नागपुर से सामने आया एक दर्दनाक मामला देश में इमरजेंसी मेडिकल सहायता की हकीकत उजागर करता है। रक्षाबंधन के दिन, 9 अगस्त को अमित यादव नाम के एक व्यक्ति को मजबूरी में अपनी पत्नी का शव बाइक पर बांधकर लगभग 80 किलोमीटर तक ले जाना पड़ा। यह घटना नागपुर और जबलपुर को जोड़ने वाले हाईवे पर हुई। अमित और उनकी पत्नी ज्ञारसी, नागपुर के लोनारा से मध्य प्रदेश के करनपुर जा रहे थे। रास्ते में एक तेज रफ्तार ट्रक ने उनकी बाइक को टक्कर मार दी। हादसे में ज्ञारसी सड़क पर गिर गईं और ट्रक चालक ने रुकने के बजाय उनके ऊपर वाहन चढ़ा दिया। मौके पर ही उनकी मौत हो गई।
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मदद की गुहार लेकिन किसी ने नहीं थामा हाथ
हादसे के बाद अमित ने राहगीरों और गुजरते वाहनों से मदद की अपील की। उन्होंने कई बार लोगों से एंबुलेंस बुलाने या किसी मेडिकल सुविधा तक पहुंचाने की गुजारिश की, लेकिन कोई भी मदद के लिए नहीं रुका। हाईवे accident जैसे मामलों में तुरंत मदद मिलना जरूरी होता है, लेकिन इस बार हर कोई चुपचाप गुजर गया। मजबूर होकर अमित ने अपनी पत्नी का शव बाइक पर बांधा और मध्य प्रदेश स्थित अपने गांव की ओर निकल पड़े।
वायरल वीडियो ने झकझोर दिया समाज को
इस घटना का एक video सोशल मीडिया पर viral हो गया। यह वीडियो किसी राहगीर ने नहीं, बल्कि पुलिस ने बनाया। पुलिस ने अमित को पत्नी के शव के साथ बाइक पर जाते देखा तो पीछा किया और उन्हें रोका। इसके बाद पुलिस ने शव को नागपुर में पोस्टमार्टम के लिए भेजा। यह दर्दनाक visuals देखकर लोग सोशल मीडिया पर गुस्से और दुख से भर गए। कई लोगों ने इसे मानवता पर सवाल उठाने वाला मामला बताया।
पुलिस की कार्रवाई और जांच
पुलिस ने हादसे के बाद ट्रक चालक के खिलाफ मामला दर्ज किया और जांच शुरू की। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। पुलिस ने बताया कि ट्रक चालक घटना के तुरंत बाद मौके से फरार हो गया। हाईवे पर लगे CCTV कैमरों और टोल प्लाज़ा की फुटेज खंगाली जा रही है ताकि आरोपी की पहचान की जा सके। यह परिवार नागपुर में रहता है, लेकिन मूल रूप से मध्य प्रदेश के सिवनी का निवासी है।
हाईवे इमरजेंसी सेवाओं पर उठे सवाल
भारत में लंबे समय से दावा किया जाता है कि national highways पर emergency medical services मौजूद हैं। लेकिन नागपुर-जबलपुर हाईवे पर हुआ यह मामला इन दावों पर सवाल खड़े करता है। तेज़ रफ्तार ट्रैफिक वाले इस मार्ग पर हादसे के बाद भी समय पर एंबुलेंस न पहुंचना व्यवस्था की नाकामी दिखाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि हाईवे पर नियमित अंतराल पर patrol vehicles, trained first responders और trauma care units की आवश्यकता है।
गुड सेमेरिटन कानून के बावजूद मदद से डरते लोग
भारत में Good Samaritan Law के तहत हादसे में मदद करने वालों को कानूनी सुरक्षा दी जाती है। फिर भी, अधिकतर लोग मदद करने से कतराते हैं। कई नागरिक पुलिस पूछताछ, कोर्ट में पेशी और अनावश्यक परेशानी के डर से पीड़ितों को अनदेखा कर देते हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस कानून की जानकारी जनता तक पहुंचाने के लिए awareness campaigns को और मजबूत करना होगा।
देरी से मेडिकल सहायता का मानवीय असर
कई सड़क हादसों में समय पर मेडिकल सहायता मिलने से जान बच सकती है। भले ही इस मामले में ज्ञारसी की मौके पर ही मौत हो गई, लेकिन समय पर कार्रवाई से कम से कम शव को सम्मानपूर्वक संभाला जा सकता था। देरी न केवल कानूनी और चिकित्सकीय प्रक्रिया को प्रभावित करती है, बल्कि परिवार के दर्द को भी कई गुना बढ़ा देती है।
सोशल मीडिया पर आक्रोश और बहस
इस viral video के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। कई लोगों ने राहगीरों के असंवेदनशील रवैये की निंदा की और सख्त कानून लागू करने की मांग की। कुछ यूज़र्स ने अपने अनुभव भी साझा किए, जिससे यह साफ हुआ कि यह समस्या केवल एक क्षेत्र की नहीं बल्कि पूरे देश की है।
आरोपी ट्रक चालक की तलाश
पुलिस टीम आरोपी ट्रक चालक की तलाश में लगातार जुटी है। जांच अधिकारी आसपास के जिलों में पंजीकृत ट्रकों की जांच कर रहे हैं। आरोपी की पहचान होने के बाद उस पर लापरवाही से मौत और पीड़ित को मदद न करने जैसे आरोप लगाए जाएंगे। राज्य स्तर के अधिकारियों ने भी इस मामले पर रिपोर्ट मांगी है।
सीख और जरूरी कदम
अमित यादव और उनकी पत्नी की कहानी समाज को यह सिखाती है कि सड़क सुरक्षा केवल इंफ्रास्ट्रक्चर का सवाल नहीं, बल्कि इंसानियत का भी है। अगर राहगीरों ने समय पर मदद की होती, तो कम से कम शव को इस तरह ले जाने की नौबत नहीं आती। यह घटना सरकार, कानून लागू करने वाली एजेंसियों और आम नागरिकों सभी के लिए एक चेतावनी है कि व्यवस्था और संवेदनशीलता दोनों में सुधार जरूरी है।
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