हम अक्सर फिटनेस के नए-नए ट्रेंड्स आज़माते हैं—हाई-इंटेंसिटी वर्कआउट, योगा चैलेंज या माइंडफ़ुल मेडिटेशन। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सिर्फ़ चलने की दिशा बदलना भी आपकी सेहत को नयी रफ़्तार दे सकता है? वैज्ञानिकों और फ़िज़ियोथेरेपिस्टों की ताज़ा रिसर्च बताती है कि पीछे की ओर चलना (रिवर्स वॉकिंग) न सिर्फ़ मांसपेशियों को अलग तरीक़े से सक्रिय करता है, बल्कि दिमाग़ी क्षमता, संतुलन और रीहैबिलिटेशन में भी कारगर है।
रिवर्स वॉकिंग क्या है?
सामान्य तौर पर हम आगे की ओर चलते हैं; लेकिन जब आप उल्टी दिशा में कदम बढ़ाते हैं, तो शरीर को नई न्यूरो-मस्क्युलर चुनौतियाँ मिलती हैं। इसे retro walking या backward walking भी कहा जाता है। यह क्रिया सुनने में भले ही आसान लगे, पर इसमें स्पेशियल अवेयरनेस, ध्यान और कोआर्डिनेशन काफी ज़रूरी होता है, जिससे शरीर-दिमाग़ का तालमेल मज़बूत बनता है।
शारीरिक फ़ायदे: क्यों है पीछे चलना अनमोल?
(क) मुद्रा सुधारे, कमर सीधी करे
आगे की ओर लंबे समय तक चलना या बैठे-बैठे काम करना शरीर को झुकाव की आदत डाल देता है। पीछे की ओर चलने से हैमस्ट्रिंग, काफ़ और ग्लूट्स जैसी मांसपेशियाँ सक्रिय होती हैं, रीढ़ सीधी रहती है और पोश्चर में तुरंत सुधार दिखता है।
(ख) संतुलन और कोआर्डिनेशन में बढ़ोतरी
रिवर्स वॉकिंग से प्रोप्रियोसेप्शन—यानी शरीर की ‘स्थानिक समझ’—मज़बूत होती है। इससे बुज़ुर्गों में गिरने का ख़तरा कम होता है और एथलीटों की एजिलिटी बढ़ती है।
(ग) लो-इम्पैक्ट कार्डियो विकल्प
शोध बताता है कि उल्टा चलना जोड़ों पर कम दबाव डालता है, जबकि हृदय गति को उचित स्तर तक बढ़ाता है। घुटने की चोट, कमर दर्द या मोटापे से जूझ रहे लोग इसे सुरक्षित कार्डियो के रूप में अपना सकते हैं।
(घ) चोट से उबरने में सहायक
फ़िज़ियोथेरेपिस्ट ACL सर्जरी, शिन-स्प्लिंट, प्लांटर फ़ेशिआइटिस जैसी समस्याओं में बैकवर्ड वॉकिंग को रिहैब प्रोटोकॉल में शामिल करते हैं। इससे नी मसल्स दोबारा ट्रेन होती हैं बिना अतिरिक्त तनाव के।
दिमाग़ी फायदा: न्यूरोप्लास्टिसिटी को दे बूस्ट
(क) ध्यान व याददाश्त तेज़
जब मस्तिष्क रोज़ के पैटर्न से हटकर नई जानकारी प्रोसेस करता है, तो कॉर्टेक्स और सेरेबेलम ज़्यादा सक्रिय होते हैं। परिणामतः फ़ोकस, मेमोरी और सोचने-समझने की क्षमता बेहतर होती है।
(ख) मूड सुधार, तनाव घटाने में मदद
नई गतिविधि से डोपामीन और एंडॉर्फ़िन रिलीज़ होती हैं। यही “गुड-फील” हार्मोन ख़ुशी बढ़ाते हैं और एंग्ज़ायटी कम करते हैं। अनोखी चाल का रोमांच भी मनोवैज्ञानिक राहत देता है।
(ग) रचनात्मक सोच बढ़ाए
कई अध्ययन बताते हैं कि अपरिचित गतिविधियाँ डिफ़ॉल्ट-मोड नेटवर्क को एक्टिवेट करती हैं, जो क्रिएटिव प्रॉब्लम-सॉल्विंग से जुड़ा है। अगली बार आइडिया ब्लॉक हो, तो कुछ मिनट उल्टा चलकर देखें!
वैज्ञानिक प्रमाण: शोध क्या कहता है?
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Journal of Physical Therapy Science (2019) में छपे एक अध्ययन के अनुसार, 6 सप्ताह की बैकवर्ड वॉकिंग ट्रेनिंग ने सीनियर सिटिज़न्स में गति और संतुलन दोनों में सुधार दिखाया।
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जापान व यूके की यूनिवर्सिटीज़ ने पाया कि रिवर्स वॉकिंग पैर की निचली मांसपेशियों को फॉरवर्ड वॉकिंग की तुलना में अधिक सक्रिय करती है, जिससे गिरने का जोखिम घटता है।
कैसे शुरू करें?—सेफ्टी गाइड
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सपाट व बाधा-रहित जगह चुनें — पार्क की समतल पगडंडी या जिम का कॉरिडोर बेहतरीन हैं।
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दृष्टि-नियंत्रण बनाए रखें — शुरुआत में हर 4-5 कदम पर पीछे झांकें या दर्पण/दोस्त की मदद लें।
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धीरे-धीरे समय बढ़ाएँ — पहले दिन 2-3 मिनट, फिर 10-15 मिनट तक लाएँ।
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फ़ुटवेयर सही हो — सपोर्टिव सोल और एड़ी के साथ जूते पहनें ताकि फॉलरिस्क घटे।
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चोट या पुरानी बीमारी है? — चिकित्सक या फ़िज़ियोथेरेपिस्ट से परामर्श ज़रूर लें।
लेवल-अप आइडियाज़: जब बेसिक हो जाए आसान
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uphill रिवर्स वॉकिंग: ट्रेडमिल को 5-7° इंक्लाइन पर सेट करें।
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बैकवर्ड वॉकिंग लंज: जांघ और ग्लूट्स के लिए शक्तिशाली वेरिएशन।
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रिवर्स जॉग या स्प्रिंट: स्पोर्ट्स प्लेयर्स के लिए एथलेटिक कंडीशनिंग में मददगार।
सांस्कृतिक व ऐतिहासिक पहलू
बहुत से एशियाई मार्शल आर्ट्स में उल्टा चलना संतुलन साधने का पारंपरिक हिस्सा है। अफ़्रीका के कुछ जनजातीय रीति-रिवाजों में इसे धार्मिक-आध्यात्मिक अभ्यास माना जाता रहा है। आधुनिक समय में मूवमेंट थेरेपी और मेडिटेशन समूह भी इसे अपनाने लगे हैं।
सामान्य-सी लगने वाली यह गतिविधि मांसपेशियों की मजबूती, हृदय स्वास्थ्य, मानसिक सतर्कता और रचनात्मकता को एक साथ बढ़ाती है। सिर्फ़ 5-10 मिनट प्रति दिन का पीछे की ओर चलना आपको समग्र स्वास्थ्य की ओर बड़ा क़दम लेने में मदद कर सकता है। याद रखें—कभी-कभी जीवन में प्रगति का रास्ता पीछे जाने से भी शुरू होता है!
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