मजदूर दिवस स्पेशल
मुजफ्फरपुर। यहां पापी पेट का सवाल ही नही बल्कि उन बच्चो की कहानी है जो पढाई का खर्च निकालने के लिए अजूबा तरीका निकाला है। हालांकि यह तरीका व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा करता है। जहां हम शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए करोड़ो खर्च कर रहे है। बच्चे स्कूल जाये इसके लिए तरह तरह की योजनाऐ चला रहे है। किंतु यहां कुछ बच्चे ऐसे भी है जो पेट और पढाई की खातीर चिलचिलाती धूप मे मजदूरी करता है। आगे की पढाई उसका बेहतर तरीके से हो.उसमे कोई आर्थिक संकट ना आये इसके लिए वह शनिवार को स्कूल नही जाता है। शनिवार को स्कूल नही जाना उसकी बड़ी मजबूरी है। क्योकि वह शनिवार को स्कूल जायेगा तो पढाई और रोटी पर संकट आ जायेगा। अलीनेउरा माली टोला के गौरव कुमार आठंवा का छात्र है। वह राजकीय उत्क्रमित मध्य विधालय नूरछपड़ा मे पढता है। चार भाइयो मे वह तीसरे नम्बर पर है। किंतु घर का वह सबसे बड़ा सहारा है। प्रत्येक शनिवार को वह राघोपुर, मुस्तफापुर, खेमाइपट्टी व गंजबाजार पर पहुंचता है। वह करीब 150 दुकानो मे नीम्बू और मिर्ची का गुच्छा लटकाता है। काफी आरजू के बाद कुछ दुकानदार दस रूपया देते है। वहीं जेनरल दुकानदार पांच रूपया देता है। इस पैसे से वह पढाई करता है तथा घर के कामो मे सहयोग करता है। इसी गांव के राहुल कुमार भी इसके साथ ही काम करता है। हालांकि दोनो अपने अपने हिसाब से दुकान का बंटवारा किये हुए है। गौरव और राहुल तीन सौ दुकानो मे निम्बू-मिर्ची लटका कर बुरी नजरो से बचाता है। राहुल के पिता फुदेनी भगत माली का काम करते है। किंतु वह घर पर ही रहते है। राहुल दसवीं क्लास का छात्र है। वह मनोरमा उच्च विधालय जमालाबाद मे पढता है। हालांकि वहां ऑड इवेन फार्मुला के तहत लड़को की पढाई तीन दिन ही होती है। राहुल तो सिर्फ गुरूवार और शुक्रवार को ही जाता है। शनिवार को तो वह ना जाने पर मजबूर है। गौरव और राहुल बताते है कि एक नीम्बू, पांच हरी मिर्ची, लहसुन, काला कपड़ा, एक सुई व धागा पर तीन रूपये खर्च आते है। दो तिहाई लोग पांच रूपये और शेष लोग दस रूपये देते है। वह इस पैसा से पढाई और पेट का खर्च निकाल लेता है। दोनो की माने तो वह आगे तक पढना चाहता है। पढ लिख कर कुछ बनना चाहता है। जॉब होने पर ही शादी करना चाहता है।
दुकानो मे क्यो लटकाते है निम्बू-मिर्ची
ग्रामीण इलाको मे अब भी निम्बू-मिर्ची की काफी मान्यता है। हालांकि यह गांव से निकल कर चौक चौराहो पर भी आ गया है। अब अक्सर दुकानो के बाहर या गेट पर निम्बू-मिर्ची लटका हुआ देख सकते है। ऐसा केवल अपने व्यापार को बुरी नजर से बचाने के लिए किया जाता है या इसका वैज्ञानिक कारण भी है। सवाल यह है कि नींबू और मिर्च में ऐसा क्या होता है जो नजर से बचाता है। दरअसल इसके दो कारण प्रमुख हैं, एक तंत्र – मंत्र से जुड़ा है और दूसरा मनोविज्ञान से. माना जाता है कि नींबू, मिर्ची, काले कपड़े, सूई का तंत्र और टोटकों में विशेष उपयोग किया जाता है।
नींबू का उपयोग बुरी नजर से संबंधित मामलों में ही किया जाता है। इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण है इनका स्वाद। नींबू खट्टा और मिर्च तीखी होती है। दोनों का यह गुण व्यक्ति की एकाग्रता और ध्यान को तोड़ने में सहायक है।
यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि हम इमली, नींबू जैसी चीजों को देखते हैं तो स्वतः ही इनके स्वाद का अहसास हमें अपनी जुबान पर होने लगता है, जिसे हमारा ध्यान अन्य चीजों से हटकर केवल इन्हीं पर आकर टिक जाता है। किसी की नजर तभी किसी दुकान पर लगती है जब वह एकाग्र होकर एकटक उसे ही देखें, नींबू-मिर्च टांगने से देखने वाले का ध्यान इन पर टिकता है और उसकी एकाग्रता भंग हो जाती है। ऐसे में व्यापार पर बुरी नजर का असर नहीं होता है।
This post was published on मई 1, 2017 08:20
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