मुंबई स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT Bombay) से एक बार फिर दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। संस्थान के अंतिम वर्ष में पढ़ाई कर रहे एक छात्र ने शुक्रवार देर रात 10वीं मंजिल से छलांग लगाकर कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। छात्र की पहचान दिल्ली निवासी रोहित सिन्हा के रूप में हुई है, जो धातुकर्म विभाग का चौथे वर्ष का छात्र था।
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देर रात हुआ हादसा, नहीं मिला सुसाइड नोट
पवई पुलिस के अनुसार, यह घटना शुक्रवार-शनिवार की रात लगभग ढाई बजे घटी। छात्रावास की इमारत की 10वीं मंजिल से कूदने के बाद रोहित को तत्काल नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस ने एडीआर (Accidental Death Report) दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। हालांकि, अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि यह आत्महत्या थी या कोई और कारण। छात्र के पास से कोई सुसाइड नोट भी बरामद नहीं हुआ है।
दोस्तों के साथ डिनर के बाद छत पर रह गया अकेला
पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, छात्रावास में रहने वाले कुछ छात्रों ने रात में ऑनलाइन खाना ऑर्डर किया था और सभी खाना लेकर छत पर गए थे। डिनर के बाद सभी छात्र नीचे चले गए, लेकिन रोहित वहीं छत पर रुका रहा। कुछ देर बाद छात्र का शव इमारत के नीचे पाया गया। पुलिस फिलहाल रोहित के साथियों और शिक्षकों से पूछताछ कर रही है।
संस्थान ने जताया शोक, सोशल मीडिया पर दिया संदेश
IIT बॉम्बे ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पेज पर छात्र की असामयिक मृत्यु पर दुख व्यक्त किया है। संस्थान ने लिखा कि भविष्य का एक चमकता सितारा इस तरह अंधेरे में खो गया, जिससे पूरा संस्थान शोक में है। साथ ही मृतक छात्र के परिजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की गई है।
आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर गंभीर चिंता
रोहित की मौत IITs में आत्महत्या की एक लंबी सूची में जुड़ गई है। पिछले साल जनवरी से लेकर अब तक देशभर के IIT संस्थानों से कम से कम 14 छात्रों की आत्महत्या के मामले सामने आ चुके हैं। इनमें IIT गुवाहाटी और कानपुर से तीन-तीन, IIT खड़गपुर से चार, IIT दिल्ली, रुड़की, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) और अब बॉम्बे से एक-एक मामला सामने आया है।
मानसिक स्वास्थ्य: सबसे बड़ा सवाल
IIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में छात्रों की आत्महत्याएं लगातार चिंता का विषय बनती जा रही हैं। माना जा रहा है कि अत्यधिक शैक्षणिक दबाव, प्रतिस्पर्धा, अकेलापन और मानसिक तनाव इसकी मुख्य वजहें हैं। संस्थान अपने स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, काउंसलिंग सेंटर और हेल्पलाइन की व्यवस्था कर रहे हैं, लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि ये उपाय पर्याप्त नहीं हैं।
छात्र क्यों नहीं ले पाते समय पर मदद?
विशेषज्ञों का मानना है कि छात्रों के बीच मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बातचीत की कमी है। समाज में मानसिक बीमारी को लेकर जो कलंक है, वह छात्रों को खुलकर बात करने से रोकता है। इसके अलावा, कुछ छात्र इस डर में रहते हैं कि अगर वे अपनी परेशानी जाहिर करेंगे तो उन्हें कमजोर समझा जाएगा या उनकी अकादमिक छवि खराब हो सकती है।
संस्थानों की भूमिका और जिम्मेदारी
इस घटना ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा किया है कि क्या IIT जैसे संस्थान छात्रों की मानसिक सेहत के लिए पर्याप्त कदम उठा रहे हैं? अब समय आ गया है कि संस्थान सिर्फ शैक्षणिक उत्कृष्टता पर ध्यान देने के बजाय छात्रों के समग्र विकास पर भी जोर दें। इसके लिए संस्थानों को चाहिये:
सहज और गोपनीय काउंसलिंग सुविधा
शिक्षकों और कर्मचारियों को मेंटल हेल्थ की ट्रेनिंग
समय-समय पर मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम
छात्रों के लिए पीयर सपोर्ट ग्रुप
अकादमिक लचीलापन और वैकल्पिक मूल्यांकन प्रणाली
अभिभावकों और समाज की भूमिका भी अहम
IIT में प्रवेश किसी भी छात्र और उसके परिवार के लिए बड़ी उपलब्धि होती है। लेकिन इस सफलता के पीछे जो मानसिक बोझ और दबाव होता है, उसे भी समझना जरूरी है। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों की मानसिक स्थिति पर नजर रखें, उनसे संवाद बनाए रखें और यह भरोसा दिलाएं कि वे किसी भी परिस्थिति में अकेले नहीं हैं।
सोशल मीडिया पर उठी आवाज़ें
रोहित की मृत्यु के बाद सोशल मीडिया पर छात्रों और पूर्व छात्रों की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कई लोगों ने संस्थानों में मेंटल हेल्थ को लेकर उदासीनता पर सवाल उठाए हैं। छात्रों का कहना है कि केवल काउंसलिंग सेंटर खोल देने से समस्या हल नहीं होती, बल्कि एक ऐसा माहौल बनाना जरूरी है जिसमें छात्र सुरक्षित और समझे जाने जैसा महसूस करें।
आगे का रास्ता
अब जब जांच जारी है, और संस्थान तथा प्रशासन मामले की तह तक जाने की कोशिश कर रहे हैं, यह समय है जब सभी संबंधित पक्ष आत्ममंथन करें। शिक्षण संस्थानों को सिर्फ इंजीनियर और वैज्ञानिक नहीं, बल्कि संवेदनशील और संतुलित व्यक्तित्व विकसित करने चाहिए।
रोहित सिन्हा की मौत न सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि हमारे पूरे शिक्षा तंत्र के लिए एक चेतावनी है। अगर समय रहते मानसिक स्वास्थ्य को शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा नहीं बनाया गया, तो यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। संस्थानों, सरकार, अभिभावकों और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी और रोहित को अपने सपनों के बोझ तले दबकर जान ना गंवानी पड़े।
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