राजकिशोर प्रसाद
आज चंपारण सहित पूरा बिहार गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सौ वीं वर्षगांठ मनाते इठला रही है। सरकार इसके लिये कोई कसर छोड़ना नही चाहती। गुरु पर्व से एक कदम आगे जाना चाहती है। आखिर चाहेगी क्यों नही? गांधीजी ने चंपारण आकर निलहो से रैयतों को नील की जबरन खेती से जो निजात दिलाई। हम आजाद हुये। स्वत्रंत्रता मिली। अंग्रेज चले गये। हम खेती करने को स्वत्रंत्र हुये। हमारी मर्जी जो चाहे अपनी माटी में जो उगाये।
देश की आजादी के बाद चंपारण में कई चीनी मिले लगी। किसानो को गन्ने की खेती हेतु प्रोत्साहित किया जाने लगा। लोग व्यवसायिक खेती देख जोरो पर गन्ना की खेती शुरू की। किन्तु, बदलते समय के साथ सब कुछ विपरीत होता गया। अधिकांश मिले बन्द हो गई। किसान मायूस हो गए। फिर भी कुछ किसान गन्ने की खेती नही छोड़ी। सरकार की ढुलमुल निति से गन्ने की बाक़ी रूपये 15 साल बाद भी कई किसानो को नही मिले। ये विवश किसान भी सरकार के सामने अपनी समस्याओं की खातिर सत्याग्रह ठान ली।
जहाँ सौ साल पूर्व गांधीजी के पाँव चंपारण की धरती पर किसानो की सही हक के लिये पड़ी थी। आज वही गांधी के चंपारण में वहाँ के दो लाल स्तय की आग्रह करते हुये आत्महत्या का प्रयास किया। शायद आज अगर गान्धीजी जिन्दा होते तो यह जुरूर सोचने को विवश होते की जिस किसान के लिये सत्याग्रह की वह आज भी पूरा नही हुआ। राजकुमार शुक्ला ने चंपारण के किसानो के हितार्थ गांधीजी को चंपारण लाये। किन्तु आज सौ साल बाद भी किसानो की समस्याये कम नही हुई। आज किसान विवश हो आत्महत्या पर उतारू है।
सरकार करोड़ो रूपये शदाब्दी वर्ष पर खर्च कर रही है। किन्तु किसानो की समस्याओ की ओर ध्यान नही है। अगर समय रहते चंपारण के इन किसानो की सुध ली गई होती तो चंपारण शदाब्दी वर्ष की सारार्थक्ता पूरी होती। काश आज भी कोई गांधीजी होते जो इन विवश किसानो के खातिर सत्याग्रह करते। सिर्फ अनुदान मुआवजा और आर्थिक सहायता से कुछ नही होगा। जब तक किसानो के लिये ठोस निति नही बनेगी, सही उपादान, समुचित सिचाई, निरतर सस्ती बिजली, सही खाद बीज, उचित मण्डी, उचित मूल्य, यातायात भण्डारण, सरकार की संरक्षण और ठोस कानून, तब तक किसानो की समस्याओ का सही हल नही होगा। और न गांधीजी के चंपारण सत्यग्रह की सार्थकता सिद्ध् होगी। आज जरूरत है किसानो को सुदृढ़ करने की। चूँकि, किसान देश के विकास की रीढ़ है। इन्हें सुदृढ़ किये बिना सब बेकार है। अगर समय रहते किसानो की नही सुनी गई तो, न जाने कितने किसान इसी तरह सत्याग्रह करने को विवश होते रहेंगे।
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