भारत में बढ़ती जनसंख्या अब एक विस्फोटक मोड़ पर पहुंच चुकी है। किंतु आम इंसान आज भी इस खतरे से अनजान है। दरअसल, यही, वह बड़ी वजह है, जिसके रहते सरकार के द्वारा चलाई जा रही जनसंख्या नियंत्रण का मुहिम सफल नहीं हो पा रहा है।
यानी भारत में जनसंख्या पर नियंत्रण तभी सम्भव है, जब आमलोग इस खतरे से अवगत हो जाएं। इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति और लम्बे प्लानिंग की जरुरत है। राजनीतिक इच्छा शक्ति इसलिए जरुरी है क्योंकि भारत की खंडित हो चुकी विचारधारा, यहां भी आरे आ सकती है। इस गम्भीर समस्या को भी जातिवाद और साम्प्रदायवाद की चश्मे से देखने की हमारी प्रवृत्ति ने समस्या को और भी बिकराल रूप प्रदान कर दिया है।
आंकड़ा दे रहा है खतरे का संकेत
वर्ष 2011 के जनगणना रिपोर्ट में भारत की जनसंख्या 121 करोड़ बताया गया है। जो, मौजूदा समय में बढ़ कर 131 करोड़ को भी पार कर चुका है। शायद आप यह जान कर चौक जायें कि यदि इस वक्त अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, पाकिस्तान, बांग्लादेश और जापान की कुल जनसंख्या को मिला दिया जाये, तब भी वह भारत की बराबरी नहीं कर सकता है। इसका खतरनाक पहलू ये है कि आज भारत की आवादी अकेले ही विश्व की आवादी का 17.5 फीसदी हो चुका हैं। यहां आपको यह बताना भी जरुरी है कि वर्ष 1941 में भारत की जनसंख्या मात्र 31.86 करोड़ थी। स्मरण रहें कि यह बात तब की है, जब आज का पाकिस्तान और बांग्लादेश भी भारत का ही हिस्सा हुआ करता था।
जन्म लेने वाले प्रत्येक छह में से एक भारतीय
आलम ये हो गया है कि वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व के प्रत्येक 6 व्यक्तियों में से एक भारतीय है। यह हालात तब कि जब विश्व के 13.58 करोड़ वर्ग किलोमीटर सतही क्षेत्र में से भारत का हिस्सा मात्र 2.4 फीसदी ही है। जबकि भारत का जनसंख्या घनत्व 17.5 फीसदी है। दरअसल, यह एक आंकड़ा बताने के लिए काफी है कि हम भारतीय का जीवन कितना चुनातीपूर्ण हो चुका है। बतातें चलें कि दुनिया की सबसे बड़ी आवादी वाला देश चीन, विगत कुछ वर्षो के दौरान अपनी जनसंख्या बृद्धि में निरंतर कमी कर रहा है। अनुमान लगाया गया है की भारत का जनसंख्या बृद्धि दर मौजूदा रफ्तार से ही जारी रहा तो वर्ष 2030 तक भारत, चीन को पीछे छोड़ कर दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बन जायेगा।
चार राज्यों में जनसंख्या बृद्धि दर खतरनाक
भारत के चार बड़े राज्यो में जनसंख्या बृद्धि दर खतरनाक तरीके से बढ़ रहा है। ये राज्य है उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और विहार। आंकड़ो पर गौर करें तो इन राज्यों की आवादी देश की कुल जनसख्या के 40 फीसदी बृद्धि करने में अकेले ही जिम्मेदार है। इन राज्यों की उंची प्रजनन दर दरअसल चौकाने वाली बनी हुई है। यह हालात तब है, जब भारत सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़ेपन की विरासत पर विजय पाने के लिए बहादुरी से संघर्ष कर रहा है। कहतें हैं कि तीव्र गति से होने वाली जनसंख्या वृद्धि न केवल इसकी अबतक की उपलब्धियों को शून्य बना देती है। बल्कि, पहले से दबी हुई व्यवस्था पर और अधिक दबाव भी बढ़ा देती है।
भारत में जन्म और मृत्यु दर
भारत में वार्षिक वर्ष 2011 में 24.8 फीसदी का है। जबकि, म्रत्यु दर औसतन 8 फीसदी की है। आंकड़ो पर गौर करें तो पिछले दो दशक के भीतर भारत में जन्म दर में मामूली गिरावट आया है। वहीं मृत्यु दर में तेजी से गिरावट आने से जनसंख्या बृद्धि दर में जबरदस्त इजाफा हो गया है। यहां बतातें चलें कि भारत में इस वक्त गर्भपात की संख्या तकरीबन 6.20 लाख है। यदि, इस आंकड़ा को जोड़ दे तो हालात दहशत पैदा कर देने वाले है। परिवार नियोजन के इस युग में 15-45 वर्ष आयु वर्ग के प्रत्येक चार में से एक स्त्री गर्भवती पायी गई है। यह आंकड़ा भी चौका देता है। आज 21वीं सदी के भारत में भी ऐसे लोग मौजूद है जो यह तर्क देते मिल जायेंगे कि बच्चे भगवान की मर्जी से पैदा होते है और महिलाओं का काम ही बच्चो को जन्म देना होता है। इस मानसिकता के रहते जनसंख्या नियंत्रण करना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुकिन भी है। इसी प्रकार भारतीय मुसलमानों में अपेक्षाकृत अधिक जन्म दर के साथ-साथ जनन दर भी सर्वाधिक है।
जनसंख्या से उत्पन्न होने वाली समस्या
जनसंख्या बृद्धि का लोगो के जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। लगभग 20 लाख लोग वेघर है। इसी प्रकार करीब 9.70 करोड़ लोगों के पास सुरक्षित पेयजल की सुविधा नहीं है। 27.20 करोड़ लोग निरक्षर है। पांच वर्ष आयु वर्ग के करीब 43 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार है और करीब 1.6 करोड़ लोग बेरोजगार है। इसी प्रकार लगभग 1 करोड़ लोगो के पास आज भी प्रयाप्त पौष्टिक भोजन उपलब्ध नही हैं। यदि जनसख्या में इसी तरह बढोत्तरी जरी रही तो अब कुछ वर्षो के बाद ही हमारे पास बेरोजगार,भूखे और निराश लोगों की एक बड़ी फ़ौज खडी हो जाएगी जो देश की सामाजिक ,आर्थिक तथा राजनितिक प्रणालियों और संस्थाओं की जड़ो को हिला कर रख देगी।