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बीएससी नर्सिंग में महिलाओं को बड़ी राहत, बीएचयू में 80% सीटें छात्राओं के लिए आरक्षित

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आईएमएस बीएचयू की फैकल्टी ऑफ नर्सिंग ने इस साल एक ऐतिहासिक बदलाव करते हुए बीएससी (ऑनर्स) नर्सिंग कोर्स में पहली बार छात्राओं के लिए 80 फीसदी सीटें आरक्षित करने का निर्णय लिया है। यह बदलाव न सिर्फ संस्थान के भीतर एक नई व्यवस्था की शुरुआत है, बल्कि यह नर्सिंग जैसे सेवा-प्रधान क्षेत्र में महिला भागीदारी को बढ़ावा देने की दिशा में एक अहम कदम भी माना जा रहा है।

पहली बार महिलाओं को मिलेगा इतना बड़ा आरक्षण

बीएचयू के इस नर्सिंग कोर्स में कुल 75 सीटें हैं। पहले यह सीटें मेरिट आधार पर सभी उम्मीदवारों के लिए खुली होती थीं, जिससे अधिकतर सीटों पर पुरुष अभ्यर्थियों का चयन हो जाता था। आंकड़ों के अनुसार, हर साल तकरीबन 80% सीटों पर छात्रों का ही दाख़िला होता था और छात्राओं की हिस्सेदारी महज़ 20% तक सीमित रह जाती थी। नई नीति के तहत अब छात्राओं को 80% सीटें दी जाएंगी, जबकि पुरुष अभ्यर्थियों के लिए केवल 20% सीटें उपलब्ध होंगी।

बीएचयू प्रशासन और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की दिशा-निर्देशों के तहत लागू की गई इस नीति का मुख्य उद्देश्य नर्सिंग के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना है, खासकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों की छात्राओं को उच्च शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाना।

छात्राओं के लिए खुलेंगे नए अवसर

इस निर्णय से न सिर्फ पढ़ाई के क्षेत्र में छात्राओं को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि यह उनके करियर ग्रोथ और आत्मनिर्भरता की दिशा में भी अहम साबित हो सकता है। नर्सिंग जैसे क्षेत्र में जहां सेवा, समर्पण और संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है, वहां महिलाओं की भूमिका और अधिक सशक्त हो सकती है। गांवों और कस्बों की उन लड़कियों के लिए यह फैसला किसी वरदान से कम नहीं होगा, जिन्हें पहले सीमित संसाधनों और सामाजिक रुकावटों के कारण पीछे हटना पड़ता था।

छात्रों की नाराज़गी, मेरिट पर उठे सवाल

हालांकि, इस फैसले का एक पक्ष ऐसा भी है जो इससे असहमत है। बीएचयू के छात्र मनोज कुमार ने इसे भेदभावपूर्ण करार देते हुए कहा कि किसी भी पेशेवर कोर्स में दाख़िला योग्यता के आधार पर होना चाहिए, न कि लिंग के आधार पर। उनका मानना है कि यह नीति योग्य पुरुष उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन करती है और नर्सिंग जैसे क्षेत्र में पुरुषों की पहले से ही कम भागीदारी को और कमजोर कर सकती है।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि नर्सिंग जैसे संवेदनशील और प्रोफेशनल सेक्टर में लिंग नहीं बल्कि स्किल और नॉलेज को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

सेवा क्षेत्र में संतुलन की जरूरत

आज भी भारत में हेल्थकेयर सिस्टम में महिला नर्सों की संख्या पुरुषों की तुलना में काफी अधिक है, लेकिन यह संतुलन हर स्थान पर एक जैसा नहीं है। पुरुष नर्सों की भूमिका कई बार अस्पतालों और इमरजेंसी सेवाओं में बेहद अहम होती है। ऐसे में केवल महिला आरक्षण से यदि योग्य पुरुष उम्मीदवारों को पीछे धकेला जाएगा, तो यह भविष्य में चुनौती बन सकता है।

फिर भी, इस निर्णय को नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक सकारात्मक पहल माना जा सकता है। यह जरूरी है कि किसी भी आरक्षण नीति को क्रियान्वयन के समय पारदर्शी और निष्पक्ष बनाया जाए ताकि कोई वर्ग पूरी तरह से वंचित न रह जाए।

पॉलिसी का कार्यान्वयन कैसे होगा

बीएचयू प्रशासन की ओर से कहा गया है कि महिला और पुरुष अभ्यर्थियों के लिए अलग-अलग मेरिट लिस्ट जारी की जाएगी। प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए स्पष्ट गाइडलाइंस तैयार की जा रही हैं। यदि किसी भी श्रेणी में सीटें खाली रह जाती हैं, तो उन्हें सामान्य श्रेणी में स्थानांतरित किया जा सकता है।

इसके अलावा, काउंसलिंग प्रक्रिया के दौरान गाइडलाइंस का पालन करते हुए सीट आवंटन किया जाएगा। यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि जो छात्राएं पहली बार आवेदन कर रही हैं, उन्हें भी पूरा मौका मिल सके।

देशभर में बढ़ती महिला भागीदारी

बीएचयू का यह निर्णय उस व्यापक बदलाव का हिस्सा है जो भारत में नर्सिंग शिक्षा के क्षेत्र में देखा जा रहा है। कई राज्य पहले ही महिला अभ्यर्थियों के लिए विशेष आरक्षण लागू कर चुके हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय और शिक्षा विभाग दोनों ही महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत इस तरह की पहलों को बढ़ावा दे रहे हैं।

नर्सिंग फैकल्टी के कुछ सदस्यों ने भी इस फैसले को स्वागतयोग्य बताया है। उनका कहना है कि इससे न केवल महिलाओं की संख्या बढ़ेगी बल्कि हेल्थकेयर सिस्टम में एक नया संतुलन भी देखने को मिलेगा।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखें तो…

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नर्सिंग शिक्षा में महिलाओं की संख्या हमेशा से अधिक रही है। पश्चिमी देशों में भले ही लिंग आरक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ी हो, लेकिन वहां महिला नर्सों की संख्या स्वयं ही अधिक है। भारत जैसे देश में जहां अब भी सामाजिक असमानता और अवसरों की कमी बनी हुई है, वहां इस तरह की नीति सामाजिक समानता की दिशा में एक मजबूत कदम हो सकता है।

अभ्यर्थियों के लिए क्या मायने रखता है यह बदलाव

जो छात्राएं नर्सिंग में अपना भविष्य बनाना चाहती हैं, उनके लिए यह समय काफी अनुकूल है। 80% सीटें उनके लिए आरक्षित होने से अब उन्हें प्रतिस्पर्धा में बेहतर मौका मिलेगा। खासकर ग्रामीण पृष्ठभूमि की लड़कियों के लिए यह एक मजबूत अवसर है।

वहीं, छात्रों को भी अब अधिक मेहनत और तैयारी करनी होगी क्योंकि सीटों की संख्या उनके लिए सीमित हो गई है। उन्हें अपने स्कोर, इंटरेस्ट और एप्टीट्यूड के दम पर खुद को साबित करना होगा।

बीएचयू द्वारा नर्सिंग कोर्स में 80% सीटें छात्राओं के लिए आरक्षित करना एक ऐतिहासिक फैसला है। यह न केवल छात्राओं के लिए नए अवसर खोलेगा, बल्कि हेल्थकेयर सेक्टर में महिलाओं की भूमिका को भी और सशक्त बनाएगा। हालांकि इससे जुड़ी बहस – आरक्षण बनाम मेरिट – भी अब और तेज हो सकती है, लेकिन यदि यह कदम पारदर्शिता और न्यायसंगत तरीके से लागू किया गया, तो यह बदलाव नर्सिंग शिक्षा के क्षेत्र में एक मिसाल बन सकता है।

यदि आप नर्सिंग में करियर बनाने की योजना बना रहे हैं, तो यह खबर आपके लिए महत्वपूर्ण है। अपडेटेड गाइडलाइंस और आवेदन की पूरी जानकारी के लिए BHU की आधिकारिक वेबसाइट पर नजर रखें।

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