बिहार में जल संकट: भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन का खतरनाक स्तर

Water Crisis in Bihar: Contamination in Groundwater Threatens Public Health

KKN गुरुग्राम डेस्क | बिहार में जल संकट दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में भूजल में आर्सेनिकफ्लोराइड, और आयरन के उच्च स्तर पाए जा रहे हैं, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं। हाल ही में की गई रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि बिहार के 4,709 वार्डों के भूजल में आर्सेनिक, 3,789 वार्डों में फ्लोराइड और 21,709 वार्डों में आयरन की उपस्थिति है। इन तत्वों की मौजूदगी पानी की गुणवत्ता को बिगाड़ रही है और यह राज्य के निवासियों के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।

जल संकट का बढ़ता हुआ प्रभाव

भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन के खतरनाक स्तर की वजह से बिहार के नागरिकों की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। ये खतरनाक तत्व समय के साथ गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो लंबे समय से इस प्रकार के पानी का सेवन कर रहे हैं। जल संकट का यह समस्या विशेष रूप से बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है, जहां लोग अधिकतर भूजल पर निर्भर रहते हैं।

आर्सेनिक का खतरा

आर्सेनिक एक अत्यधिक जहरीला तत्व है, जो प्राकृतिक रूप से भूमि में पाया जाता है। यह मानव शरीर पर कैंसर, त्वचा पर घाव, लिवर और किडनी की बीमारियां, और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। बिहार के 4,709 वार्डों में आर्सेनिक की उच्च मात्रा पाए जाने के कारण यहां रहने वाले लोग लंबे समय तक इसके प्रभाव में आ रहे हैं। आर्सेनिक से प्रभावित लोग गंभीर बीमारियों का शिकार हो सकते हैं, जो उनके जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।

फ्लोराइड का असर

फ्लोराइड एक अन्य खतरनाक तत्व है जो सामान्य रूप से पानी में मिलता है। हालांकि, थोड़ी मात्रा में फ्लोराइड दांतों के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन इसकी अधिक मात्रा से दंत और कंकाल फ्लोरोसिस जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। फ्लोराइड की अधिकता से हड्डियों में कमजोरी, जोड़ों में दर्द और अन्य विकार हो सकते हैं। बिहार के 3,789 वार्डों में फ्लोराइड की अधिकता चिंता का कारण बन चुकी है, जिससे यहां के निवासियों में ये समस्याएं बढ़ रही हैं।

आयरन की समस्या

आयरन भी एक महत्वपूर्ण खनिज है जो शरीर के लिए आवश्यक है, लेकिन जब यह पानी में अधिक मात्रा में पाया जाता है तो यह आयरन ओवरलोड का कारण बन सकता है। इससे पाचन संबंधी समस्याएं, पेट दर्द, उल्टियां और लिवर और हृदय संबंधी रोग हो सकते हैं। बिहार के 21,709 वार्डों में आयरन की अधिकता से यह समस्या उत्पन्न हो रही है। उच्च आयरन स्तर के कारण न केवल पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है, बल्कि यह लोगों की सेहत पर भी बुरा असर डाल रहा है।

बिहार के जल संकट के कारण

बिहार में जल संकट और पानी में होने वाली ये खतरनाक मिलावटें कई कारणों से हो रही हैं। इनमें प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ मानवीय गतिविधियां भी शामिल हैं, जो जल स्रोतों को प्रदूषित कर रही हैं।

  1. अधिक जल निकासी: बिहार में अत्यधिक जल निकासी एक प्रमुख कारण है। कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए अधिक जल निकाले जाने से भूजल स्तर में गिरावट आई है। इसके कारण प्राकृतिक तत्व, जैसे आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन, जल स्रोतों में घुलने लगते हैं।

  2. विनाशकारी जल प्रबंधन: बिहार में जल प्रबंधन की कमी भी इस समस्या को बढ़ाती है। कई क्षेत्रों में जल शोधन की उचित प्रक्रिया नहीं है, जिससे जल में खतरनाक तत्वों की मात्रा बढ़ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप लोग दूषित पानी का सेवन करने के लिए मजबूर होते हैं।

  3. कृषि और उद्योग का प्रभाव: कृषि और उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषण भी जल स्रोतों को दूषित करता है। रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग जल स्रोतों में मिलकर जल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। इसके अलावा, उद्योगों से निकलने वाले अवशेष भी जल स्रोतों में मिलकर पानी को गंदा कर देते हैं।

  4. जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के पैटर्न में बदलाव आया है। बेमौसम बारिश और सूखा जल संकट को और बढ़ा रहे हैं। बारिश के पानी में प्रदूषण के कण मिलकर भूजल स्रोतों में घुल जाते हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता और खराब हो जाती है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव

इन खतरनाक तत्वों के कारण बिहार के लोगों में कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। खासकर, बच्चों और गर्भवती महिलाओं को इन समस्याओं का ज्यादा खतरा है।

  1. आर्सेनिक से होने वाली बीमारियां: आर्सेनिक से त्वचा पर घावपेट और आंतों की बीमारियांकैंसर, और नर्वस सिस्टम के विकार हो सकते हैं। यह समस्या दीर्घकालिक रूप से गंभीर हो सकती है, क्योंकि आर्सेनिक का असर धीरे-धीरे शरीर पर पड़ता है।

  2. फ्लोरोसिस: फ्लोराइड की अधिकता से दंत फ्लोरोसिस और हड्डी फ्लोरोसिस जैसी बीमारियां हो सकती हैं। इससे दांतों में पीले धब्बे और हड्डियों में कमजोरी आ सकती है। यह बच्चों के लिए विशेष रूप से हानिकारक है, क्योंकि उनकी हड्डियां और दांत अभी विकसित हो रहे होते हैं।

  3. आयरन ओवरलोड: आयरन की अधिकता से पाचन समस्याएंजिगर के रोगहृदय संबंधी विकार, और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं हो सकती हैं। यह पानी में मौजूद अत्यधिक आयरन के कारण हो सकता है।

समस्या का समाधान और कदम

बिहार के जल संकट का समाधान और पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए कुछ कदम उठाए जाने की आवश्यकता है:

  1. पानी की शोधन प्रणाली का सुधार: बिहार में पानी की शोधन प्रणाली को बेहतर बनाने की जरूरत है। यह सुनिश्चित करना होगा कि पानी में से आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन जैसे तत्व हटाए जाएं। बेहतर शोधन तकनीकें लागू करनी चाहिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।

  2. वर्षा जल संचयनवर्षा जल संचयन एक प्रभावी तरीका है जो भूजल स्तर को बनाए रखने में मदद कर सकता है। बिहार में वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने से पानी की कमी को दूर किया जा सकता है।

  3. पानी की गुणवत्ता की नियमित जांच: नियमित रूप से पानी की गुणवत्ता की जांच करानी चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार की मिलावट का समय रहते पता चल सके और उचित उपाय किए जा सकें।

  4. जन जागरूकता: लोगों को जल शोधन और जल संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक करना चाहिए। स्कूलों और समुदायों में जल प्रदूषण के प्रभाव और जल शोधन के तरीके पर शिक्षा दी जानी चाहिए।

बिहार में जल संकट और पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन जैसे खतरनाक तत्वों का उच्च स्तर एक गंभीर समस्या है। यह न केवल स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, बल्कि लंबे समय तक इन समस्याओं का समाधान न होने पर यह स्थिति और भी खराब हो सकती है।

राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन और नागरिकों को मिलकर इस संकट से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। जल शोधन प्रणाली को बेहतर बनाना, वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना, और पानी की गुणवत्ता की नियमित जांच करना कुछ ऐसे कदम हैं जो इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।

बिहार के नागरिकों के लिए यह समय है कि वे अपने जल स्रोतों की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाएं और एक स्वस्थ और सुरक्षित जल स्रोत की ओर कदम बढ़ाएं।

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