कि यह बच्ची एक रोज बहुत आगे जायेगी। वहीं बच्ची आगे चल कर सुरों की मल्लिका यानी लता मंगेशकर बनीं। यहां बतादें कि बंटबारा के बाद नूरजहां पाकिस्तान चली गई और इसका भरपुर लाभ लता मंगेशकर को मिला।

13 साल की उम्र में पिता का हुआ निधन

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। उनके पिता का नाम दीनानाथ मंगेशकर था। वह एक अच्छे शास्त्रीय गायक थे और नाटकों में भी अभिनय किया करते थे। लता मंगेशकर अपने पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। लता मंगेशकर ने पांच वर्ष की अल्प आयु में शास्त्रीय संगीत और क्लासिकल संगीत की साधना शुरू कर चुकी थी। पिता दीनानाथ मंगेशकर उनके पहले गुरू थे। लताजी अपने पिता के साथ नाटक में काम करने लगी थीं। पिता के निधन के बाद लताजी ने अमान अली खान और अमानत खां से गायकी सीखा। जब लता मंगेशकर मात्र 13 वर्ष की थी तो उनके पिता का निधन हो गया था। परिवार का बोझ लताजी के कांधे आ गई। उन्होंने गायकी को ही अपने कमाई का जारिया बनाया। वर्ष 1942 में एक मराठी फिल्म ‘पहली मंगला गौर’ में एक छोटा सा रोल किया। इस फिल्म में उन्होंने एक गीत भी गाया था। हिन्दी फिल्म में पहला मौका वर्ष 1943 में मिला। उनके पिता के मित्र हुआ करते थे। उनका नाम था विनायक दामोदर। उन्होंने ने ही लताजी को पहला मौका दिया था। हालांकि, यहां लताजी को कोई सफलता नहीं मिली। पहली सफलता मिली कमाल अमरोही की फ़िल्म महल से। गीत के बोल है- ‘आएगा आने वाला…।’ इसके बाद लताजी को कभी फ़िल्मों की कमी नहीं हुई।

किशोर कुमार से पहली मुलाकात

मसहूर पार्श्व गायक किशोर कुमार से लता की पहली मुलाकात के किस्से बड़ा ही रोचक है। कहतें है कि 40 के दशक में लता ने गायकी का सफर शुरू किया था। सफर के शुरुआती दिनो में वह अपने घर से लोकल ट्रेन पकड़कर मलाड जाती थी। वहां से कभी पैदल और कभी तांगा से स्टूडियो जाती थी। एक रोज रास्ते में किशोर दा मिल गए। दोनो लोकल से मलाड उतरे और फिर जिस तांगे पर लता बैठी उसी तांगे पर किशोर दा भी बैठ गए। लता जब स्टूडियो की तरफ बढ़ी तो किशोर दा भी साथ चलने लगे। तब दोनो एक दूसरे को नहीं पहचानते थे। लता को उनकी यह हरकतें अजीब लगा। उनदिनो लताजी खेमचंद प्रकाश की एक फिल्म में गाना गा रही थी। लता ने खेमचंद से इसकी शिकायत कर दी। लता को लगा कि कोई मनचला उनका पीछा कर रहा है। तब खेमचंद ने पहली बार दोनो को एक दूसरे से परिचय कराया। इसके बाद दोनो ने एक साथ कई फिल्मो में एक साथ यादगार गीत गाये। लता मंगेशकर ने अपने दम पर इंडस्ट्री में अपना मकाम बनाया। सभी बड़े संगीतकारों के साथ गीत गाये।

कुछ यादगार नगमे

वर्ष 1964 में एक फिल्म आई थीं। फिल्म का नाम था ‘वो कौन थी’ इस फिल्म में लताजी ने एक गीत गाया था- लग जा लगे..। यह गीत खूब फेमस हुआ था। इस गीत को साधना और मनोज कुमार पर फिल्माया गया था। इसी प्रकार वर्ष 1966 की फिल्म- मेरा साया… इंडस्ट्री की बेस्ट फिल्मों में से एक मानी जाती है। इस फिल्म का एक गाना है- ‘मेरा साया साथ होगा..।‘ यह गीत साधना और सुनील दत्ता पर फिल्माया गया था। वर्ष 1979 में अमिताभ बच्चन और रेखा अभिनित फिल्म- ‘मिस्टर नटवरलाल’ में- लता की गाई- ‘परदेसिया ये सच है पिया। सब कहते हैं मैंने तुझको दिल दे दिया…।‘ आज भी इस गीत को लोग सुनना पसंद करतें हैं। वर्ष 1980 में फिल्म आशा के लिए- ‘शीशा हो या दिल हो, आखिर टूट जाता है…। आज भी मसहूर है। वर्ष 1994 की ब्लॉकबस्टर फिल्म- हम आपके है कौन- इस फिल्म के लिए ‘दीदी तेरा देवर दीवाना…।‘ और वर्ष 1997 में ‘दिल तो पागल है… । इस गीत को कौन भूल पायेगा? इसी प्रकार वर्ष 2001 में आई फिल्म कभी खुशी कभी गम के लिए ‘मेरी सांसों में तू है समाया…।‘ ऐसे करीब 30 हजार से अधिक गीत गा कर 92 साल की उम्र में लता मंगेशकर हमसे रुख्सत हो गई।

गीत के जज़्बात और नज़ाकत की समझ

करियर के आरंभिक दिनों में लताजी रेडियो के पास इस उम्मीद में बैठी रहती थी कि शायद उनके गाये गीत का कोई फरमाइस करें और वह गीत रेडियो पर सुनने को मिल जाये। हालांकि, बाद के दिनो में तो रेडियो पर लता मंगेशकर के गीतो ने धूम मचा दिया था। लता मंगेशकर ने रागों पर आधारित गीत को बहुत ही सहजता से गाएं हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने भजन और गजल भी सहजता से गाए हैं। उन्होंने कुछ चुनिंदा फिल्मो में कव्वाली, मुजरा और कैबरे भी गाये है। स्वयं लताजी को क्लासिकल गीत बहुत पसंद था। कहतें हैं कि लताजी को सुर की साधना में महारथ हासिल हो गया था। उस्ताद बड़े गुलाम अली खां ने एक बार कहा था कि लता कभी बेसुरा नही होती है। लता मंगेशकर ने अपने फिल्मी व्यावसायिक जीवन में हजारों एकल और युगल गीत गाए। उन्होंने लगभग हर गायक के साथ गीत गाए। इसमें किशोर कुमार, मन्ना डे, मुकेश, मोहम्मद रफी, महेंद्र कपूर, कुमार सानू, एस.पी बालासुब्रमण्यम, मोहम्मद अजीज, सोनू निगम और उदित नारायण जैसे गायक का नाम शामिल है। कहतें है कि लता मंगेशकर गीत के जज़्बात और नज़ाकत को अपनी आवाज़ में ऐसे पिरो देती थी कि उसकी खनक सीधे दिल में उतर जाता था। तभी तो स्वर कोकिला और सुर साम्राज्ञी जैसे शब्द भी उनके लिए छोटे पड़ जातें हैं।

आनंदघन और लता मंगेशकर का रहस्यमयी रिश्ता

60 की दशक में मराठी फिल्मो में एक म्यूजिक डायरेक्टर आनंदघन का नाम तेजी से उभरा था। करीब चार मराठी फिल्मो के लिए आनंदघन ने संगीत का निर्देशन किया। इसमें से एक मराठी फ़िल्म ‘साधी माणस’ का सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन का पुरस्कार के लिए चयन हुआ था। जिस समय पुरस्कार की घोषणा हो रही थीं। लता मंगेशकर वहां मौजूद थी और अपनी सीट पर बिल्कुल शांत बैठी रही। लोगो को बाद में पता चला कि यह आनंदघन कोई और नहीं, स्वयं लता मंगेशकर ही है। ऋषिकेश मुखर्जी को इसकी जानकारी थीं। जब ऋषिकेश मुखर्जी ने पुरस्कार लेने के लिए आनंदघन उर्फ लता मंगेशकर के नाम की घोषणा की तो सभी अवाक रह गए। हालांकि, लताजी ने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था। बाद में लता मंगेशकर ने कई अन्य फिल्मो में अपने नाम से संगीत का निर्देशन किया था। शुरुआती दिनो में उन्होंने कई फिल्मो में अभिनय भी किया था।

वर्ष  1963 में लताजी को राष्ट्र ने पहचाना

सुर के इस मल्लिका को मुकम्मल पहचान वर्ष 1963 में मिला। ‘ए मेरे वतन के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी। जो शहीद हुए है, उनकी जरा याद करो कुर्बानी…।‘ वर्ष 1963 में इसी गीत के माध्यम से लता मंगेशरक राष्ट्रीय फलक पर स्थापित हो गई थीं। इस गीत को प्रदीप ने लिखा था। वर्ष 1962 में चीन से पराजय के बाद पूरा देश व्यथित था। उसी दौर में प्रदीप के लिखे इस गीत को नई दिल्ली के एक समारोह में जब लता मंगेशकर ने अपने सुरो से सवांरा तो वहां बैठे तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के आंखों से आंसू छलक गए। कालांतर में यह गीत भारत के लोगों की जुबान पर चढ़ गया और आज भी इस गीत को राष्ट्रप्रेम का मिशाल माना जाता है। उनकी गायिकी किसी एक विधा की मुहताज नहीं रही। मोरा गोरा अंग लइलो…। ऐ दिले नादान…और बाहो में चले आओ…। फेहरिस्त बहुत लम्बा है और इसको शब्दो में समेटना बहुत मुश्किल…। आरडी वर्मन के लिखे गीत- ”बीती न बिताई रैना…।” और ”इन्हीं लोगों ने, ले लिना दुपट्टा मेरा…।” स्वयं स्वयं लता मंगेशकर को बहुत पसंद था। लताजी का एक गीत है- फूल खिलते रहेंगे दुनिया में,
रोज़ निकलेगी बात फूलों की…। लता मंगेशकर की गायकी को शब्दो में समेटना आसान नहीं है। दीदी आज हमारे बीच नहीं है। पर, उनकी मधुर आवाज हमेशा- हमेशा के लिए दिलो में रहेगा।

This post was published on %s = human-readable time difference 13:50

KKN लाइव WhatsApp पर भी उपलब्ध है, खबरों की खबर के लिए यहां क्लिक करके आप हमारे चैनल को सब्सक्राइब कर सकते हैं।

Show comments
Published by
KKN न्‍यूज ब्यूरो

Recent Posts

  • Videos

भारत बनाम चीन: लोकतंत्र और साम्यवाद के बीच आर्थिक विकास की अनकही कहानी

आजादी के बाद भारत ने लोकतंत्र को अपनाया और चीन ने साम्यवाद का पथ चुना।… Read More

नवम्बर 6, 2024
  • Videos

मौर्य वंश के पतन की असली वजह और बृहद्रथ के अंत की मार्मिक दास्तान…

मौर्य साम्राज्य के पतन की कहानी, सम्राट अशोक के धम्म नीति से शुरू होकर सम्राट… Read More

अक्टूबर 23, 2024
  • Videos

सम्राट अशोक के जीवन का टर्निंग पॉइंट: जीत से बदलाव तक की पूरी कहानी

सम्राट अशोक की कलिंग विजय के बाद उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। एक… Read More

अक्टूबर 16, 2024
  • Videos

बिन्दुसार ने चाणक्य को क्यों निकाला : मौर्यवंश का दूसरा एपीसोड

KKN लाइव के इस विशेष सेगमेंट में, कौशलेन्द्र झा मौर्यवंश के दूसरे शासक बिन्दुसार की… Read More

अक्टूबर 9, 2024
  • Videos

कैसे शुरू हुआ मौर्यवंश का इतिहास? चाणक्य ने क्यों बदल दी भारत की राजनीति?

322 ईसा पूर्व का काल जब मगध का राजा धनानंद भोग-विलास में लिप्त था और… Read More

अक्टूबर 2, 2024
  • Videos

क्या सांप और नाग एक ही हैं? जानिए नागवंश का असली इतिहास

नाग और सांप में फर्क जानने का समय आ गया है! हममें से अधिकांश लोग… Read More

सितम्बर 25, 2024