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जीवन के लिए जरुरी है जैविक खेती

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हरित क्रांति का साइड इफैक्ट, खतरे में स्वस्थ्य जीवन, अन्न का उत्पादन बढ़ा, उर्बरा शक्ति घटी

कौशलेन्द्र झा
भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा यहां का कृषि देश की अर्थ व्यवस्था का प्रमुख साधन भी है। भोजन, मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है, जो अन्न के बेहतर पैदावर पर निर्भर होता है। इसकी पूर्ति के लिए 60 के दशक में हरित क्रांति की शुरूआत हुई। अधिक अन्न उपजाओं का नारा दिया गया। नतीजा, रासायनिक उर्वरकों ओर कीटनाशकों का असन्तुलित उपयोग प्रारम्भ हो गया। इससे उत्पादन तो बढ़ा। किन्तु, उत्पादकता के सम्भावित खतरे को समझने में देरी हो गई। पिछले कुछ समय से रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशको के अंधाधूंध व असंतुलित प्रयोग का दुष्प्रभाव मनुष्य व पशुओं के स्वास्थ्य पर हुआ है। बल्कि, इसका कुप्रभाव पानी, भूमि एंव पर्यावरण पर भी दिखाई देने लगा है।

सरकार ने दिखाई गंभीरता

हालिया वर्षो में जैविक खेती की पध्दति व अन्य कृषि हितैषी जीवों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने को लेकर सरकार ने गंभीरता दिखानी शुरू कर दी है। जैविक खेती एक ऐसी पध्दति है, जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों तथा खरपतवार नाशियों के स्थान पर जिवांश खाद पोषक तत्वों (गोबर की खाद कम्पोस्ट, हरी खाद, जिवाणु कल्चर, जैविक खाद) जैव नाशियों (बायो-पैस्टीसाईड) व वायो एजैन्ट जैसे क्राईसोपा आदि का उपयोग किया जाता है। इससे न केवल भूमि की उर्वरा शक्ति लम्बे समय तक बनी रहती है। बल्कि, पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता तथा कृषि लागत घटने व उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ने से कृषक को अधिक लाभ भी मिलता है ।

फसल चक्र हो सकता है विकल्प

जैविक खेती के लिए किसानो को कार्वनिक खादों का उपयोग, जीवाणु खादो का प्रयोग, फसल अवशेषों का उचित उपयोग, जैविक तरीकों द्वारा कीट व रोग नियंत्रण विधि, फसल चक्र में दलहनी फसलों को अपनाना व मृदा संरक्षण क्रियाएं अपनाने पर जोर दिया जाने लगा है। कहतें हैं कि भारत में शताब्दियों से गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद व जैविक खाद का प्रयोग विभिन्न फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए किया जाता रहा है। जैविक खेती के लिए जैविक खादों का प्रयोग आज के दौर में और भी आवश्यक हो गया है। क्योंकि जैविक कृषि में रासायनिक खादों का प्रयोग करने की आवश्यकता नही होती है। ऐसी स्थिति में पौंधों को पोषक तत्व देने के लिए जैविक खादों, हरी खाद व फसल चक्र में जाना अब मौजूदा समय की मांग भी है।

जैविक खाद बनाने की विधि

जानकार बतातें हैं कि जैविक खाद बनाने के लिए पौधों के अवशेष, गोबर, जानवरों का बचा हुआ चारा आदि सभी बस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। जैविक खाद बनाने के लिए 10 फुट लम्बा, 4 फुट चौड़ा व 3 फुट गहरा गङ्ढा करना चाहिए। सारे जैविक पदार्थों को अच्दी तरह मिलाकर गङ्ढें को भरना चाहिए तथा उपयुक्त पानी डाल देना चाहिए। गङ्ढे में पदार्थों को 30 दिन के बाद अच्छी तरह पलटना चाहिए और उचित मात्रा में नमी रखनी चाहिए। यदि नमी कम है तो पलटते समय पानी डाला जा सकता है। पलटने की क्रिया से जैविक पदार्थ जल्दी सड़ते हैं और खाद में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती है। इस तरह यह खाद 3 महीने में बन कर तैयार हो जाती है।

नेत्रजन बढ़ाने का आसान तरीका

खेत में खाद डालकर शीघ्र ही मिट्टी में मिला देना चाहिए। ढेरियों को खेत में काफी समय छोड़ने से नेत्रजन की हानी होती है जिससे खाद की गुणवत्ता में कमी आती है। गोबर की खाद में नेत्रजन की मात्रा कम होती है और उसकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने कुछ विधियां विकसित की हैं। जैविक खाद में फास्फोरस की मात्रा बढ़ाने के लिए रॉक फास्फेट का प्रयोग किया जा सकता है। 100 किलाग्राम गोबर में 2 किलोग्राम रॉक फास्फेट आरम्भ में अच्छी तरह मिलाकर सड़ने दिया जाता है। तीन महीने में इस खाद में फास्फोरस की मात्रा लगभग 3 प्रतिशत हो जाती है। इस विधि से फास्फोरस की घुलनशीलता बढ़ती है और विभिन्न फसलों में रासायनिक फास्फोरस युक्त खादों का प्रयोग नहीं करना पड़ता।

किसानो का मित्र कीट है केंचुआ

खाद बनाते समय केंचुओं का प्रयोग कर लिया जाए तो यह जल्दी बनकर तैयार हो जाता है और इस खाद में नेत्रजन की मात्रा अधिक होती है। खाद बनाते समय फास्फोटिका का एक पैकेट व एजोटोबैक्टर जीवाणु खाद का एक पैकेट एक टन खाद में डाल दिया जाए तो फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणु व एजोटोबैक्टर जीवाणु पनपने लगता हैं। लिहाजा, खाद में नेत्रजन व फास्फोरस की मात्रा आधिक हो जाती है। इस जीवाणुयुक्त खाद के प्रयोग से पौधों का विकास अच्छा होता है। इस तरह वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके अच्छी गुणवत्ता वाली जैविक खाद बनाई जा सकती है जिसमें ज्यादा लाभकारी तत्व उपस्थित होते हैं।

मृदा शक्ति बढ़ने की संभावना

जैविक उर्बरक के प्रयोग से वेशक भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है। जैविक खाद किसानों के यहां उपलब्ध संसाधनों के प्रयोग से आसानी से बनाई तैयार किया जा सकता है। रासायनिक खादों का प्रयोग कम करके और जैविक खाद का अधिक से अधिक प्रयोग करके हम अपने संसाधनों का सही उपयोग कर कृषि उपज में बढ़ोत्तारी कर सकते हैं और जमीन को खराब होने से बचाया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए सरकार को चाहिए कि वे किसानो को इसके लिए अधिक से अधिक जागरुक करे और इस कार्य में किसानो को प्रयाप्त मदद भी करे।


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