Crime

मामुली ड्राइवर का बेटा कैसे बना उत्तर बिहार का कुख्यात डॉन?

गोरा सुडौल चेहरा, काले रंग की फुल टी-शर्ट, ब्रांडेड पैंट और चेहरे पर महंगा काला चश्मा पहने यह कोई हीरो नहीं और नाहीं किसी फिल्म की कहानी है। बल्कि, यह उत्तर बिहार के लेवी डॉन संतोष झा की हकीकत है। कहतें हैं कि महंगा ब्रांडेड कपड़ा पहनना संतोष झा के शौक में शुमार था। नक्सली संगठन में शामिल होकर जमींदारो के आतंक का खिलाफत करने वाला कालांतर में खुद एक खूंखार अपराधी बन गया और देखते ही देखते लेवी की खातिर निर्दोश और बेगुनाह लोगो पर अत्याधुनिक हथियार से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाने वाला, आखिरकार खुद एक अपराधी के गोली का शिकार हो गया। इसी के साथ उसके आतंक के साम्राज्य का भी अंत हो गया। हत्या, लूट, रंगदारी, भयादोहन, विस्फोटक अधिनियम तथा आर्म्स एक्ट के करीब 30 से अधिक मामलो में वह जेल में बंद था और पेशी के दौरान सीतामढ़ी कोर्ट परिसर में ही पुलिस सुरक्षा घेरे के बीच शूटआउट का शिकार बन गया। इसके बाद पहला सवाल तो कोर्ट परिसर के सुरक्षा चूक पर उठना लाजमी है। किंतु, इससे भी बड़ा सवाल यह कि एक मामुली ड्राइवर का बेटा इतना बड़ा दुर्दान्त अपराधी आखिर कैसे बन गया?

ड्राइवर का बेटा अखिर कैसे बन गया डॉन

कुख्यात संतोष झा के जिंदगी की कहानी पूरी तरह से फ़िल्मी है। कहतें हैं कि जमींदारों द्वारा अपने पिता चन्द्रशेखर झा की पिटार्इ के अपमान का बदला लेने के लिए संतोष झा माओवादियों की जमात में शामिल हुआ था। शिवहर जिले के पुरनहिया थाना अंतर्गत दोस्तियां गांव का रहने वाला संतोष झा के पिता चंद्रशेखर झा कभी गांव के हीं दबंग जमींदार परिवार से तालुक रखने वाले नवल किशोर यादव के जीप का ड्राइवर हुआ करता था। किंतु, गांव में पंचायत भवन बनाने के सवाल पर चद्रशेखर झा की गांव के उन्हीं दबंगों से ठन गयी। जमींदार नवल किशोर यादव दोस्तियां में प्रस्तावित पंचायत भवन बनने का विरोध कर रहे थे। जबकि, उन्हीं के यहां नौकरी कर रहे चन्द्रशेखर झा ने इसके लिए अपना जमीन दान करके जमींदार से दुश्मनी मोल ली। बस इतनी सी बात पर दबंग जमींदार ने चंद्रशेखर झा की सरेआम गांववालो के सामने ही जमकर पिटार्इ कर दी। पिता पर जमींदारों के जुल्म से आहत होकर संतोष बदले की आग में जलने लगा और माओवादियों के खेमें में शामिल होकर बदला लेने की कसम खायी।

जमींदार के घर पर किया हमला

आपको याद ही होगा वर्ष-2003 में संतोष झा के कहने पर माओवादिओ ने दोस्तियां के जमींदार नवल किशोर यादव के घर पर हमला करके अपना इरादा स्पष्ट कर दिया था। हालांकि, इस हमले में नवल किशोर यादव बच गये थे। इसके बाद अदौड़ी में बैंक लूट और तरियानी के नरवारा में बैंक लूट कर संतोष माओवादियों का चहेता बन गया। संतोष यही नहीं रुका बल्कि, उसने माओवादियों की मदद से देकुली पुलिस पिकेट से हथियार लूट कर माओवादियों का एरिया कमांडर बन गया। किंतु, अभी भी पिता की पिटार्इ का बदला संतोष के मन में मलाल पैदा कर रहा था। उसने योजना बनाई और 15 जनवरी 2010 को अपने सहयोगियों के साथ सीतामढ़ी के राजोपटटी में पूर्व जिला पार्षद नवल किशोर यादव को उसके घर के बाहर गोलियों से भून कर अपना इंतकाम पूरा कर लिया।

अपराध की दुनिया में रखा कदम

इस बीच संतोष की महत्वाकांक्षा बढ़ती गई और उसने नक्सलियों से अलग होकर बिहार पीपुल्स लिबरेशन आर्मी बना ली और अपनी ताकत दिखाने के लिए उस वक्त के नक्सली कमांडर गौरी शंकर झा की 24 नवंबर 2011 को हत्या करके उत्तर बिहार में नक्सलियों के समानांतर में अपना संगठन खड़ा करने के संकेत भी दे दिए। इस बीच एसटीएफ ने पटना के एक होटल से संतोष झा को गिरफ्तार कर लिया। किंतु, पुलिस के द्वारा समय पर चार्जशीट फाइल नहीं करने का लाभ उठा कर उसे जमानत मिल गई।

जेल से निकलते ही बन गया खूंखार

कहतें हैं कि जमानत पर छूटते ही संतोष ने उत्तर बिहार में अपना खूनी खेल आगाज कर दिया। दरभंगा में इंजीनियर दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने के बाद वह बिहार सरकार के सुशासन के लिए बड़ी चुनौती बन चुका था। आपको याद ही होगा वर्ष 2015 में बिहार के दरभंगा जिले में एक कंस्ट्रक्शन कम्पनी के दो इंजिनियरों को संतोष झा के गिरोह ने लेवी नहीं दिए जाने पर हत्या कर दी थी। संतोष झा के प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस कस्टडी में होने के वाबजूद सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चमी चंपारण, गोपालगंज तथा शिवहर जिले की पुलिस को वह नाको दम कर रखा था। उसके तार नेपाल से भी जुड़े हुए थे।

संतोष को देखने के लिए उमड़ पड़ती थी भीड़

उत्तर बिहार का र्इनामी तथा बिहार पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का चीफ संतोष झा सबसे अधिक चर्चा में उस समय आया था जब 15 फरवरी 2015 की दोपहर सीतामढ़ी पुलिस की कस्टडी में वह बख्तरबंद वैन से बाहर निकला तो डुमरा के व्यवहार न्यायालय के पास उसकी एक झलक पाने के लिए सैकड़ों की तादाद में भीड़ उमड़ पड़ी थी। भीड़ इस कदर धक्का मुक्की पर उतारू हो गई की पुलिस के लिए उस वक्त भीड़ से संतोष झा को निकालने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। पुलिस को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि कुख्यात संतोष झा को देखने के लिए इतनी बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जुट जायेगी। कहतें हैं कि जिस व्यक्ति के नाम से कंस्ट्रक्शन कंपनियां कांप उठती थी, वह कस्टडी में पूरे इत्मीनान से दबंग की तरह हाथ हिला कर भीड़ का इस्तकबाल कर रहा था।

अथाह संपत्ति का बन गया मालिक

पुलिस की माने तो संतोष झा ने सिर्फ रंगदारी की रकम से करीब 50 करोड़ से अधिक की संपत्ति अर्जित की थी। पुलिस की तफ्तीस में यह बात सामने आयी है कि कुख्यात संतोष झा का काठमांडू, जमशेदपुर, रांची और कोलकता में आलीशान फ्लैट है। उसने उड़ीसा में एक आलीशान होटल भी खोल रखी थी। इतना हीं नहीं असम के गुवाहाटी में उसने करोड़ों की लागत से एक बड़ा स्कूल तक खोल रखा था। फिलहाल, सरकार ने संतोष झा की सभी चल व अचल संपत्ति को जब्त कर लिया है।

कॉरपोरेट स्टाइल में चलाता था गिरोह

आपको जान कर हैरानी होगी कि संतोष झा एक कॉरपोरेट की तरह अपने गिरोह का संचालन करता था और अपने गुर्गो को उसके अपराधिक रिकार्ड के हिसाब बेतन देता था। ताज्जुब की बात ये कि बड़ी घटना को अंजाम देने के बाद गुर्गो का प्रमोशन कर दिया जाता था। चौकाने वाली बात ये कि वह अपने शूटर का बजाप्ता इन्सूरेंस करबाता था और उसके मारे जाने पर उसके परिवार को कॉरपोरेट अंदाज में भरण पोषण के लिए मुआवजा भी देता था।

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KKN न्‍यूज ब्यूरो

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