हिन्दी के पहाड़ा पर अग्रेँजी की हुकूमत, स्कूलो में नही पढ़ाइ जाती “बम पचहतर” व छक्का नब्बे, विलुप्त हो गया सवैया, डेढ़ा, गरंहा, लग्गी, पढे लिखे लोग नही जानते एलपीसी की हिंदी, एफआइआर के हिंदी से भी अनिभिज्ञ है लोग, ग्रामीण इलाको में भी हिंदी नही रही बिंदी
मीनापुर। प्रखंड मुख्यालय मे हरपुर बक्श गांव के बाढपीड़ित राकेश कुमार, शीतलपट्टी के रामराजी, मधुबन कांटी के गणेश सहनी प्रखंड मुख्यालय मे एलपीसी बनवाने के लिए पहुंचे थे। किंतु इनको नही पता एलपीसी का हिंदी भूमि स्वामित्व प्रमाण पत्र होता है। वहां पर एक दर्जन से अधिक लोग ऐसे भी थे जो स्नातक प्रतिष्ठा थे। किंतु इन्हे भी नही पता कि एलपीसी का हिंदी क्या है। थाने पहुंचने वाले अधिकांश लोग एफआइआर की तो बात करते है. किंतु उसे पता नही कि प्राथमिकी क्या होता है। उसे तो सिर्फ एफआईआर करना है. आज गुरूवार है। अपना देश हिंदी दिवस मना रहा है.किंतु मातृभाषा हिंदी अपने ही घर मे बेगाना है.यह तो बानगी है.किंतु अभी भी सरकारी संस्थानो मे हिंदी बोली पर अंग्रेजी हावी है. गुरूवार को स्कूल खुले हुए है।बच्चे पढ रहे है ।किंतु पढने का शैली अब बदला हुआ है। कोचिंग संस्थानो मे एका एक और दूका दू की जगह बच्चे वन टू थ्री फोर रट रहे है । इनको वन जा टू पहाड़ा रटाया जा रहा है। शीतलपट्टी के राजेश को नही मालूम की हिन्दी दिवस क्या होता है। अब सरकारी विधालयो मे अग्रेँजी का चलन इतना बढ़ गया है,कि हिन्दी का अस्तित्व खतरे मे है। हिन्दी के पहाड़ा पर अंग्रेजी का पहरा हो गया है। एका एक दू का दू का पहाड़ा की जगह वन टू थ्री ने ले लिया है। बताते चले कि सरकारी विधालयो मे खेल-खेल मे बच्चे पहाड़ा सीख लेते है। एक से लेकर बीस तक के पहाड़ा सीखने का अपना अलग गवंई शैली था। अब आधुनिकता के इस दौर मे विधालयो का शैली बदला-बदला दिख रहा है। अब विधा के मंदिर मे बम पचहतर व छक्का नब्बे, अठ्ठे बीसा की गूंज सुनायी नही देती। छुट्टी के वक्त सैयां निन्यानबे,अन्ठानवे,सन्तानवे की घटते क्रम का पहाड़ा भी गुजरे दिनो की बात है। स्कूलो मे सवैया,डेढ़ा,गरहां,अढ़ैया व लग्गी की पढ़ाई के जमाने बीत चुके है। अब स्कूलो मे हाजीरी लगाने का स्टायल भी बदल गया है। बच्चे अब “उपस्थिति श्रीमान” व “जय हिन्द” की जगह “यस सर” बोलना ज्यादा पसंद कर रहे है। अल्पावकाश मे भी कॉमिंग सर व गोईंग सर का इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे मे हिन्दी के अस्तित्व पर संकट आ गया है। सोशल मीडिया के दौर मे भी सुबह का आगाज गुड मॉर्निंग व रात का समापन गुड नाइट से होता है। वहां भी हिंदी उपेक्षित है। कार्यालयो मे भी उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले कर्मी को इमर्शन का हिंदी नही मालूम है। जबकि वह इस दौर से गुजरने के बाद ही यहां तक पहुंचते है। राजकीय उत्क्रमित मवि छितरपट्टी के एचएम अजय कुमार चौधरी बताते है कि अब आधुनिक दौर मे सरकारी स्कूलो मे भी निजी स्कूलो की तर्ज पर पढाई शुरू हो चुकी है। इसी के चलते अब हिंदी वाला पहाड़ा गुम हो गया है। किंतु हिंदी की कीमत पर अंग्रेजी को बढावा देना खतरनाक है। महदेईया पैक्स अध्यक्ष सह पंसस शिवचंद्र प्रसाद कहते है कि हिंदी को अपने घर मे ही बेगाना कर दिया गया है। किसानो के फसल बीमा का फार्म हिंदी के बदले अंग्रेजी मे है। वह भी सरल अंग्रेजी नही कठीन भाषा है। हिंदी जानने वाले किसान भी पैसे देकर दुसरे के हाथो फार्म भरवाने को विवश है। पूर्व प्राचार्य जयनारायण प्रसाद कहते है कि हिंदी देश की गंगा है। इसको पवित्र बनाये रखना चाहिए। लोग बताते है कि हिंदी पढकर शिक्षक व अन्य पद को सुशोभित करने वाले हिंदी की रक्षा करे। खासकर वह पद पर जाते ही हिंदी को भूल जाते है। पूर्व एचएम जयनंदन बैठा बताते है कि हिंदी के मुश्किल शब्दों की जगह अँगरेज़ी के शब्दों ने ले ली है । लोग अंग्रेजी के शॉर्टकट भाषा का इस्तेमाल कर हिंदी की उपेक्षा कर रहे है। हिंदी ‘हिन्गलिश’ हो चली है।