राष्ट्रपिता महात्मा गांधी प्रत्येक भरतीयों के दिल में बसे है। उनका बिरोध करने वाला भी उन्हें आदर भरी नजरो से देखता है। स्मरण रहें कि 10 अप्रैल 1917 को पहली बार महात्मा गांधी बिहार आए थे और यही से ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ शंखनाद किया था। गांधी उस वक्त 48 वर्ष के थे। मोहनदास करमचंद गांधी यहां नील के खेतिहर राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर बांकीपुर स्टेशन अब के पटना पहुंचे थे। उनकी अगुवाई वाले इस आंदोलन से न सिर्फ नील के किसानों की समस्या का त्वरित हल हुआ, बल्कि सत्य, अहिंसा और प्रेम के संदेश ने फिरंगियों के विरुद्ध भारतीयों को एकजुट कर दिया।
गांधीजी और उनके योगदान से जुड़े कई तथ्य ऐसे हैं, जिन्हें हम भुलाते जा रहे हैं। सत्याग्रह गांधीजी का दिया वह हथियार है, जिसमें दुनिया के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य से लोहा लेने की ताकत निहित थी। गांधी जी के भारत आगमन के बाद चंपारण का सत्याग्रह देश का पहला सत्याग्रह था। निलहों के खिलाफ चंपारण के किसान राजकुमार शुक्ल की अगुवाई में चल रहे तीन वर्ष पुराने संघर्ष को 1917 में मोहनदास करमचंद गांधी ने व्यापक आंदोलन का रूप दिया। आंदोलन की अनूठी प्रवृत्ति के कारण इसे न सिर्फ देशव्यापी, बल्कि उसके बाहर भी प्रसिद्धि हासिल हुई।
कहतें है कि औद्योगिक क्रांति के बाद नील की मांग बढ़ जाने के कारण ब्रिटिश सरकार ने भारतीय किसानों पर सिर्फ नील की खेती करने का दबाव डालना शुरू कर दिया। आंकड़ों की मानें, तो साल 1916 में लगभग 21,900 एकड़ जमीन पर आसामीवार, जिरात और तीनकठिया प्रथा लागू थी। चंपारण के रैयतों से मड़वन, फगुआही, दशहरी, सिंगराहट, घोड़ावन, लटियावन, दस्तूरी समेत लगभग 46 प्रकार के कर वसूले जाते थे। और वह कर वसूली भी काफी बर्बर तरीके से की जाती थी।
15 अप्रैल, 1917 को महात्मा गांधी के मोतिहारी आगमन के साथ पूरे चंपारण में किसानों के भीतर आत्म-विश्वास का जबर्दस्त संचार हुआ। इस पहल पर गांधीजी को धारा-144 के तहत सार्वजनिक शांति भंग करने के प्रयास की नोटिस भी भेजी गई। चंपारण के इस ऐतिहासिक संघर्ष में डॉ राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, आचार्य कृपलानी समेत चंपारण के किसानों ने अहम भूमिका निभाई। आंदोलन के शुरुआती दो महीनों में गांधीजी ने चंपारण के लगभग 2,900 गांवों के तकरीबन 13,000 रैयतों की स्थिति का अध्ययन किया। इस मामले की गंभीरता उस समय के समाचारपत्रों की सुर्खियां बनती रहीं। इसे त्वरित परिणाम ही कहा जाएगा कि एक महीने के अंदर जुलाई 1917 में एक जांच कमेटी गठित की गईर् और 10 अगस्त को तीनकठिया प्रथा समाप्त कर दी गई। इस बड़ी घटना ने राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन का रास्ता प्रशस्त्र करने के साथ ही गांधी का कद और बड़ा कर दिया।
चंपारण सत्याग्रह का एक बड़ा लाभ यह भी हुआ कि इस इलाके में विकास की शुरुआती पहल हुई, जिसके तहत कई विद्यालय व चिकित्सा केंद्र स्थापित किए गए। चंपारण की पवित्र मिट्टी ने मोहनदास करमचंद गांधी जैसे शख्स को महात्मा बना दिया। उस महान सत्याग्रह के 100वें साल में हम प्रवेश कर चुके हैं। लेकिन हर एक व्यक्ति, जो मौजूदा व्यवस्था से संतुष्ट नहीं है, आज गांधी की कमी महसूस कर रहा है। देश के किसान सौ वर्ष पूर्व भी परेशान थे और वे आज भी परेशान हैं। आर्थिक विषमताएं, सामाजिक कुरीतियां और धार्मिक-जातिगत तनाव आज भी देश की कमजोरी बनी हुई हैं।
This post was published on अप्रैल 8, 2017 15:35
या आप जानते हैं कि गिद्ध क्यों विलुप्त हो गए? और इसका मानव जीवन पर… Read More
भारत और पाकिस्तान के 1947 के बंटवारे में केवल जमीन ही नहीं, बल्कि घोड़ागाड़ी, बैंड-बाजा,… Read More
7 दिसंबर 1941 का पर्ल हार्बर हमला केवल इतिहास का एक हिस्सा नहीं है, यह… Read More
सफेद बर्फ की चादर ओढ़े लद्दाख न केवल अपनी नैसर्गिक सुंदरता बल्कि इतिहास और संस्कृति… Read More
आजादी के बाद भारत ने लोकतंत्र को अपनाया और चीन ने साम्यवाद का पथ चुना।… Read More
मौर्य साम्राज्य के पतन की कहानी, सम्राट अशोक के धम्म नीति से शुरू होकर सम्राट… Read More