ऋषिकेश राज
एईएस… यानी चमकी बुखार। नाम सुनकर ही मन में एक अजीब खौफ बन जाता है। पिछले दो दशक में हजारो बच्चे इस बीमारी की चपेट में आकर काल के गाल में समा चुके हैं। इस जानलेवा बीमारी का कहर प्रत्येक साल बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाकों में गर्मी का मौसम आते ही शुरू हो जाता है। हालांकि, बरसात के शुरू होते ही यह खत्म हो जाता है। यह बीमारी मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में ज्यादा भयावह रूप धारण करती है, जहां गरीबी और कुपोषण हैं। जिन बच्चों को संतुलित आहार नहीं मिल पाता है, उनके बीमार होने की गुंजाइश अधिक होती है।
कुछ लोग इस बीमारी का कारण लीची को बतातें है। हालांकि, अभी तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है। इस बीमारी के रोकथाम के लिए प्रत्येक साल सरकार एवं विश्व बैंक के तरफ से कोशिशे की जा रही है। परन्तु, इसका आज तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया। कई बार ओआरएस सहित अन्य चिकित्सकीय सहायत धरातल पर पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है। जागरुकता अभियान की कागजी खानापूर्ति का आलम ये है कि लोगो में जागरुकता भी नितांत अभाव देखा जा है।
अप्रैल से जून के बीच अस्पताल में दौरा करने वाले सियासतदान बाद के दिनो में इसकी गंभीरता को याद नहीं रखते। बड़ी-बड़ी घोषणाएं तो हो जाती है। पर, उसको अमलीजामा नहीं पहनाया जाने का खामियाजा आम लोगो को भुगतना पड़ता है। काश, अखबार की सुर्खियां बटोरने वालों, बच्चो के मौत की गंभीरता को समझ पाते। मृत्यु के बाद चार लाख रुपये भले न मिले। बीमारी की रोकथाम के लिए की जा रही प्रयासो में कोताही करने वालों को दंडित तो किया जाये। समय रहते तैयारी की गई होती तो हमारे समाज के नौनिहाल को अकालमृत्यु से बचाया जा सकता था।
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