KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर है। बदले हालात में आरजेडी विनर है और बीजेपी बैक फुट पर। तीसरा बड़ा दल यानी जेडीयू को लेकर असमंजस बरकरार है। फिलहाल, वह आरजेडी के साथ है। पिछले तीन दशक से बिहार की राजनीति इन्हीं तीनों दल के बीच घुमती रही है। जानकार मानते है कि इसमें से दो जिधर होगा, बिहार की सत्ता पर उसी का कब्जा होगा। बीजेपी और आरजेडी एक साथ नहीं हो सकती है। ऐसे में जेडीयू ही एक मात्र पार्टी है, जो दोनों गठबंधन के साथ सहज भाव से राजनीति करती रही है। समाजवादी एकता के नाम पर वह आरजेडी के साथ खड़ी है। जबकि विकास के नाम पर उसको बीजेपी के साथ जाने में भी गुरेज नहीं रहा है। जेडीयू ने समय- समय पर इस खुले विकल्प का भरपूर लाभ उठाया है। नतीजा, तीसरे नंबर की पार्टी होने के बाद भी सत्ता के शीर्ष पर जेडीयू को फिलहाल कोई चुनौती नहीं है।
बिहार में राजद की राजनीति उभार पर है। तेजस्वी यादव नए समीकरण में विनर की भूमिका में हैं। उनकी पार्टी, जेडीयू के साथ सत्ता में वापस हुई है। संख्या बल के हिसाब से देखा जाए तो बिहार विधानसभा में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है। चुनाव प्रचार हो या लोगों से जुड़े मुद्दे दोनों फ्रंट पर तेजस्वी यादव ने शानदार काम किया है। अपने पिता लालू प्रसाद के पुराने राजनीतिक सिद्धांतों से इतर अपने नए सिद्धांत गढ़े है। उन्होंने बिहार में जातीय राजनीति को भी साधने की कोशिश की। तेजस्वी ने अपनी पार्टी को केवल मुस्लिम और यादवों की पार्टी वाली छवि से बाहर निकालने की कोशिश करते हुए ‘ए-टू-जेड’ यानी सभी को साथ लेकर चलने की घोषणा कर दी है। लोगों ने भी उन्हें वोट किया। माना जा रहा है अगर नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में शामिल होते हैं। जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा है तो तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री बन सकते है। ऐसे में तेजस्वी यादव के सामने एक मौका है। जिसमें उनको जंगलराज की छवि से बाहर निकल कर जाति विशेष के उत्पात पर आंखें मूंदे रहने वाली पुरानी छवि को बदलने का मौका मिल सकता है। बिहार में रोजगार, विकास और बेहतर कानून-व्यवस्था के साथ धारणा बदलने में यदि वो सफल हो गए तो बिहार की सत्ता की लम्बी पारी से दूर रखना, बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।
बिहार में बीजेपी को जेडीयू की पिछलग्गू पार्टी कहा जाने लगा था। हालांकि, जेडीयू के तल्ख तेवर की बीजेपी को उम्मीद नहीं थी। फिलहाल, बीजेपी की पीलर राइडर वाली छवि को जेडीयू ने बिहार में ध्वस्त कर दिया है। चीजें तेजी से बदल गईं है। बड़ा पार्टनर होने के बाद भी बीजेपी आज सत्ता से बाहर है और भविष्य की चुनौतियों से भरा है। बीजेपी का देश में फैल रही जनाधार उसके सहयोगी पार्टियों को डराने लगा है। इन्हीं अज्ञात भय से जेडीयू ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया और आरजेडी के साथ बिहार में सरकार बना ली है। ऐसे में बीजेपी को अब बिहार में नए समीकरण की तलाश है, जो आसान नहीं होगा। लाभार्थी कल्याणकारी योजना का बिहार में कितना असर होगा… इस पर संशय बरकरार है। हालांकि, बीजेपी के नेता पहले से ही पीएम मोदी को गरीबों के लिए काम करने वाला नेता के रूप में पेश कर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में ब्रांड मोदी एक बहुत बड़ा फैक्टर बन चुका है। पर, एक सच यह भी है कि अभी तक बिहार की राजनीति में ब्रांड मोदी बहुत कारगर साबित नहीं हुआ है।
नीतीश कुमार ने आठवीं बार मुख्यमंत्री बन कर साबित कर दिया है कि बिहार की राजनीति में उनका कोई सानी नहीं है। लेकिन, एक सच यह भी है कि चुनाव-दर-चुनाव उनकी पार्टी जेडीयू की जनाधार में गिरावट होती रही है। जिसे रोक पाने में नीतीश कुमार सफल नहीं हो रहें हैं। बदले समीकरण में बिहार की राजनीति में बीजेपी मुख्य विपक्ष के रूप में पूरी ताकत झोंक देगी। वहीं, राजद भी अपनी ताकत झोंकने में गुरेज नहीं करेगा। ऐसे में अस्तित्व की प्रासंगिकता के लिए जेडीयू की मुश्किलें बढ़ सकती है। अहम बात ये है कि जेडीयू के कई नेता आरजेडी के साथ गठबंधन से असहज हैं। खासकर वे जिन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में राजद ने हराया था। जेडीयू का संगठन जमीनी स्तर पर कितना मजबूत है, यह बात भी किसी से छिपा नहीं है। इस स्थिति में, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि नीतीश कुमार वर्ष 2024 के लिए विपक्ष का चेहरा बनते हैं या नहीं? वैसे नीतीश कुमार का कद राष्ट्रीय स्तर पर बेशक बढ़ेगा। इसका लाभ उनकी पार्टी को भी मिल सकता है। पर, क्या वह प्रयाप्त होगा? फिलहाल, यह सवाल अनुत्तरित है।
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